काँदा कस उसनात हे

कभू घाम कभू पानी, भुँइया हा दंदियात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। दिनमान घाम के मारे , मुँहू कान ललियावत हे । पटकू बाँध के रेंगत हे , देंहे हा पसिनयावत हे। माटी के घर ला उजार के, लेंटर ला बनात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। कूलर पंखा चलत तभो ले , पसीना हा आवत हे । लाइन हा गोल होगे ताहन , भारी दंदियावत हे । दिन में चैन न रात में चैन, मच्छर घलो भुनभुनात हे।…

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गर्मी छुट्टी (रोला छंद)

बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी। बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी। मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी। खेले खाये खूब,पटे सबके बड़ तारी। किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी। लगे जेठ बइसाख,मजा लेवय सतरंगी। पासा कभू ढुलाय,कभू राजा अउ रानी। मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी। लउठी पथरा फेक,गिरावै अमली मिलके। अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के। धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी। कोसा लासा हेर ,खाय रँग रँग के खाजी। घूमय खारे खार,नहावय नँदिया नरवा। तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा। आमाअमली तोड़,खाय जी नून…

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दोखही के दुख (लघु कथा)

सुखिया के बिहाव ह जेन दिन लगिस उही दिन ले सुखिया के आंखी मं बिहाव के नेंग-जोंग ह आंखी-आंखी मं झूलत रहिस,कइसे मोर तेल चढ़ही, कइसे माइलोगिन मन सुघ्घर बिहाव गीत गाही, कइसे भांवर परही, कइसे मोर मांग ल मोर सइया ह भरही, तहान जिनगी भर ओकर हो जाहूं अउ ओकरे पाछू ल धर के ससुराल मं पांव ल रखहूं, सास-ससुर, जेठ-जेठानी, देवर- नंनद ह मोर सुवागत करही अउ नान-नान लइका मन ह भउजी, काकी, बड़े दाई, मामी कहिके मोला पुकारही अउ कइसे मोर मयारू ह मोला मया के बंधना…

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अपन

पहिनथन अपन कपड़ा ल, रहिथन अपन घर म, कमाथन खेत ल अपने, खाथन अपन हाथ ले, लीलथन अपने मुंह ले, सोंचथन घलो, सिरिफ अपने पेट के बारे म। अपन दाई, अपन, अपन ददा अपन, अपन भाई, अपन, अपन बहिनी, अपन अपन देस, अपन अपन तिरंगा, अपन, मरना पसंद करथन अपन धरम म। मानथन घलो अपनेच देबी देवता ल। अपन बेटा-बेटी ए बर तो कमाथन का ? अपन संतान ए ल तो दे पाथन का, हक अपन संपत्ति म ? त, फेर छेड़ना- छाड़ना काबर कोखरो बेटी माई ल? छेड़नाच हे…

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छत्तीसगढ़ी भूल भूलैया

समर्पन धमधा के हेडमास्टर पं. भीषमलाल जी मिसिर महराज के सेवा मा :- लवनी तुहंला है भूलभुलैया नींचट प्यारा। लेवा महराजा येला अब स्वीकारा।। भगवान भगत के पूजा फूल के साही। भीलनी भील के कंद मूल के साही।। निरधनी सुदामा के ओ चाउर साही। सबरी के पक्का 2 बोइर साही।। कुछ उना गुना झन हाथ अपन पसारां लेवा महराजा, येला अब स्वीकारा।। जावलपुर, दिनांक 12. 04. 1918 तुहंर दया के भिखारी, शुकलाल प्रसाद पांड़े भूमका ये बात ला सब जानथें कि आदमीमन धरम-करम, नीत-प्रीत, बुद्धू-बिबेक, चतुराई कहां ले कहों, भगवान…

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रमजान अउ पुरूषोत्तम के महीना : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! अधिक मास के हमर जिनगी म भारी महत्तम हावय रे ! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। हमन नानपन ले सुनत आवत हन-“हिन्दु मुस्लिम सिख इसाई, आपस में सब भाई-भाई।” हमर भारत देस के यही विशेषता हवय कि इंहा अनेकता में एकता के वास हावय। इंहा भांति-भांति के धर्म, रीति-रिवाज अउ संस्कृति के मेल हावय एखरे सेती हमर भारत जइसे देस पूरा विश्व मे अउ…

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लोक कथा : लेड़गा मंडल

– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झ लेड़गा रहय। काम बुता कुछ नइ करय। ओखर दाई ओला अड़बड़ खिसयावय। लेड़गा के दाई जब सियान होगे अउ लेड़गा जवान, तब रिस के मोर डोकरी ओला अड़बड़ गारी-बखाना दिस। लेड़गा हाथ जोड़के किहिस-‘‘ले दाई अब जादा झन खिसया। काली ले महुं कुछु बुता काम करके चार पैसा कमा के तोर हाथ में दुहूं। डोकरी खुश होगे अउ बिहान दिन आज मोर बेटा ह कमाय बर जाही कहिके लेड़गा बर सात ठन मुठिया रोटी रांध के मोटरी म जोर दिस। लेड़गा रोटी…

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आँखी के काजर

भुला डारे मोला काबर बैरी बनाये तोर आँखी के काजर हाथ के कंगन मोला अबड़ आथे सुरता तोर गुस्सा तोर हसना तोर नखरा तोर मीठ बोली सच म गांवली गाँव मोर सुरता कराथे बर पीपर के छाँव तोर अंगना के टूटहा खटिया डर डर के तोर गली म जाना छुप छुप के मीठ बोली बोलना अब सपना होगे तोर संग बैठना बैरी रहिन तोर पारा के संगवारी सब अब संगवारी होगीन जबले तोर गवना होइस हे मोर पुछैया मन मोला भुलागींन अब तो तेही ह मोर मया ल मुरेछ देहे…

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