छत्तीसगढ़ महतारी

बड़े बिहनिया उठ जा संगी खेत हमर बुलावत हे, पाके हावय धान के बाली महर महर महकावत हे। टप टप टपके तोर पसीना माथा ले चुचवावत हे, तोर मेहनत ले देखा संगी कई झन जेवन पावत हे। ये धरती ह हमर गिंया सबके महतारी ये कोरा म रखके सब ल पोषय एहि हमर जिंदगानी ये। अपन करम ले सरग बनाबो माटी हमर चिन्हारी ये बड़े भाग ले जन्म मिलिस छत्तीसगढ़ महतारी ये। अविनाश तिवारी

Read More

बाहिर तम्बू छोड़ के, आबे कब तैं राम

गली गली मा देख लव,एके चरचा आम । पाछु सहीं भुलियारहीं ,धुन ये करहीं काम । अाथे अलहन के घड़ी,सुमिरन करथें तोर । ऊंडत घुंडत माँगथे ,हाथ पाँव ला जोर । मतलब खातिर तोर ये ,दुनिया लेथे नाँव । जब बन जाथे काम हा, पुछे नही जी गाँव । कहना दशरथ मान के ,महल छोड़ के जाय । जंगल मा चउदा बछर ,जिनगी अपन पहाय । तुम्हरो भगत करोड़ हे, बाँधे मन मा आस । राम लला के भाग ले, जल्द कटय बनवास । फुटही धीरज बाँध ये, मानस कहूँ…

Read More

भूख के जात

मरे के जम्मो कारन के कोटा तय रहय, फेर जब देखते तब, सरकारी दुकान ले, दूसर के कोटा के रासन सरपंच जबरन लेगय तइसने, भूख हा, दूसर कोटा के मउत नंगाके, मनखे ला मारय। यमदूत मन पिरथी म भूख ला खोजत अइन। इहां अइन त देखथे, भूख के कइठिन जात। सोंच म परगे भगवान कते भूख ला लाने बर केहे हे। सबे भूख ला लेगे अऊ भगवान के दरबार म हाजिर कर दीस। भूख जइसे भगवान के आगू म खड़ा होइस, भगवान बरस गीस ओकर बर। कस रे तोला कहीं…

Read More