नांगर बईला धर निकलगे, बोय बर जी धान, जय हो, जय हो जी जवान , मोर देश के किसान। बरसत पानी, घाम पियास में जांगर टोर कमाथस, धरती के छाती चीर के तैहा, सोना जी उपजाथस, माटी संग में खेले कूदे, हरस माटी के मितान, जय हो, जय हो जी जवान, मोर देश के किसान। सुत उठ के बड़े फजर ले माटी के करथस पूजा, तोर सही जी ये दुनिया मे नई है कोनो दूजा, दुनिया भर के पेट ल तारे, तै भुईया के भगवान, जय हो, जय हो जी…
Read MoreMonth: June 2018
गांव के सुरता
होवत बिहनिया कुकरी-कुकरा, नींद ले जगावय। कांव-कांव करत चिरई-चुरगुन, नवा संदेसा सुनावय। बड़ निक लागय मोला, लईका मन के ठांव रे।…… आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।…… भंवरा बांटी के खेल खेलन, डूबक-डूबक नहावन। डोकरा बबा खोजे ल जावय, गिरत हपटत भागन। आवत-जावत सुरता आवय, डबरी के पीपर छांव रे।……. आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।……… सिधवा मनखे गांव के, मंदरस कस बोली। बड़ सुघ्घर लागय मोला, डोकरी दाई के ठोली। सत जेकर ईमान धरम, लछमी गाय के पांव रे।…… आज घलो सुरता आथे,…
Read Moreपंडवानी के सुर चिरैया-तीजन बाई
जब हमन नान्हे-नान्हे रहेन तब रेडियो म जइसे सुनन-“बोल व§न्दावन बिहारी लाल की जय” अतका सुनते साठ हमन जान डारन कि अब तीजन बाई के पंडवानी शुरू होवइया हे अउ रेडियो तिर बने चेत लगा के बइठ जात रहेन । हमन ला पंडवानी सुने म जतेक मजा आवय तेखर ले जादा मजा तीजन बाई के बोली-भाखा, अंदाज अउ पंडवानी गायन के शैली म आवय । पहिली दूरदर्शन में जब तीजन बाई के भाखा सुनन तब कोनो मेर रहितेन दउड़त आवन तीजन बाई ला देखे खातिर। ओखर रूप-रंग, पहिनावा-ओढ़ावा, गहना-गुरिया के…
Read Moreलोक कथा : लेड़गा के बिहाव
–वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव म एक गरीब लेड़गा रहय। ये दुनिया म लेड़गा के कोन्हों नइ रिहिस। दाई रिहिस तउनो ह कुछ समे पहिली गुजर गे। लेड़गा ह बनी-भूती करके भाजी-कोदई, चुनी-भूंसी खाके अपन गुजर बसर करत रहय। सम्पत्ति के नाव म लेड़गा के एक झोपड़ी भर रहय तब उही झोपड़ी के आधा म पैरा के खदर छानी रहय अउ आधा ह अइसने खुल्ला। एक ठन गाय रहय जउन ह आधा भीतरी तब आधा बहिरी बंधाय। एक ठन हउला रहय तहु ह नो जगह ले टोड़का रहय जउन ला लाख…
Read Moreप्रकृति के विनास
हमर भारत भुइंया ह संसार के जम्मो देस म अपन संस्कारअउ संस्कृति के सेती अलगेच चिन्हारी रखथे।हमन परकिरती के पूजा करइय्या मनखे अन।परमात्मा के बनाय रुख राई,नदीया,पहाड,जीव-जंतु,चिरई चुरगुन ल घलो हमन पूजा करथन।फेर धीरे-धीरे हमन ए सबले दूरीहावत हन। जब ले मनखे ह मसीनी तरक्की के रसदा ल धरे हे ओला भोरहा होगे हे कि भुंईया म ओकर ले बडके कोनो नीहे।अऊ अपन इही भोरहा के सेती ओहा पिरथी के आने जीव जंतु मन के हक ल मारे बर घलो थोरको नी हिचकिचावत हे।लालच के भूत ओला अइसे पोटारे हे…
Read Moreछत्तीसगढी उपन्यास – माटी के बरतन
रामनाथ साहू छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग ले प्रकाशित प्रकाशक : वैभव प्रकाशन, अमीनपारा चौक, पुरानी बस्ती रायपुर (छत्तीसगढ) दूरभाष : 0771-4038958, मो. 94253-58748 आवरण सज्जा : कन्हैया, प्रथम संस्करण : 2017, मूल्य : 200.00 रुपये, कापी राइट : लेखकाधीन समरपन हिन्दी अउ छत्तीसगढी के बरकस साहित्यकार डॉ. बिहारीलाल साहू जी ला सादर समरपित ! अध्याय – 1 दूनों परबत के मांझा म जात वो सॉकर डहर जइसे चलत-चलत जाथे तौ वो पहुँचथे रैनपुर । हाँ …,वो गाँव के नाव रहिस रैनपुर अब ले… घलो वोला वोइसनेहेच कथे…
Read Moreकाँदा कस उसनात हे
कभू घाम कभू पानी, भुँइया हा दंदियात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। दिनमान घाम के मारे , मुँहू कान ललियावत हे । पटकू बाँध के रेंगत हे , देंहे हा पसिनयावत हे। माटी के घर ला उजार के, लेंटर ला बनात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। कूलर पंखा चलत तभो ले , पसीना हा आवत हे । लाइन हा गोल होगे ताहन , भारी दंदियावत हे । दिन में चैन न रात में चैन, मच्छर घलो भुनभुनात हे।…
Read Moreगर्मी छुट्टी (रोला छंद)
बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी। बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी। मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी। खेले खाये खूब,पटे सबके बड़ तारी। किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी। लगे जेठ बइसाख,मजा लेवय सतरंगी। पासा कभू ढुलाय,कभू राजा अउ रानी। मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी। लउठी पथरा फेक,गिरावै अमली मिलके। अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के। धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी। कोसा लासा हेर ,खाय रँग रँग के खाजी। घूमय खारे खार,नहावय नँदिया नरवा। तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा। आमाअमली तोड़,खाय जी नून…
Read Moreदोखही के दुख (लघु कथा)
सुखिया के बिहाव ह जेन दिन लगिस उही दिन ले सुखिया के आंखी मं बिहाव के नेंग-जोंग ह आंखी-आंखी मं झूलत रहिस,कइसे मोर तेल चढ़ही, कइसे माइलोगिन मन सुघ्घर बिहाव गीत गाही, कइसे भांवर परही, कइसे मोर मांग ल मोर सइया ह भरही, तहान जिनगी भर ओकर हो जाहूं अउ ओकरे पाछू ल धर के ससुराल मं पांव ल रखहूं, सास-ससुर, जेठ-जेठानी, देवर- नंनद ह मोर सुवागत करही अउ नान-नान लइका मन ह भउजी, काकी, बड़े दाई, मामी कहिके मोला पुकारही अउ कइसे मोर मयारू ह मोला मया के बंधना…
Read Moreअपन
पहिनथन अपन कपड़ा ल, रहिथन अपन घर म, कमाथन खेत ल अपने, खाथन अपन हाथ ले, लीलथन अपने मुंह ले, सोंचथन घलो, सिरिफ अपने पेट के बारे म। अपन दाई, अपन, अपन ददा अपन, अपन भाई, अपन, अपन बहिनी, अपन अपन देस, अपन अपन तिरंगा, अपन, मरना पसंद करथन अपन धरम म। मानथन घलो अपनेच देबी देवता ल। अपन बेटा-बेटी ए बर तो कमाथन का ? अपन संतान ए ल तो दे पाथन का, हक अपन संपत्ति म ? त, फेर छेड़ना- छाड़ना काबर कोखरो बेटी माई ल? छेड़नाच हे…
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