आल्हा छंद : झाँसी के रानी

बरस अठारा में रानी ने, भरिस हुंकार सीना तान। भागय बैरी ऐती तेती, नई बाचय ग ककरो प्राण। गदर मचादिस संतावन में, भाला बरछी तीर कमान। झाँसी नई देवव बोलीस, कसदिच गोरा उपर लगाम। राव पेशवा तात्या टोपे, सकलाईस जब एके कोत। छोड़ ग्वालियर भगै फिरंगी, ओरे ओर अऊ एके छोर। चना मुर्रा कस काटय भोगिस, चक रहय तलवार के धार। कोनों नई पावत रिहिस हे, झाँसी के रानी के पार। चलय बरोड़ा घोड़ा संगे, त धुर्रा पानी ललियाय। थरथर कांपय आँधी देखत, कपसे बैरी घात चिल्लाय। मारे तोला अब…

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अपने घर म बिरान हिंदी महिना

हमर देस म आजकल हिंदू अउ हिंदू संस्कृति के अब्बड़ चिंता करे जावत हे। साहित्यकार अउ संस्कृति करमी मन नंदावत रीत-रिवाज अउ परंपरा के संसो म दुबरात जावत हे। फेर एक ठन बिसय अइसे हे जेकर डाहन काखरो धियान नइ गे हे तइसे लगथे। वो बिसय हे हिंदी महिना अउ तिथी। हिंदी महिना के ज्ञान प्रायमरी कक्छा म देय के औपचारिकता के बाद कोनो मनखे ल हिन्दी महिना अउ तिथी के चिंता करे के सुध नइ राहय। आज कोनो भी अच्छा पढ़े-लिखे आदमी ल हिंदी महिना अउ तिथी बताय ल…

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खेती मोर जिंनगी

नांगर धर के चले नंगरिहा, बइला गावय गाना। ढोढिया,पीटपिटी नाचय कुदय, मेचका छेड़य ताना। रहि-रहि के मारे हे गरमी ह, तन-मन मोरो जुड़ा जाही। अब तो अइसे बरस रे बादर, भूइयां के पियास बुझा जाही। । धान बोवागे बीजहा छीतागे, कतका करिहंव तोर अगोरा ल। उन्ना होगे आ के भर दे, मोर धान के कटोरा ल। गांव गली हो जाही उज्जर, धरती घलो हरिया जाही। अब तो अइसे बरस रे बादर, भूइयां के पियास बुझा जाही। । तहुं तो थोरकुन तरस खा, पथरागे मोर जांगर ह। अब तो आ के…

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धरम बर तुकबंदी

आड़ लेके धरम के, सत्ता सुख के छांव अस्त्र धरे कोनो हाथ म, कोनो घुंघरू बांधे पांव छुरी छुपी हे हाथ मं, मुख म बसे हे राम कंहूं हजरत के नाम ले, करथें कत्लेआम भोला बचपन विश्व म, भाला धरे हे हाथ भरे जवानी आज इंखर, छोड़त हवय रे साथ कराहत हे इंसानियत, चिल्लावत चारो डहर धरम हमार मौन हे, सत्ता के नईहे ठउर कोई कहे अल्लाह बड़े, कोई कहे श्रीराम कोई कहे ईसा सही, कोई कहे सतनाम कहूं धरम के नाम म, चलत हवे बंदूक कहूं धरम के नाम…

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छत्तिसगढि़हा कबि कलाकार

पानी हॅ जिनगी के साक्षात स्वरूप ये। जीवन जगत बर अमृत ये। पानी हँ सुग्घर धार के रूप धरे बरोबर जघा म चुपचाप बहत चले जाथे। जिहाँ उतार-चढ़ाव, उबड़-खाबड़ होथे पानी कलबलाय लगथे। कलकलाय लगथे। माने पानी अपन दुःख पीरा, अनभो अनुमान अउ उछाह उमंग ल कलकल-कलकल के ध्वनि ले व्यक्त करथे। पानी के ये कलकल- कलकल ध्वनि हँ ओकर अविचल जीवटता, सात्विक अविरलता अऊ अनवरत प्रवाहमयता के उत्कट आकांक्षा ल प्रदर्सित करथे। ओइसने मनखे तको अपन सुख-दुख ल, अंतस के हाव भाव ल गा-गुनगुना के व्यक्त करथे। वोहँ अपन…

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अब्बड़ सुग्घर मोर गांव

जिहाँ पड़की परेवना, सुवा अउ मैना, बढ़ नीक लगे, छत्तीसगढ़ी बोली बैना, कोयली ह तान छेड़े अमरइया के छांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव जिहाँ नांगर, बईला संग नंगरिहा, गवाय करमा ददरिया, आमा अमली के छईहा, चटनी संग बासी सुहाथे बढ़िया, पैरी के रुनझुन संवरेगी के पांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव डोकरी दाई के कहानी, नरवा नदिया के पानी, अब्बड़ सुग्घर इहां के जिनगानी, ठउर ठउर मिलही मितान के मितानी, कतेक ल मैंहा बतांव, अब्बड़ सुग्घर हमर गंवई गांव। – धर्मेन्द्र डहरवाल “मितान” सोहागपुर जिला बेमेतरा

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परकीति के पयलगी पखार लन

आवव, परकीति के पयलगी पखार लन। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन। परकीति के पयलगी पखार लन।। धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।। रुख-राई फूल-फल देथे, सुख-सांति सकल सहेजे। सरी संसार सवारथ के, परमारथ असल देथे। । धरती के दुलरवा ला दुलार लन। जीयत जागत जतन जोहार लन।। परकीति के पयलगी पखार लन।। 1 रुख-राई संग संगवारी, जग बर बङ उपकारी। अन-जल के भंडार भरै, बसंदर के बने अटारी। । मत कभु टँगिया, आरी, कटार बन। घर कुरिया ल कखरो उजार झन।। धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।। 2 रुख-राई…

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उल्‍हुवा पान : फिल्‍म समीक्षा – छत्तीसगढ़ी फिलिम राजू दिलवाला

फिलिम के हीरो प्रकाश अवस्थी जी के पहचान फिलिम में एक अलगे अंदाज म होइस हवे। ये फिलिम म धरम और जात बिरादरी ऊंच नीच के भावना ले दुरिहा पियार अउ मया के जेन रूप होथे तेन ला दिखाय गे हवे, अउ ये फिलिम म हमर स्वच्छ भारत अभियान के जेन मिशन हे तेखर बारे में भी बने किसम से समझाय गे हवे। फिलिम के गाना मन हर मज़ेदार हे अउ जेन लोकेशन हे तेहु भारी सुघ्घर हवे। फिलिम म मनाली के बर्फीला घाटी के जेन सीन दिखाय हे ते…

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कहिनी : राजा नवयुग के मंत्रीमंडल

सतराज नाव के बड़ सुग्घर राज्य मा सत्यबीर सिंह नाव के प्रतापी राजा राज करय, वइसे तो ओखर नाम बीर सिंग ही रीहिस, फेर जब वोहा राजा बनिस तब राज परंपरा निभाय खातिर बीर सिंह के नाव के आघू मा सत्य जुडगे, ये परंपरा ला उँखर पुरखा मन तइहा जमाना ले चलाय रीहिन, उँखर कहना रीहिस कि राजा ला गियानी अउ पराकरमी होये के संग सत्यवान होना जरूरी हे, अइसे भी सत्य अजेय अमर हे, ये गोठ ला सबो झन तइहा ले मानत हे, अउ वोमन सत्य ला अपन कुलदेवँता…

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बरस जा बादर, किसानी के दिन अउ योग करो

बरस जा बादर बरस जा बादर, गिर जा पानी, देखत हावन। तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन। आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे। गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे। सुक्खा हावय, खेत खार हा, कइसे बोवन। बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन। झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन। सबो किसान के, सुसी बुता दे, पाँव परत हन। किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब, नाँगर धरे किसान। खातू कचरा डारत हावय, मिल के दूनों मितान। गाड़ा कोप्पर टूटहा परे, वोला अब सिरजावे। खूंटा पटनी…

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