सिंहावलोकनी दोहा : गरमी

गरमी हा आ गे हवय,परत हवय अब घाम। छइँहा खोजे नइ मिलय,जरत हवय जी चाम।। जरत हवय जी चाम हा,छाँव घलो नइ पाय। निसदिन काटे पेंड़ ला,अब काबर पछताय।। अब काबर पछताय तै,झेल घाम ला यार। पेंड़ लगाते तैं कहूँ,नइ परतिस जी मार।। नइ परतिस जी मार हा,मौसम होतिस कूल। हरियाली दिखतिस बने,सुग्घर झरतिस फूल।। सुग्घर झरतिस फूल तब,सब दिन होतिस ख़ास। हरियाली मा घाम के,नइ होतिस अहसास।। नइ होतिस अहसास जी,रहितिस सुग्घर छाँव। लइका पिचका संग मा,घूमें जाते गाँव।। घूमे जाते गाँव तै ,रहितिस संगी चार। गरमी के चिंता…

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माटी के महिमा हे करसि के ठंडा पानी

जइसे-जइसे महीना ह आघु बढ़त हे, वइसने गरमी ह अउ बाढ़त जात हे, गरमी ले बांचे के खातिर सब्बो मनखे ह किसिम-किसिम के उपाय करथे, काबर के अब्बड़ गरमी म रहे ले स्वास्थ जल्दी खराब होथे, फेर अइसे गरमी के बेरा म अपन स्वास्थ के बढ़ धियान रखे ल लगथे, काबर के येहि बेरा म सूर्य देव के किरपा अब्बड़ रहिथे सब्बो परानी जीव जगत बर। अउ सूर्य देव के किरपा ले कोनो नइ बचें अब्बो बर बराबर किरपा करथे सूर्य देव ह। वइसे गरमी के बेरा हो चाहे अउ…

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आज काल के लइका : दोहा

पढ़ना लिखना छोड़ के, खेलत हे दिन रात । मोबाइल ला खोल के, करथे दिन भर बात ।। आजकाल के लोग मन , खोलय रहिथे नेट । एके झन मुसकात हे , करत हवय जी चेट ।। छेदावत हे कान ला , बाला ला लटकात । मटकत हावय खोर मा , नाक अपन कटवात ।। मानय नइ जी बात ला , सबझन ला रोवात । नाटक करथे रोज के, आँसू ला बोहात ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़

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छतीसगढ़ी भाखा

जागव जी जवान, जागव जी किसान। छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन मानव जी सियान। माटी के मया ल माटी बर बोहाव, छत्तीसगढ़ी भाखा ल, अपन करेजा म जनाव। महतारी के भुइँया, अपन छत्तीसगढ़ ल जानव आघु बढ़ा के येला,येखर मया ल पाव। जागव जी जवान, जागव जी किसान। अपन महतारी भाखा ल गोठियाव जी सियान। छत्तीसगढ़ीं दाई के कोरा म, मया अब्बड़ पाव। साँझ-बिहनिया दाई के सेवा म अपन जिनगी ल बनाव। अनिल कुमार पाली, तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़। प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतरी। मो.न.-7722906664,7987766416

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बइरी जमाना के गोठ

काला बताववं संगी मैं बैरी जमाना के गोठ ल, जेती देखबे तेती सब पूछत रहिथे नोट ल, कहूँ नई देबे नोट ल, त खाय बर परथे चोट ल, काला बताववं संगी मैं बैरी जमाना के गोठ ल। जमाना कागज के हे, इहिमा होथे जम्मो काम ग, कही बनवाय बर गेस अधिकारी मन मेर, त पहिली लेथे नोट के नांव ग, अलग अलग फारम संगी सबके फिक्स रहिथे दाम ग, अउ एक बात तो तय हे, जभे देबे नोट तभे होही तोर काम ग, ऊपर ले नीचे खवाय बर परथे, लिखरी…

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निषाद राज के दोहा

माने ना दिन रात वो, मानुष काय कहाय। ओखर ले वो पशु बने, हात-हूत मा जाय।। भव ले होबे पार तँय, भज ले तँय हरि नाम। राम नाम के नाव मा, चढ़ तँय जाबे धाम।। झटकुन बिहना जाग के, नहा धोय तइयार। घूमव थोकन बाग में, बन जाहू हुशियार।। कहय बबा के रीत हा, काम करौ सब कोय। करहू जाँगर टोर के, सुफल जनम हा होय।। जिनगी में सुख पायबर, पहली करलौ काम। कर पूजा तँय काम के, फिर मिलही आराम।। रात जाग के का करे, फोकट नींद गँवाय। दिन…

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मई दिवस म बनिहार मन ल समर्पित दोहागीत

जय हे जाँगर जोस के, जुग-जुग ले जयकार। सिरतों सिरजन हार तैं, पायलगी बनिहार। खेत-खार नाँगर-बखर, माटी बसे परान। कुदरा रापा हा कहे, मोर हवे पहिचान । लहू पछीना ओलहा, बंजर खिले बहार।1 सिरतों सिरजन हार तैं…… घाट-घटौंदा घरउहा, महल-अटारी धाम। सड़क नहर पुलिया गढे़, करथव कब बिसराम। सरलग समरथ साधना, सौ-सौ हे जोहार।2 सिरतों सिरजन हार तैं……. ईंटा-पखरा जोरके, धर करनी गुरमाल। खद्दर खपरा खोंधरा, मस्त मगन हर हाल। सोसक सरई सोनहा, बनी-भुती खमहार।3 सिरतों सिरजन हार तैं……. अन्न-धन्न दाता तहीं, सुख सब तोरे पाँव। परछी परवा मा रहे,…

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परेम : कहानी

साकुर चैनल ल एति-तेति पेले असन करके बिकास पीठ म ओरमाये अपन बेग ल नहकाइस। बैंक भीतर पांव रखते साठ, अहा! कतका सुघ्घर गमकत, ममहावत ठंढा! जइसे आगि म जरे ल घीव म नहवा दिस। भाटा फूल रंग के पुट्टी अउ गाजरी रंग के पट्टी नयनसुख देवत रहिस। बिकास दूनों बाजू, एरी-डेरी, नजर दौडाइस।खास पहिचान के कोनों नइ रहिन। सब दूर के रिस्तेदार, डहरचलती पहिचान के,जेखर संग फटफटी म बइठे अइसने राम रमौआ हो जात रहिस। बिकास हाथ उठा के, हिलाके एकात झन ल हाय-हलो, राम-राम करिस।बैंक खचाखच भरे रहिस,…

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जेठ के कुहर

जेठ के महीना आगे, कुहर अब्बड़ जनावत हे। घाम के मारे मझनिया कून, पसीना बड़ चूचवावत हे। सुरूज नरायन अब्बड़ टेड़े, रुख राई घलों सुखावत हे, येसो के कूहर में संगी, जीव ताला बेली होवत हे। सरसर सरसर हवा चलत हे, उमस के अबड़ बड़हत हे। तरिया नरूआ सुख्खा परगे, चिरई चिरगुन ह ढलगत हे। कुआ बावली के पानी अटागे, पानी पिए बर तरसत हे। सुरुज देवता के मुहू ले घाम, आगी असन बरसत हे। धरती दाई के कोरा ह, तेल असन डबकत हे। इहा रहइया परानी मन, कुहर उमस…

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मोर गाँव ले गँवई गँवागे

मोर गाँव ले गँवई गँवागे बटकी के बासी खवई गँवागे मुड़ ले उड़ागे पागा खुमरी पाँव ले पनही भँदई गँवागे सुग्घर दाई बबा के कहिनी सुनन जुरमिल भाई बहिनी करमा सुआ खोखो फुगड़ी लइकन के खुडवई गँवागे खाके चीला अँगाकर फरा जोतै नाँगर तता अरा रा दूध कसेली खौंड़ी म चूरै मही के लेवना लेवई गँवागे आगे मोबाइल टीबी पसरगे राग सुमत ल सबो बिसरगे तीज तिहार म घर घर घुम घुम ठेठरी खुरमी खवई गँवागे करधन एैंठी खिनवा पहुँची फँुदरी माहुर बोहागे गऊकी लीखपोहना अउ ककवा ले मुड़ के…

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