पानी ह जिनगी के अधार हरे। बिना पानी के कोनो जीव जन्तु अऊ पेड़ पौधा नइ रहि सके। पानी हे त सब हे, अऊ पानी नइहे त कुछु नइहे। ये संसार ह बिन पानी के नइ चल सकय। ऐकरे पाय रहिम कवि जी कहे हे – रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये ना उबरे, मोती मानुष चून।। आज के जमाना में सबले जादा महत्व होगे हे पानी के बचत करना । पहिली के जमाना में पानी के जादा किल्लत नइ रिहिसे। नदियाँ, तरिया अऊ कुंवा मन में…
Read MoreMonth: May 2018
मोर लइका ल कोन दुलारही
पूनाराम के बड़े बेटी सुनीता के बिहाव होय छै बच्छर ले जादा बीत गे।एक झन साढ़े चार बच्छर के बेटी अउ दू बच्छर के बेटा हवय। सुनीता अपन ग्यारा बच्छर के भाँची ल पहली कक्षा ले अपने कर राख के पढ़ात हवय। सुनीता के गोसइया कुलेस सहर के अस्पताल के गाड़ी चलाथे।ठेकादारी हरय पक्की नी होय हे।सुनीता घर मा पीको फाल अउ बुलाउस सिलके दू चार पइसा कमा लेथे। सुनीता मन तीन देरान जेठान होथय। वो हा छोटकी बहू आय।जादा नइ पढ़े हवय ।गांव मा 12 वी तक इस्कूल हवय…
Read Moreसेठ घर के नेवता : कहिनी
रमेसर अपन छोटे बेटी के चइत मा बिहाव बखत अड़बड़ खुस रहिस। जम्मो सगा सोदर,नत्ता गोत्ता, चिन पहिचान,अरपरा परपरा ल नेवता देय रहिस।सबो मन आय घलाव रहिस।सहर के सबले बड़े सेठ ला घलो नेवता दिस। ओकर संग बीस बच्छर पहिली जब नानकुन नवा दुकान धरिस तब ले लेन देन चलत हे। आज ओकर दुकान बीस गुना बाढ़ गे हवय। सुजी से लेके कुलर फ्रिज,कपड़ा लत्ता, बरतन अउ सोन चांदी सबो मिलथे। रमेसर के घर बिहाव के जम्मो जिनिस ओकरे दुकान ले आय रहिस। सेठ ह नेवता के मान राखिस अउ…
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी, छत्तीसगढ़िया अब तो जागव रे संगी। परदेशिया ल खदेड़व इँहा ले, बघवा असन दहाड़व रे,संगी। मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी छत्तीसगढ़ी भाखा ल आपन मानव रे संगी। दूसर के रददा म रेंगें ल छोडव, अपन रददा ल अपने बनाव रे संगी। छोड़ के अपन महतारी ल दुख म, दूसर राज झन जवव रे संगी। मोर महतारी के पीरा ल, जानव रे संगी। अपन महतारी भाखा ल, बगराव रे संगी। मोर माटी के चिन्हारी ल, अब झन मिटाव रे संगी,…
Read Moreनिषाद राज के दोहा अउ गीत
पांव के पैजनियाँ…आ… संझा अउ बिहनिया। गुरतुर सुहावै मोला तान ओ, गड़गे करेजवा मा बान ओ। पाँव के पैजनिया….आ…आ.. झुल-झुल के रेंगना तोर,जिवरा मोर जलावै। टेंड़गी नजर देखना तोर,जोगनी ह लजावै।। नाक के नथुनिया…..आ.. संझा अउ बिहनिया। झुमका झूलत हावै कान ओ, गुरतुर सुहावै मोला तान ओ। पाँव के पैजनियाँ…… चन्दा कस रूप तोर,चंदैनी कस बिंदिया। सपना देखत रहिथौं,नइ आवय निंदिया।। गोड़ के तोर बिछिया…आ.. संझा अउ बिहनिया। होगेंव मँय रानी हलकान ओ, गुरतुर सुहावै मोला तान ओ। पाँव के पैजनियाँ……. तोर मुसकाये ले ओ, फूल घलो झरत हे। देख…
Read Moreलइका अउ सियान खेलव कुरिया मा
गरमी नंगत बाड़ गे हवय।सियान ल कोन पुछय,लइका मन घर कुरिया ले निकले के हिम्मत नइ करत हे।वइसे आजकल के लइकामन घलाव थोकिन सुगसुगहा बानी के रहिथे।दाईच ददा मन ओला अइसने बना डरे हावय। माटी मा झन खेल, घाम मा झन जा कुलर कर बइठ, ठंडा पानी पी,ताते तात खा …..। नानम परकार के टोकई मा लइकामन परिस्थिति ले जूझे अउ सहे के ताकत ल गवाँ डरिस। अब तो गांव लगे न सहर, गरमी के दिन मा लइका न अमरइया जाय,न धूपछाँव खेलय, न डंडा पिचरंगा खेलय।कुरिया मा धंधाय लइका…
Read Moreसिंहावलोकनी दोहा : गरमी
गरमी हा आ गे हवय,परत हवय अब घाम। छइँहा खोजे नइ मिलय,जरत हवय जी चाम।। जरत हवय जी चाम हा,छाँव घलो नइ पाय। निसदिन काटे पेंड़ ला,अब काबर पछताय।। अब काबर पछताय तै,झेल घाम ला यार। पेंड़ लगाते तैं कहूँ,नइ परतिस जी मार।। नइ परतिस जी मार हा,मौसम होतिस कूल। हरियाली दिखतिस बने,सुग्घर झरतिस फूल।। सुग्घर झरतिस फूल तब,सब दिन होतिस ख़ास। हरियाली मा घाम के,नइ होतिस अहसास।। नइ होतिस अहसास जी,रहितिस सुग्घर छाँव। लइका पिचका संग मा,घूमें जाते गाँव।। घूमे जाते गाँव तै ,रहितिस संगी चार। गरमी के चिंता…
Read Moreमाटी के महिमा हे करसि के ठंडा पानी
जइसे-जइसे महीना ह आघु बढ़त हे, वइसने गरमी ह अउ बाढ़त जात हे, गरमी ले बांचे के खातिर सब्बो मनखे ह किसिम-किसिम के उपाय करथे, काबर के अब्बड़ गरमी म रहे ले स्वास्थ जल्दी खराब होथे, फेर अइसे गरमी के बेरा म अपन स्वास्थ के बढ़ धियान रखे ल लगथे, काबर के येहि बेरा म सूर्य देव के किरपा अब्बड़ रहिथे सब्बो परानी जीव जगत बर। अउ सूर्य देव के किरपा ले कोनो नइ बचें अब्बो बर बराबर किरपा करथे सूर्य देव ह। वइसे गरमी के बेरा हो चाहे अउ…
Read Moreआज काल के लइका : दोहा
पढ़ना लिखना छोड़ के, खेलत हे दिन रात । मोबाइल ला खोल के, करथे दिन भर बात ।। आजकाल के लोग मन , खोलय रहिथे नेट । एके झन मुसकात हे , करत हवय जी चेट ।। छेदावत हे कान ला , बाला ला लटकात । मटकत हावय खोर मा , नाक अपन कटवात ।। मानय नइ जी बात ला , सबझन ला रोवात । नाटक करथे रोज के, आँसू ला बोहात ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़
Read Moreछतीसगढ़ी भाखा
जागव जी जवान, जागव जी किसान। छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन मानव जी सियान। माटी के मया ल माटी बर बोहाव, छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन करेजा म जनाव। महतारी के भुइँया, अपन छत्तीसगढ़ ल जानव आघु बढ़ा के येला,येखर मया ल पाव। जागव जी जवान, जागव जी किसान। अपन महतारी भाखा ल गोठियाव जी सियान। छत्तीसगढ़ीं दाई के कोरा म, मया अब्बड़ पाव। साँझ-बिहनिया दाई के सेवा म अपन जिनगी ल बनाव। अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतरी। मो.न.-7722906664,7987766416
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