सार छंद : पूछत हे जिनगानी

घर के बोरिंग बोर सुखागे, घर मा नइ हे पानी। टंकर कतका दिन सँग दीही, पूछत हे जिनगानी। नदिया तरिया बोरिंग मन तो, कब के हवैं सुखाये। कहूँ कहूँ के बोर चलत हे, हिचक हिचक उथराये। सौ मीटर ले लइन लगे हे, सरलग माढ़े डब्बा। पानी बर झींका तानी हे, करलाई हे रब्बा। चार खेप पानी लानत ले, माथ म आगे पानी। टंकर कतका दिन सँग दीही, पूछत हे जिनगानी। सोंचे नइ हन अतका जल्दी, अइसन दिन आ जाही। सोंच समझ मा होगे गलती, अब करना का चाही। बारिश के…

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हमर स्कूल

हमर गॉव के गा स्कूल, सरकारी आवय झन भूल। दीदी-भैया पढ़े ल, चले आहु ना… खेल-खेल में सबो ल पढ़हाथे, अच्छा बात ल बताथे…..दीदी… रोज-रोज नवा-नवा, खेल खेलवाथे। गोटी-पथरा बिन गिन, गिनती लिखाथे।। हमर गॉव के……..दीदी…….. फल-फूल अंग्रेजी के, नाम हमन पढ़थन। दुनिया ल समझेबर, जिनगी ल गढ़थन।। हमर गॉव के……..दीदी……… दार-भात,कपड़ा के, झन चिंता करहु। सर-मैडम बने-बने, ध्यान दे के पढ़हु।। हमर गॉव के ……..दीदी……… सरपंच अउ पंच के एमा, हावै भागीदारी। जिला अधिकारी संग, सबके जिम्मेदारी।। हमर गॉव के………दीदी……….. मिलही बने शिक्षा, संगीत अउ गान के। तुंहर सम्मान…

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एकमई राखव परवार ला

आज घर ईंटा, पखरा, छड़, सीरमिट, रेती, गिट्टी, माटी, लकड़ी जइसन आनी-बानी के जीनिस ले बने ला धर लीच अउ परवार उजड़े ला धर लीस। परवार अइसन कोनो जीनिस ले नइच बनय। परवार पियार, मया, दुलार ले, भरोसा, आदर सम्मान ले बनथे। घर मा रहइया छोटे-बड़े के भाव ला समझे अउ समझाय ले परवार बनथ अउ चलथे। परवार सिरिफ चार-छै झन के सँघरा रहे के नाँव नो हे। एके सँघरा एके कुरिया मा रहे ले का होही जब इँखर बीच मन मा कोनो सोच विचार के मेल-मिलाप नइ रहय। मन…

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ममा घर के अंगना

नाना – नानी घर खेलेंन कुदेंन चांकी भवरीं अउ मैना उड़ नीम के छाँव रहिस कबूतर के घर म डेरा छोटे नाना संग घूमे ल सिखेंन ममा घर के अंगना भई भई सब अलग बिलग होगे अंगना होंगे अब सुना कोनो ल कोनो से मतलब निये नीम के छाँव बुडगागे अंगना के कबूतर उड़ागे घर होगे सुना सुना पास पड़ोस के संगवारी भुलागींन तरिया के पानी सिरागिस गली खोल के बैठाया सिरागिस सुना होगे घर अंगना बछर बीत गईस अब भांचा सुने बर नाना – नानी घर ममा घर के…

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वृक्षारोपण के गोठ

आज बड़ बिहिनिया ले नर्सरी म जम्मो फूल अउ बड़का रूख के नान्हे-नान्हे पौधा मन म खुसी के लहर ड़़उंड़त हवय, काबर आज वृक्षारोपण कार्यकरम म जम्मो नर्सरी के फूल अउ बड़का रूख मन के नान्हे-नान्हे पौधा ल लेहे बर बड़का जनिक ट्ररक हर नर्सरी म आये हवय. गोंदा, मोंगरा, गुलाब फूल अउ चंदन के नानकुन पौधा मन आपस म गोठियावत रिहिन. गोंदा हर गोठियावत रिहिस-” अवो बहिनि मन इही वृक्षारोपण का हरे, मेहर कभू नइ देखे हववं, इही नर्सरी ले बाहिर के दुनियां ल देखेबर अब्बड़ बेचेन हवँ. “ओखर…

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निषाद राज के छत्तीसगढ़ी दोहा

माता देवी शारदा, मँय निरधन लाचार। तोर चरन में आय हँव, सुन दाई गोहार।। माता तोरे रूप के, करहूँ दरशन आज। पाहूँ मँय आशीष ला, बनही बिगड़े काज।। हे जग जननी जानले, मोरो मन के आस। पाँव परत हँव तोर ओ, झन टूटै बिसवास।। दुनिया होगे देखले, स्वारथ के इंसान। भाई भाई के मया, होंगे अपन बिरान।। आगू पाछू देखके, देवव पाँव अगार। काँटा कोनो झन गड़य, रद्दा दव चतवार।। xxx काँटा गड़गे पाँव मा,माथा धरके रोय। मनखे गड़गे आँख मा,दुख हिरदय मा होय। मन मंदिर मा राखले,प्रभु ला तँय…

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13 मई विश्व मातृ दिवस : महतारी महिमा (सरसी छंद)

महतारी महिमा भारी हे, ममता मया महान। हाँथ जोर मैं बंदव दाई, जग बर तैं बरदान।1 जगजननी तैं सब दुखहरनी, कोरा सरग समान। दाई देवी सँउहें हावच, कतका करँव बखान।2 दया धरम के चिन्हा दाई, जप-तप के पहिचान। दुख पीरा मा रेंगत दाई, लाथच नवा बिहान।3 लछमी दुरगा देवी दाई, सारद के अवतार। समता सुमता सादर सरधा, दाई जगत अधार।4 जिनगी के पतझर मा दाई, सबले आस बहार। भँवरजाल भवसागर भय मा, महतारी पतवार।5 सगुन सुवारी संगी सिरतों, अँचरा अमित अपार। महतारी बेटी बहिनी बिन, सुन्ना हे संसार।6 जनम करम…

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वीर महाराणा प्रताप : आल्हा छंद

जेठ अँजोरी मई महीना,नाचै गावै गा मेवाड़। बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया दिखे माँस ना हाड़। उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग। राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग। अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल। हे हजार हाथी के ताकत,धरे हाथ मा भारी भाल। सूरज सहीं खुदे हे राजा,अउ संगी हेआगी देव। चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव। खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार। मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर मुँह ला फार। चले चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय। राजपूत…

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13 मई विश्व मातृ दिवस : दाई के दुलार (दोहा गीत)

महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। दाई देवी देवता, बंदव चरन पखार। महतारी सुभकामना, तन मन के बिसवास। कोंवर कोरा हा लगै, धरती कभू अगास। बिन माँगे देथे सबो, अंतस अगम अभास। ए दुनिया हे मतलबी, तोर असल हे आस। महतारी आदर सहित, पायलगी सौ बार।।1 महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। मीठ कलेवा मोटरा, मधुरस मिसरी घोल। दाई लोरी गीत हा, लगय कोइली बोल। सरधा सिरतो सार हे, सरन सरग अनमोल। महतारी के मया ला, रुपिया मा झन तोल। करजा हर साँसा चढ़े, जिनगी तोर उधार।।2 महतारी ममता मया,…

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छंद के छ : एक पाठशाला, एक आंदोलन

वइसे “छंद के छ” हा आज कोनो परिचय के मोहताज नइ हे तभो ले मैं छोटे मुँहु बड़े बात करत हँव। छत्तीसगढ़ी छंद शास्त्र के पहिलावँत किताब “छंद के छ” सन् 2015 मा श्री अरुण निगम जी द्वारा लिखे हमर मन के बीच मा आइच। छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे के उद्देश्य ले लिखे ए किताब हा छंद बद्ध रचना के संगे-संग छंद के विधि-विधान उदाहरण सहित अपन भाखा मा देथे। एखर पहिली संस्करन मा मात्र दू सौ किताब छपे रहीच। “छंद के छ” किताब मा पचास प्रकार के छंद…

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