महतारी महिमा भारी हे, ममता मया महान। हाँथ जोर मैं बंदव दाई, जग बर तैं बरदान।1 जगजननी तैं सब दुखहरनी, कोरा सरग समान। दाई देवी सँउहें हावच, कतका करँव बखान।2 दया धरम के चिन्हा दाई, जप-तप के पहिचान। दुख पीरा मा रेंगत दाई, लाथच नवा बिहान।3 लछमी दुरगा देवी दाई, सारद के अवतार। समता सुमता सादर सरधा, दाई जगत अधार।4 जिनगी के पतझर मा दाई, सबले आस बहार। भँवरजाल भवसागर भय मा, महतारी पतवार।5 सगुन सुवारी संगी सिरतों, अँचरा अमित अपार। महतारी बेटी बहिनी बिन, सुन्ना हे संसार।6 जनम करम…
Read MoreYear: 2018
वीर महाराणा प्रताप : आल्हा छंद
जेठ अँजोरी मई महीना,नाचै गावै गा मेवाड़। बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया दिखे माँस ना हाड़। उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग। राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग। अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल। हे हजार हाथी के ताकत,धरे हाथ मा भारी भाल। सूरज सहीं खुदे हे राजा,अउ संगी हेआगी देव। चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव। खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार। मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर मुँह ला फार। चले चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय। राजपूत…
Read More13 मई विश्व मातृ दिवस : दाई के दुलार (दोहा गीत)
महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। दाई देवी देवता, बंदव चरन पखार। महतारी सुभकामना, तन मन के बिसवास। कोंवर कोरा हा लगै, धरती कभू अगास। बिन माँगे देथे सबो, अंतस अगम अभास। ए दुनिया हे मतलबी, तोर असल हे आस। महतारी आदर सहित, पायलगी सौ बार।।1 महतारी ममता मया, महिमा मरम अपार। मीठ कलेवा मोटरा, मधुरस मिसरी घोल। दाई लोरी गीत हा, लगय कोइली बोल। सरधा सिरतो सार हे, सरन सरग अनमोल। महतारी के मया ला, रुपिया मा झन तोल। करजा हर साँसा चढ़े, जिनगी तोर उधार।।2 महतारी ममता मया,…
Read Moreछंद के छ : एक पाठशाला, एक आंदोलन
वइसे “छंद के छ” हा आज कोनो परिचय के मोहताज नइ हे तभो ले मैं छोटे मुँहु बड़े बात करत हँव। छत्तीसगढ़ी छंद शास्त्र के पहिलावँत किताब “छंद के छ” सन् 2015 मा श्री अरुण निगम जी द्वारा लिखे हमर मन के बीच मा आइच। छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे के उद्देश्य ले लिखे ए किताब हा छंद बद्ध रचना के संगे-संग छंद के विधि-विधान उदाहरण सहित अपन भाखा मा देथे। एखर पहिली संस्करन मा मात्र दू सौ किताब छपे रहीच। “छंद के छ” किताब मा पचास प्रकार के छंद…
Read Moreपानी बिना जग अंधियार
पानी ह जिनगी के अधार हरे। बिना पानी के कोनो जीव जन्तु अऊ पेड़ पौधा नइ रहि सके। पानी हे त सब हे, अऊ पानी नइहे त कुछु नइहे। ये संसार ह बिन पानी के नइ चल सकय। ऐकरे पाय रहिम कवि जी कहे हे – रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये ना उबरे, मोती मानुष चून।। आज के जमाना में सबले जादा महत्व होगे हे पानी के बचत करना । पहिली के जमाना में पानी के जादा किल्लत नइ रिहिसे। नदियाँ, तरिया अऊ कुंवा मन में…
Read Moreमोर लइका ल कोन दुलारही
पूनाराम के बड़े बेटी सुनीता के बिहाव होय छै बच्छर ले जादा बीत गे।एक झन साढ़े चार बच्छर के बेटी अउ दू बच्छर के बेटा हवय। सुनीता अपन ग्यारा बच्छर के भाँची ल पहली कक्षा ले अपने कर राख के पढ़ात हवय। सुनीता के गोसइया कुलेस सहर के अस्पताल के गाड़ी चलाथे।ठेकादारी हरय पक्की नी होय हे।सुनीता घर मा पीको फाल अउ बुलाउस सिलके दू चार पइसा कमा लेथे। सुनीता मन तीन देरान जेठान होथय। वो हा छोटकी बहू आय।जादा नइ पढ़े हवय ।गांव मा 12 वी तक इस्कूल हवय…
Read Moreसेठ घर के नेवता : कहिनी
रमेसर अपन छोटे बेटी के चइत मा बिहाव बखत अड़बड़ खुस रहिस। जम्मो सगा सोदर,नत्ता गोत्ता, चिन पहिचान,अरपरा परपरा ल नेवता देय रहिस।सबो मन आय घलाव रहिस।सहर के सबले बड़े सेठ ला घलो नेवता दिस। ओकर संग बीस बच्छर पहिली जब नानकुन नवा दुकान धरिस तब ले लेन देन चलत हे। आज ओकर दुकान बीस गुना बाढ़ गे हवय। सुजी से लेके कुलर फ्रिज,कपड़ा लत्ता, बरतन अउ सोन चांदी सबो मिलथे। रमेसर के घर बिहाव के जम्मो जिनिस ओकरे दुकान ले आय रहिस। सेठ ह नेवता के मान राखिस अउ…
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी, छत्तीसगढ़िया अब तो जागव रे संगी। परदेशिया ल खदेड़व इँहा ले, बघवा असन दहाड़व रे,संगी। मोर माटी के पीरा ल जानव रे संगी छत्तीसगढ़ी भाखा ल आपन मानव रे संगी। दूसर के रददा म रेंगें ल छोडव, अपन रददा ल अपने बनाव रे संगी। छोड़ के अपन महतारी ल दुख म, दूसर राज झन जवव रे संगी। मोर महतारी के पीरा ल, जानव रे संगी। अपन महतारी भाखा ल, बगराव रे संगी। मोर माटी के चिन्हारी ल, अब झन मिटाव रे संगी,…
Read Moreनिषाद राज के दोहा अउ गीत
पांव के पैजनियाँ…आ… संझा अउ बिहनिया। गुरतुर सुहावै मोला तान ओ, गड़गे करेजवा मा बान ओ। पाँव के पैजनिया….आ…आ.. झुल-झुल के रेंगना तोर,जिवरा मोर जलावै। टेंड़गी नजर देखना तोर,जोगनी ह लजावै।। नाक के नथुनिया…..आ.. संझा अउ बिहनिया। झुमका झूलत हावै कान ओ, गुरतुर सुहावै मोला तान ओ। पाँव के पैजनियाँ…… चन्दा कस रूप तोर,चंदैनी कस बिंदिया। सपना देखत रहिथौं,नइ आवय निंदिया।। गोड़ के तोर बिछिया…आ.. संझा अउ बिहनिया। होगेंव मँय रानी हलकान ओ, गुरतुर सुहावै मोला तान ओ। पाँव के पैजनियाँ……. तोर मुसकाये ले ओ, फूल घलो झरत हे। देख…
Read Moreलइका अउ सियान खेलव कुरिया मा
गरमी नंगत बाड़ गे हवय।सियान ल कोन पुछय,लइका मन घर कुरिया ले निकले के हिम्मत नइ करत हे।वइसे आजकल के लइकामन घलाव थोकिन सुगसुगहा बानी के रहिथे।दाईच ददा मन ओला अइसने बना डरे हावय। माटी मा झन खेल, घाम मा झन जा कुलर कर बइठ, ठंडा पानी पी,ताते तात खा …..। नानम परकार के टोकई मा लइकामन परिस्थिति ले जूझे अउ सहे के ताकत ल गवाँ डरिस। अब तो गांव लगे न सहर, गरमी के दिन मा लइका न अमरइया जाय,न धूपछाँव खेलय, न डंडा पिचरंगा खेलय।कुरिया मा धंधाय लइका…
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