छत म मेहा बइठे रेहेव, तभेच दिमाक मोर ठनकिस। तुरतेच दिमाक ह मोर तीर, एकठन सवाल ल पटकिस।। कि बादर ह बरसे निहि, काबर ये हा ठड़े हवय। कोनो सराप दे दे हवय, धून सिकला म जड़े हवय।। कब गिरहि पानी कहि के, खेत म किसान खड़े हवय। एति-ओति निहि ओखर आँखि, बादर म गड़े हवय।। किसान मन ह बस ऐखरेच बर तरसत हवय। कि काबर ये साल बादर नी बरसत हवय।। ए साल किसान मन पानी ल सोरियावत हवय। इहिच ल सोरिया के ऊखर मुँहू सुपसुपावत हवय।। तरिया, नरवा,…
Read MoreYear: 2018
लोक कथा : लेड़गा मंडल
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झ लेड़गा रहय। काम बुता कुछ नइ करय। ओखर दाई ओला अड़बड़ खिसयावय। लेड़गा के दाई जब सियान होगे अउ लेड़गा जवान, तब रिस के मोर डोकरी ओला अड़बड़ गारी-बखाना दिस। लेड़गा हाथ जोड़के किहिस-‘‘ले दाई अब जादा झन खिसया। काली ले महुं कुछु बुता काम करके चार पैसा कमा के तोर हाथ में दुहूं। डोकरी खुश होगे अउ बिहान दिन आज मोर बेटा ह कमाय बर जाही कहिके लेड़गा बर सात ठन मुठिया रोटी रांध के मोटरी म जोर दिस। लेड़गा रोटी…
Read Moreजिनगी के प्रतीक हे भगवान जगरनाथ के रथ यात्रा
भगवान जगरनाथ के रथ यात्रा ल जिनगी जिये के प्रतीक कहे जाथे। जइसने रथ यात्रा के दिन भगवान ह अपन घर ले अपन भाई-बहनी के संग निकलते अउ उखर संगे-संग यात्रा करे बर आघु बड़थे, वइसने मनखे मन के जिनगी म अपन भीतर के विचार अउ गुन ल उमर भर संग ले के रेंगें ल पड़थे, विचार के संगे-संग अपन सगा संबंधी परिवार ल सब्बो ल उमर भर संग म धर के चलना चाहि, जइसे भगवान जगरनाथ ह अपन परिवार अपन भाई-बहनी के संग ल नइ छोडिस वइसने सब्बो मनखे…
Read Moreदाई के होगे हलाकानी
दाई के होगे हलाकानी रदरद रदरद गिरत हे पानी, दाई के होगे हे हलाकानी। घेरी बेरी देखे उतर के अँगना में, माड़ी भर बोहात हे गली में पानी। लकड़ी ह फिलगे छेना ह फिलगे, चूलहा में तको ओरवाती ह चुहगे। रांधव रंधना कईसे बड़ परशानी, दाई खिसयाय का बताव कहानी। झनन झनन झींगुरें चिल्लाये, टरर टरर मेचका नरियाये। सरफर सरफर मछरी चढ़त जाये, बिला ले केकरा झाकय फेर खुसर जाय। रदरद रदरद गिरत हे पानी, बरत नईये आगी बताव का कहानी। दाई के होवत हे हलाकानी, माड़ी भर बोहात हे…
Read Moreगति-मुक्ति : छत्तीसगढी कहिनी संग्रह
गति-मुक्ति ( छत्तीसगढी कहिनी संग्रह ) रामनाथ साहू वैभव प्रकाशन रायपुर ( छ.ग. ) छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित गति-मुक्ति ( छत्तीसगढी कहिनी संग्रह ) समरपन छत्तीसगढी अऊ हिन्दी के समरथ साहित्यकार श्री अंजनी कुमार ‘अंकुर’ ला मोती अऊ धागा 1. छानही 2. बीज 3. चक्का जाम 4. काकर शहर काकर घर 5. गणित के पाठ 6. पूजा-आरती 7. टिकट 8. गति-मुक्ति 9. नडउकरी 10. गंवतरी 11. कोंचई पान के इड्हर 12. ददा-बेटा 13. छाया-अगास 14. सुरबईहा छानही तीनों के तीनों छानही हर एके कोती रहिस,…
Read Moreपतंजलि के योग दर्शन, बाल्मिकी मूल रामायण, ईशावास्योपनिषद : अनुवाद
छत्तीसगढी कवित्त मं मुनि पतंजलि के योग दर्शन अउ समझईस बाल्मिकी मूल रामायण रचयिता डॉ हर्षवर्धन तिवारी पूर्व कुलपति प्रकाशक श्री राम-सत्य लोकहित ट्रस्ट ज्ञान परिसर पो.आ. रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर ( छ.ग.), मो. 09977304050 अनुक्रमणिका भाग-एक छत्तीसगढी कवित्त मं मुनि पतंजलि के योग दर्शन अउ समझईस 7-84 भाग-दो बाल्मिकी मूल रामायण 85-104 भाग-तीन ईशावास्योपनिषद 105-110 त्याग का अध्यात्म । जगत गुरू स्वामी विवेकानन्द का आध्यात्मिक खोज तथा मानवता और विश्व धर्म 115–126 परिशिष्ट श्री राम सत्य लोकहित ट्रस्ट की कार्य शृंखला 1996-2014 पतंजलि के योगसूत्र ह आध्यात्म साधना के मंत्र…
Read Moreमोर गाँव के बिहाव
नेवता हे आव चले आव मोर गाँव के होवथे बिहाव। घूम घूम के बादर ह गुदुम बजाथे मेचका भिंदोल मिल दफड़ा बजाथे रूख राई हरमुनिया कस सरसराथे झिंगुरा मन मोहरी ल सुर म मिलाथे टिटही मंगावथे टीमकी ल लाव।।1।। असढ़िया हीरो होण्डा स्प्लेण्डर म चढ़थे मटमटहा ढोड़िहा अबड़ डांस करथे भरमाहा पीटपीटी बाई के पाछू घुमथे घुरघुरहा मुढ़ेरी बिला ले गुनथे चोरहा सरदंगिया डोमी खोजै दांव।।2।। बाम्हन चिरई मन बने हे सुहासीन अंगना परछी भर चोरबीर चोरबीर नाचीन कौंआ चुलमाटी दंतेला बलाथे झुरमुट ले बनकुकरी भड़ौनी गाथे झूमै कुकरी कुकरा…
Read Moreलोक कथा : लेड़गा के बिहाव
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव म एक गरीब लेड़गा रहय। ये दुनिया म लेड़गा के कोन्हों नइ रिहिस। दाई रिहिस तउनो ह कुछ समे पहिली गुजर गे। लेड़गा ह बनी-भूती करके भाजी-कोदई, चुनी-भूंसी खाके अपन गुजर बसर करत रहय। सम्पत्ति के नाव म लेड़गा के एक झोपड़ी भर रहय तब उही झोपड़ी के आधा म पैरा के खदर छानी रहय अउ आधा ह अइसने खुल्ला। एक ठन गाय रहय जउन ह आधा भीतरी तब आधा बहिरी बंधाय। एक ठन हउला रहय तहु ह नो जगह ले टोड़का रहय जउन ला…
Read Moreकल्चर बदल गे
पहिली के जमाना मा साझा-परिवार रहिन। हर परिवार मा सुविधा के कमी रहिस फेर सुख के गंगा बोहावत रहिस। सियान मन के सेवा आखरी साँस तक होवत रहिस।अब कल्चर बदल गे, साझा परिवार टूट गे। सुविधा के कोनो कमी नइये, फेर सुख के नामनिशान नइये। लोगन आभासी सुख के आदी होवत हें। सियान मन वृद्धाश्रम जावत हें। जउन मन वृद्धाश्रम नइ जावत हें, उंकर घर मन वृद्धाश्रम सहीं बन गेहे। ककरो बेटा ऑस्ट्रेलिया मा, ककरो अमेरिका मा, ककरो कनाडा मा, ककरो सिंगापुर मा। अपन जिनगी के सरी सुख ला त्याग…
Read Moreअसाढ़ आगे
चारो मुड़ा हाहाकर मचावत, नाहक गे तपत गरमी, अउ असाढ़ आगे। किसान, मजदूर, बैपारी, नेता,मंतरी,अधिकारी,करमचारी… सबके नजर टिके हे बादर म। छाए हे जाम जस करिया-करिया, भयंकर घनघोर बादर, अउ वोही बादर म, नानक पोल ले जगहा बनावत, जामत बीजा जुगुत झाँकत हे, समरिद्धी। केजवा राम साहू ”तेजनाथ” बरदुली, कबीरधाम (छ. ग.)
Read More