गीत ग़ज़ल ल गावत हावस, का बात हे? सच दुनिया के जानत हावस, का बात हे? अंतस मा तो पीरा हावै गजब अकन, पीरा ला समझावत हावस, का बात हे? पाप के दहरा मा बुड़े मनखे मन ला, गंगा पार लगावत हावस, का बात हे? कुंभकरन कस सुते हावैं, इहाँ जउन मन, हाँक पार जगावत हावस, का बात है? साँप बरोबर मेरड़ी मारे हावै जउन, उनला दूध पियावत हावस, का बात है? बलदाऊ राम साहू 1,गजब अकन=बहुत 2. दहरा=नदी का गहरा भाग 3. बूड़े=डूबे 4. मनखे=मनुष्य 5.मेरड़ी= कुंडली
Read MoreYear: 2018
गजल : कतको हे
भाई भाई ल,लड़इय्या कतको हे। मीत मया ल, खँड़इय्या कतको हे। लिगरी लगाये बिन पेट नइ भरे, रद्दा म खँचका करइय्या कतको हे। हाथ ले छूटे नही,चार आना घलो, फोकट के धन,धरइय्या कतको हे। रोपे बर रूख,रोज रोजना धर लेथे, बाढ़े पेड़ पात ल,चरइय्या कतको हे। जात – पात भेस म,छुटगे देश, स्वारथ बर मरइय्या कतको हे। दूध दुहइय्या कोई,दिखे घलो नहीं, फेर दुहना ल,भरइय्या कतको हे। पलइया पोंसइया सिरिफ दाई ददा, मरे म,खन के,गड़इय्या कतको हे। जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” बाल्को(कोरबा)
Read Moreबेटी के सुरता
सोचथंव जब मन म, त ये आंखी भर जाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। का पानी, का झड़ी,बारहों महिना करथे काम। का चइत, का बइसाख, तभो ले नइ लागय घाम। धर के कटोरा, जब गली-गली भीख मांगथे। तब मोला,वो बेटी के सुरता आथे।। बेटा ह पछवागे, बेटी ह अघवागे। देस के रक्छा करे बर, बेटी आघु आगे। नीयत के खोटा दरिंदा मन, जब वोला सिकार बनाथे। तब मोला, वो बेटी के सुरता आथे।। घर दुवार छोड़, जब बेटी जाथे ससुरार। बस एक दहेज खातिर, बेटी ल देथे मार।…
Read Moreमाटी हा महमहागे रे
गरजत घुमड़त, ये असाढ़ आगे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ रक्सेल के बादर अऊ बदरी करियागे, पांत पांत बगुला मन सुघ्घर उड़ियागे। कोयली मन खोलका म चुप्पे तिरियागे, रूख-रई जंगल के आसा बंधागे।। भडरी कस मेचका मन, टरटराये रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे ॥ थारी सही खेत हे, पटागे खंचका-डबरा, रात भर जाग बुधु, फेंकिस खातू कचरा। कांदा बूटा कोड़ डारिन, नइये गोंटा खपरा, मनसा हा खेत रेंगिस, धरके धंउरा कबरा॥ कुसुवा-टिकला के घांटी, घनघनागे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ गुरमटिया सुरमटिया माकड़ो अऊ…
Read Moreलोक कथा : लेड़गा के कड़ही
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झन डोकरी रहय। डोकरी के एक झन बेटा रहय, गांव भर के मनखे ओला लेड़गा कहय। लेड़गा ह काम-बुता कुछु करय नहीं बस गोल्लर कस झड़के अउ गली-गली किंजरय। डोकरी बपरी ह बनी-भूती करके अपन गुजर-बसर करत रहय। एक दिन डोकरी ह किहिस-‘‘ कस रे धरती गरू लेड़गा। अब तो तैहा जवान होगे हस अउ मोर जांगर थकगे हे। कहीं काम-धाम नइ करबे तब हमर गुजारा कइसे होही? तोर देहें पांव भर बाढ़े हे अक्कल-बुध ला घला बढ़ाके कुछु काम करबे तभे तो…
Read Moreपांच चार डरिया
१. अनचिन्हार ल अपन झन बना, अपन ल तैं तमासा झन बना। अपन हर तो अपने होथे जी, अपन ल कभु दिल ले झन भगा।। २. ढ़ोगी मन बहकावत आय हे, बिस्वास ल जलावत आय हे। दागत हे जिनगी के भाग ला- गुरु-चेला ला बढ़ावत आय हे।। ३ जिनगी ह एक कीमती खजाना ये, खरचा करे के पहिली कमाना हे। जेन सांनति ल खोजत हच बाहिर- मन के भीतर वोला सजाना हे।। ४. बहत नदी खोजथे -पार के ठांव, घाम खोजथे-ठंडा-ठंडा छांव। सुख.दुख ल जेन बने समझथे- वो रेंगइया के…
Read Moreकिसान के पीरा
बढ़िया पानी पाके किसान मन अपन काम काज के सिरी गनेस कर दे हें। समेसर घलव खुसी-खुसी बिहनिया ले खेत आ गे हवय, रोपा चलत हे। समेसर कमिया मन ल देखत खेत म खड़े रहिस के अचानक ओकर धियान ओकरे तीर म मार फन फइलाये, बिजरावत बइठे नाग देवता उप्पर चल दिस। समेसर सांप सूंघे कस खड़े होगे। नागदेवता से ओकर नजर मिलिस त ओ ह अउ फुस्सsssss करके ओला डरवा दिस। समेसर के आँखि म एक ठन समाचार झूले लगिस जेन ल ओ दुये चार दिन पहिली पढ़े रहय…
Read Moreजगत गुरू स्वामी विवेकानन्द जी महराज के जीवन्त संदेश, मंत्र औ समझाईस
राजभाषा छत्तीसगढ़ी मा काव्यात्मक प्रवर्तक- आचार्य हर्षवर्धन तिवारी पूर्व कुलपति, अध्यक्ष-ए.एफ.आर.सी., म.प्र. ए सुरता मा के स्वामी जी महराज अपन लईकई के दू साल छत्तीसगढ़ के रायपुर मा बिताईस छत्तीसगढ़ के जंगल के रास्ता ल बैलगाड़ी मा पार करत अपन जीवन के आध्यात्म के सबसे पहली अनुभूति ल पाईस ओकरे सेती ओकर जिन्दगानी के किताब म छत्तीसगढ ल ओकर अध्यात्मिक पैदाईस के जनमभूमि लिखेगे हे। फेर मैं चाईहौं के छत्तीसगढ़ के लइका लोग मन जिंदगानी भर सुरता राखंय ओकर उपदेष उद्गार ल अपन जिंदगानी म अपनाय बर औ सुकता राखे…
Read Moreगंगार : नान्हें कहिनी
(1) मनखेमन गड़े धन के पाछू भागत रइथे, कमाय बर झन परे अऊ फोकट मा धन पा जई, एकझिन मनखे बन मा जात रइथे, ता एक जगहा मा एकठन गंगार देखते, जेहर लाली रंग के कपड़ा मा बंधाय रइथे, ओहर ओला छूये बर डराथे, काबर कि वोहर सूने रइथे, ओला बिना मंतरा मा बाँधे छू देते, ता वो मनखे हर मर जाथे, आके ओहर आपन संगी मनला बताथे, ओकर संगी मन बाम्हन देवता मेर जाथे, सबो मिलजूर के बन कोति जाथे, गंगार ला देख के बाम्हन देवता मंतरा पढ़थे, देखे…
Read Moreबरसा के दिन
टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे। घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे। आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे। बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे । घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे। बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे । घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे। घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे। ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना…
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