छत्तीसगढ़ के हरियर चाँउर, होथे सबले बढ़िया एखर बारे मा नइ जाने, सब्बो छत्तीसगढ़िया ।। दुरुग अउर धमतरी जिला मा, एखर खेती होथे फेर अभी कमती किसान मन, एखर बीजा बोथे।। सन् इकहत्तर मा खोजिन अउ नाम रखिन कस्तूरी छत्तीसगढ़ महतारी के ये, हावय हरियर चूरी।। वैज्ञानिक मन शोध करत हें, कइसे बाढ़े खेती कस्तूरी के फसल दिखय बस, जेती जाबो तेती।। हर किसान ला मिलै फायदा, ज्यादा मनखे खावँय छत्तीसगढ़ के कस्तूरी के, गुन दुनिया मा गावँय।। ग्लुटेन एमा नइ चिटिको, रखे वजन साधारण कैंसर के प्रतिरोधक क्षमता, क्लोरोफिल…
Read MoreYear: 2018
कबीर अउ बेद पुरान
कबीर साहेब ला महान संत माने गे हवय। अइसे ओला धर्म अउ पाखंड के आलोचक घलाव कहे जाथय। कबीर पहिली भारतवासी आय जौन सबो मनखे जात बर एक बरोबर धरम के बखान करे हवय। अंधबिस्वास, कुरीति अउ धरम पाखंड के बर भारी ताना मारे हवय। कबीर ला सच बोले के सेती सत्य कबीर घलाव कहे जाथय। कबीर के जनम अउ जिनगी घलाव एक बिचित्र घटना ले कम नइ हे। मुसलमान घर पालन पोसन होईस अउ गुरु रामानंद के चेला बनीस। जादा पढ़े लिखे तो नइ रहिस फेर जतका परवचन मा…
Read Moreदेखे हँव
बद ले बदतर हाल देखे हँव। काट के करत देखभाल देखे हँव। शेर भालू हाथी डरके भागे बन ले, गदहा ल ओढ़े बघवा खाल देखे हँव। काखर जिया म जघा हे पर बर बता, अपन मन ल फेकत जाल देखे हँव। जीयत जीव जंतु जरगे मरगे सरगे, बूत बैनर टुटे फुटे म बवाल देखे हँव। सेवा सत्कार करे म मरे सब सरम, चाटुकारिता म कदम ताल देखे हँव। काखर उप्पर करके भरोसा चलँव, चारो मुड़ा म पइधे दलाल देखे हँव। भाजी पाला कस होगे कुकरी मछरी, मनखे घलो ल होवत…
Read Moreमानसून
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। मया करथों मैं तोला,रे घात मानसून। का पैरा भूँसा अउ का छेना लकड़ी। सबो चीज धरागे रीता होगे बखरी। झिपारी बँधागे , देवागे पँदोली। काँद काँटा हिटगे,चातर हे डोली। तोर नाम रटत रहिथों,दिन रात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून—–। तावा कस तीपे हे,धरती के कोरा। फुतका उड़त हे , चलत हे बँरोड़ा। चितियाय पड़े हे,जीव जंतु बिरवा। कुँवा तरिया रोये,पानी हे निरवा। पियास मरत हे,डारपात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। झउँहा म जोरागेहे ,रापा कुदारी। बीज भात घलो,जोहे अपन बारी।…
Read Moreचिरई चिरगुन (फणीश्वरनाथ रेणु के कहानी आजाद परिन्दे)
जान चिन्हार – हरबोलवा – 10-11 साल के लइका फरजनवा – हरबोलवा के उमर के लइका सुदरसनवा – हरबोलवा के उमर के लइका डफाली – हरबोलवा के उमर के भालू के साही लइका भुजंगी – ठेलावाला हलमान – भाजीवाला करमा – गाड़ीवाला मौसी – हरबोलवा की मौसी हलधर – सुदरसनवा के ददा चार लइका – डफाली के संगीमन चार लइका – सुदरसनवा के संगीमन दिरिस्य: 1 खोर मा भुजंगी अउ हलमान लड़त हवंय, हरबोलवा देखत हवय। भुजंगी – साला तोर बहिनी ला धरों। हलमान – बोल साला, ठड़गी के डउका।…
Read Moreआगे पढ़ई के बेरा : मोर लइका ला कहाँ पढ़ांव
गरमी के छुट्टी अब पूरा होवइया हे।नवा बच्छर (सत्र)मा लइका मन के भरती इस्कूल मा सुरु होवइया हे।कालेज मा भरती बर घलो आनलाइन अवेदन सुरु होवत हे।अदला बदली वाले सरकारी करमचारी मन अपन लइका ल नवा जगा के इस्कूल मा भरती कराय के बेवस्था मा लगे हे।अब सब लइका के दाई ददा पालक मन ला संसो हो गे हवय ! मोर लइका ला कहाँ पढ़ाहूं। संतराम के ददा हा सहर के अंगरेजी इस्कूल मा अपन नतनीन अवनी ला भरती कराय बर अबड़ सउँख करके गय रहिस।उहाँ के बड़े मास्टरिन हा…
Read Moreमानसून मा : कुकुभ छंद
फिर माटी के सोंधी खुशबू,फिर झिंगुरा के मिठ बानी। मानसून मा रद रद रद रद,बादर बरसाही पानी। छेना लकड़ी चाउँर आटा,चउमासा बर जतनाही। छाता खुमरी टायच पनही,रैन कोट सुरता आही। नवा आसरा धरे किसानन,जाग बिहनहा हरषाहीं। बीज-भात ला जाँच परख के,नाँगर बइला सम्हराहीं। गोठ किसानी के चलही जी,टपराही परवा छानी। मानसून मा रद रद रद रद,बादर बरसाही पानी। मेछर्रा बत्तर कीरा मन,भुलका फूटे घर आहीं। बोटर्रा पिंयर भिंदोल मन,पँड़वा जइसे नरियाहीं। अहरू बिछरू के डर रहही,घर अँगना अउ बारी मा। बूढ़ी दाई टीप खेल ही,लइका के रखवारी मा। मच्छर बढ़ही…
Read Moreमोर देश के किसान
नांगर बईला धर निकलगे, बोय बर जी धान, जय हो, जय हो जी जवान , मोर देश के किसान। बरसत पानी, घाम पियास में जांगर टोर कमाथस, धरती के छाती चीर के तैहा, सोना जी उपजाथस, माटी संग में खेले कूदे, हरस माटी के मितान, जय हो, जय हो जी जवान, मोर देश के किसान। सुत उठ के बड़े फजर ले माटी के करथस पूजा, तोर सही जी ये दुनिया मे नई है कोनो दूजा, दुनिया भर के पेट ल तारे, तै भुईया के भगवान, जय हो, जय हो जी…
Read Moreगांव के सुरता
होवत बिहनिया कुकरी-कुकरा, नींद ले जगावय। कांव-कांव करत चिरई-चुरगुन, नवा संदेसा सुनावय। बड़ निक लागय मोला, लईका मन के ठांव रे।…… आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।…… भंवरा बांटी के खेल खेलन, डूबक-डूबक नहावन। डोकरा बबा खोजे ल जावय, गिरत हपटत भागन। आवत-जावत सुरता आवय, डबरी के पीपर छांव रे।……. आज घलो सुरता आथे, मोर मया के गांव रे।।……… सिधवा मनखे गांव के, मंदरस कस बोली। बड़ सुघ्घर लागय मोला, डोकरी दाई के ठोली। सत जेकर ईमान धरम, लछमी गाय के पांव रे।…… आज घलो सुरता आथे,…
Read Moreपंडवानी के सुर चिरैया-तीजन बाई
जब हमन नान्हे-नान्हे रहेन तब रेडियो म जइसे सुनन-“बोल व§न्दावन बिहारी लाल की जय” अतका सुनते साठ हमन जान डारन कि अब तीजन बाई के पंडवानी शुरू होवइया हे अउ रेडियो तिर बने चेत लगा के बइठ जात रहेन । हमन ला पंडवानी सुने म जतेक मजा आवय तेखर ले जादा मजा तीजन बाई के बोली-भाखा, अंदाज अउ पंडवानी गायन के शैली म आवय । पहिली दूरदर्शन में जब तीजन बाई के भाखा सुनन तब कोनो मेर रहितेन दउड़त आवन तीजन बाई ला देखे खातिर। ओखर रूप-रंग, पहिनावा-ओढ़ावा, गहना-गुरिया के…
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