दाई के मया अऊ ददा के गारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। सुवारी के रिस अऊ लईका के किलकारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठी भर पीरा अउ भरपेट लचारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। हिरदे के निरमल;नी जानन लबारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। कोठा म धेनु अऊ छोटकुन कोला बारी। बस अतकी हमर पूंजी संगवारी। रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)
Read MoreYear: 2018
व्यंग्य : चुनाव के बेरा आवत हे
अवईया समे मा चुनाव होवईया हे, त राजनीतिक दाँव-पेंच अउ चुनाव के जम्मों डहर गोठ-बात अभी ले घुसमुस-घुसमुस चालू होगे हे। अउ होही काबर नही, हर बखत चुनाव हा परे-डरे मनखे ला हीरो बना देथे अउ जबर साख-धाख वाला मनखे ला भुइयाँ मा पटक देखे। फेर कतको नेता हा बर रुख सरीख अपन जर ला लमा के कई पीढ़ी ले एके जगा ठाड़े हे। अउ कतको छुटभईया नेता मन पेपर मा फोटू छपवा-छपवा के बड़े नेता बने के उदीम करथे। फेर चुनाव हा लोकतंत्र के अइसन तिहार आय जेमा लोगन…
Read Moreमोर लइका पास होगे
पूनाराम आज अड़बड़ खुस हे।बोर्ड परीछा के रिजल्ट निकलिस हे। जब चार महिना के मेहनत पाछू धान मिंज के लछमी ल घर लाथय तब गांव में रहइया गरीब किसान खुस होथे। सरी चिन्ता मेटा जाथे। ओइने आज एक साल के चिन्ता ले मुक्ति मिलिस।आज ओकर नोनी तारनी हा दूसरा दर्जा बारवीं पास होगे। अपन जिद मा बेटी ला रोज पांच किमी दुरिहा सायकल मा आन गांव मा भेज के पढ़ावत रहिस।ओकर बेटी ला पढ़ाय के संकलप पूरा होगे। गनेस,लछमी सरसती के असीस मिलगे। पढ़इया लइका के पास होय के सबले…
Read Moreपुस्तक समीक्षा : अव्यवस्था के खिलाफ आक्रोश की अभिव्यक्ति ‘‘झुठल्ला‘‘
महान विचारक स्वेट मार्डन ने कहा है कि ‘कहकहों में यौवन के प्रसून खिलते है।‘ अर्थात उन्मुक्त हँसी मनुष्य को उर्जा से भर देती है। पर आज के भौतिकवादी इस युग ने जीवन को सुविधाओं से तो भर दिया है पर होंठो से हँसी छिन ली है। एक ओर ढोंगी, पाखंडी, बेईमान और भ्रष्ट लोग अपनी आत्मा को बेचकर समृद्धि की शिखर पर मौज मना रहे हैं वहीं दूसरी ओर ईमानदार, श्रमशील और सत्यवादी लोग दो-जून की रोटी को तरस रहे है। जब चारों ओर ढोंग, आडम्बर, पाखंड का पहाड़…
Read Moreसार छंद : पूछत हे जिनगानी
घर के बोरिंग बोर सुखागे, घर मा नइ हे पानी। टंकर कतका दिन सँग दीही, पूछत हे जिनगानी। नदिया तरिया बोरिंग मन तो, कब के हवैं सुखाये। कहूँ कहूँ के बोर चलत हे, हिचक हिचक उथराये। सौ मीटर ले लइन लगे हे, सरलग माढ़े डब्बा। पानी बर झींका तानी हे, करलाई हे रब्बा। चार खेप पानी लानत ले, माथ म आगे पानी। टंकर कतका दिन सँग दीही, पूछत हे जिनगानी। सोंचे नइ हन अतका जल्दी, अइसन दिन आ जाही। सोंच समझ मा होगे गलती, अब करना का चाही। बारिश के…
Read Moreहमर स्कूल
हमर गॉव के गा स्कूल, सरकारी आवय झन भूल। दीदी-भैया पढ़े ल, चले आहु ना… खेल-खेल में सबो ल पढ़हाथे, अच्छा बात ल बताथे…..दीदी… रोज-रोज नवा-नवा, खेल खेलवाथे। गोटी-पथरा बिन गिन, गिनती लिखाथे।। हमर गॉव के……..दीदी…….. फल-फूल अंग्रेजी के, नाम हमन पढ़थन। दुनिया ल समझेबर, जिनगी ल गढ़थन।। हमर गॉव के……..दीदी……… दार-भात,कपड़ा के, झन चिंता करहु। सर-मैडम बने-बने, ध्यान दे के पढ़हु।। हमर गॉव के ……..दीदी……… सरपंच अउ पंच के एमा, हावै भागीदारी। जिला अधिकारी संग, सबके जिम्मेदारी।। हमर गॉव के………दीदी……….. मिलही बने शिक्षा, संगीत अउ गान के। तुंहर सम्मान…
Read Moreएकमई राखव परवार ला
आज घर ईंटा, पखरा, छड़, सीरमिट, रेती, गिट्टी, माटी, लकड़ी जइसन आनी-बानी के जीनिस ले बने ला धर लीच अउ परवार उजड़े ला धर लीस। परवार अइसन कोनो जीनिस ले नइच बनय। परवार पियार, मया, दुलार ले, भरोसा, आदर सम्मान ले बनथे। घर मा रहइया छोटे-बड़े के भाव ला समझे अउ समझाय ले परवार बनथ अउ चलथे। परवार सिरिफ चार-छै झन के सँघरा रहे के नाँव नो हे। एके सँघरा एके कुरिया मा रहे ले का होही जब इँखर बीच मन मा कोनो सोच विचार के मेल-मिलाप नइ रहय। मन…
Read Moreममा घर के अंगना
नाना – नानी घर खेलेंन कुदेंन चांकी भवरीं अउ मैना उड़ नीम के छाँव रहिस कबूतर के घर म डेरा छोटे नाना संग घूमे ल सिखेंन ममा घर के अंगना भई भई सब अलग बिलग होगे अंगना होंगे अब सुना कोनो ल कोनो से मतलब निये नीम के छाँव बुडगागे अंगना के कबूतर उड़ागे घर होगे सुना सुना पास पड़ोस के संगवारी भुलागींन तरिया के पानी सिरागिस गली खोल के बैठाया सिरागिस सुना होगे घर अंगना बछर बीत गईस अब भांचा सुने बर नाना – नानी घर ममा घर के…
Read Moreवृक्षारोपण के गोठ
आज बड़ बिहिनिया ले नर्सरी म जम्मो फूल अउ बड़का रूख के नान्हे-नान्हे पौधा मन म खुसी के लहर ड़़उंड़त हवय, काबर आज वृक्षारोपण कार्यकरम म जम्मो नर्सरी के फूल अउ बड़का रूख मन के नान्हे-नान्हे पौधा ल लेहे बर बड़का जनिक ट्ररक हर नर्सरी म आये हवय. गोंदा, मोंगरा, गुलाब फूल अउ चंदन के नानकुन पौधा मन आपस म गोठियावत रिहिन. गोंदा हर गोठियावत रिहिस-” अवो बहिनि मन इही वृक्षारोपण का हरे, मेहर कभू नइ देखे हववं, इही नर्सरी ले बाहिर के दुनियां ल देखेबर अब्बड़ बेचेन हवँ. “ओखर…
Read Moreनिषाद राज के छत्तीसगढ़ी दोहा
माता देवी शारदा, मँय निरधन लाचार। तोर चरन में आय हँव, सुन दाई गोहार।। माता तोरे रूप के, करहूँ दरशन आज। पाहूँ मँय आशीष ला, बनही बिगड़े काज।। हे जग जननी जानले, मोरो मन के आस। पाँव परत हँव तोर ओ, झन टूटै बिसवास।। दुनिया होगे देखले, स्वारथ के इंसान। भाई भाई के मया, होंगे अपन बिरान।। आगू पाछू देखके, देवव पाँव अगार। काँटा कोनो झन गड़य, रद्दा दव चतवार।। xxx काँटा गड़गे पाँव मा,माथा धरके रोय। मनखे गड़गे आँख मा,दुख हिरदय मा होय। मन मंदिर मा राखले,प्रभु ला तँय…
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