कहानी : रेलवे टईम टेबुल के भोरहा

मँझन के दू बज गे राहय, मूँड़ मा मोटरा लादे, बाखा मा पेटी चपके, गाँव के मोठडाँट मनखे रामू हा धोती पागा के छूटत ले दउँड़ के रेलवे इसटेसन मा हबरिस, जाड़ के दिन मा घला वोहा पछिना मा नहा डरे राहय, पाछू-पाछू ओकर गोसानिन रेवति अपन दू झन लइका ला धरके हबरिस, वहू पछिना मा लथपथ राहय, वोमन पहिली घँव टरेन चढ़े के साद करे राहय, दूरिहा के सफर, सुने सुनाय गोठ अउ जाड़ के डर मा अड़बड़ अकन समान अउ साल सेवटर ओढ़े लादे राहय। इसटेसन मा पहुँच…

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नोनी मन के खेलई कुदई ह हिरदे में मदरस घोलय

बड़ सुघ्घ्रर लागय नोनी मन के खेले खेल म गाना गवई अऊ ओकर मन के इतरई ह, अभी के समे म वोईसना खेलईया नोनी बाबु देखे बर नई मिलय। अईसने लागथे ओखर मन के पहिचान ह नदा गेहे, हँसई खेलई ह लईका मन के सबो ह, बस्ता के बोझ तरी चपका गेहे। का देहात का शहरिया बस्ता के बोझ ले उबरिस तहाले मोबाइल में मति ह सकला गेहे। कान ह तरसत हे नांगर बईला बोर दे पानी दमोर दे सुने बर, नगरिहा किसान मन खेती बारी बियारा बखरी के काम…

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लघु कथा : ठेकवा नाव ठीक

एक ठन गांव मा ठेकवा नाव के एक-हजयन मइनखे रहाये, ओला अपन ठेकवा नाव बने नइ लागे ता हो हा नाव खोजे बर निकल जथे। ता हो हा एक ठन गांव मा जाथे उही मेरन एक-हजयन माइलोगिन गोबर बिनत रथे ता ओला ओकर नाव पुछथे ता ओ हा अपन नाव लक्ष्मी बाई बाताथे ता ठेकवा हा सोच थे एक-हजयन लक्ष्मी बाई रिहिस तेहा अंग्रेज मन संग लोहा ले रिहिस अउ एक-हजयन ऐ लक्ष्मी बाई ला देख ले गोबर बिनत हे। रस्ता मे उहि कारा ओला एक -हजयन भिखारी मिलथे ता…

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बरसा ह आवत हे!

डोंगरी गुंगवावत हावय,कोरिया फूल महमहावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। भुंईया पहिरे हरियर लुगरा बादर दिखय करिया करिया। मन मतंग होके बेंगवा छत्तीस राग गावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। किसनहा के मन हरसागे। धनहा डोली म धान बोवागे। रोपा,बियासी के बुता म रमके लइहा मतावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। गली -खोर सब चिखला माते। नान्हे नान्हे जम्मो लइका नाचे। नदिया-नरवा,ढोंडगा म बइहा धार बोहावत हावय। छन-छन पैरी बजावत बरखा रानी आवत हावय। रीझे यादव टेंगनाबासा(छुरा)

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बरसा गीत

हरियागे धरती अऊ खेती म धान, कई मन के आगर हें चतुरा किसान। बरसथे बादर, अऊ चमकत हे बिजुरी, नोनी मन हवा संग म खेलथें फुगड़ी। मेड़ पार म अहा तता, भर्री म कुटकी, लपकट लहरावत हे, घुटवा कस लुगरी। सोना बरसाथें – गुलाबी बिहान। कइ मन के आगर हें चतुरा किसान। अरवा अऊ नदिया के पेट हा अघागे डोंगरी के पानी, समुनदर थिरागे। करमा ददरिया अऊ आलहा चनदैनी, चौरा चौरसता म, भाई अऊ बहिनी। गावथें बांचथे – पोथी पुरान। कई मन के आगर हें चतुरा किसान। महर महर केकती,…

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ग़ज़ल : गुलेल

हम बेंदरा अन, उन मंदारी लागत हावैं, धरे गुलेल हे, बड़े सिकारी लागत हावैं। हमरे इहाँ कौनो पूछइया हावै काँहाँ, हम बोबरा उन बरा-सोंहारी लागत हावैं। हाथ मा जेकर राज-पाठ ला सौंपे हम मन, उन राजा कहाँ, बड़े बैपारी लागत हावैं। जउन मनखे हर सीता जी के हरन करीन हे, आज मंदिर के बड़े पुजारी लागत हावैं। जुग के कोढ़िया, ठलहा किंजरत रहिस जउन, खरतरिहा बनगे धरे तुतारी लागत हावैं। बलदाऊ राम साहू 1. बंदर 2. स्वादहीन पकवान 3. बड़ा-पुरी 4. कामचोर 5. जिसके पास काम नहीं (निठल्ले) 6. घुम…

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छत्तीसगढ़िया कहाबो, छत्तीसगढ़ी बोलबो अउ चल संगी पढ़े ला

छत्तीसगढ़िया कहाबो अपन महतारी भाखा ल गोठियाबो, छत्तीसगढ़िया कहाबो,संगी छत्तीसगढ़िया कहाबो। लहू म भर के भाखा के आगी,छत्तीसगढ़ी ल गोठियाबो। छत्तीसगढ़िया अब हम कहाबो, छत्तीसगढ़िया कहाबो। अमर शहीद पुरखा के आंधी ल, अपन करेजा म जराबो। बलदानी वीरनारायण जइसे, छत्तीसगढ़ के लईका कहाबो। अपन माटी अपन मया ल, छत्तीसगढ़ महतारी बर लुटाबो। छत्तीसगढ़िया कहाबो भईया, छत्तीसगढ़िया कहाबो। बघवा असन दहाड़ के,छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाबो। अपन महतारी भाखा ल जगाबो। महतारी भाखा ल जगाबो। छत्तीसगढ़ के माटी के, करजा ल अब छुटाबो। छत्तीसगढ़िया कहबो संगी छत्तीसगढ़िया कहाबो। छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा, ल…

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ग़ज़ल : गीत ग़ज़ल ल गावत हावस

गीत ग़ज़ल ल गावत हावस, का बात हे? सच दुनिया के जानत हावस, का बात हे? अंतस मा तो पीरा हावै गजब अकन, पीरा ला समझावत हावस, का बात हे? पाप के दहरा मा बुड़े मनखे मन ला, गंगा पार लगावत हावस, का बात हे? कुंभकरन कस सुते हावैं, इहाँ जउन मन, हाँक पार जगावत हावस, का बात है? साँप बरोबर मेरड़ी मारे हावै जउन, उनला दूध पियावत हावस, का बात है? बलदाऊ राम साहू 1,गजब अकन=बहुत 2. दहरा=नदी का गहरा भाग 3. बूड़े=डूबे 4. मनखे=मनुष्य 5.मेरड़ी= कुंडली

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गजल : कतको हे

भाई भाई ल,लड़इय्या कतको हे। मीत मया ल, खँड़इय्या कतको हे। लिगरी लगाये बिन पेट नइ भरे, रद्दा म खँचका करइय्या कतको हे। हाथ ले छूटे नही,चार आना घलो, फोकट के धन,धरइय्या कतको हे। रोपे बर रूख,रोज रोजना धर लेथे, बाढ़े पेड़ पात ल,चरइय्या कतको हे। जात – पात भेस म,छुटगे देश, स्वारथ बर मरइय्या कतको हे। दूध दुहइय्या कोई,दिखे घलो नहीं, फेर दुहना ल,भरइय्या कतको हे। पलइया पोंसइया सिरिफ दाई ददा, मरे म,खन के,गड़इय्या कतको हे। जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” बाल्को(कोरबा)

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बेटी के सुरता

सोचथंव जब मन म, त ये आंखी भर जाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। का पानी, का झड़ी,बारहों महिना करथे काम। का चइत, का बइसाख, तभो ले नइ लागय घाम। धर के कटोरा, जब गली-गली भीख मांगथे। तब मोला,वो बेटी के सुरता आथे।। बेटा ह पछवागे, बेटी ह अघवागे। देस के रक्छा करे बर, बेटी आघु आगे। नीयत के खोटा दरिंदा मन, जब वोला सिकार बनाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। घर दुवार छोड़, जब बेटी जाथे ससुरार। बस एक दहेज खातिर, बेटी ल देथे मार।…

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