भक्ति करय भगत के जेन

परिया परगे धनहा डोलि, जांगर कोन खपाय। मीठलबरा के पाछू घुमैईया, ससन भर के खाय। बांचा मानै येकर मनके, कुंदरा, महल बन जाय। मिहनत करैईया भूखे मरय, करमछड़हा देखव मसमोटाय। लबारी के दिन बऊराय, ईमान देखव थरथराय। पसीना गारे जेन कमाय, पेट में लात उही ह खाय। भक्ति करय भगत के जेन, पावय परसाद दपट के। खंती माटी कोड़य जेन, मार खावय सपट के। विजेंद्र वर्मा अनजान नगरगाँव (धरसीवां) विजेंद्र वर्मा अनजान नगरगाँव(धरसीवां)

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ढोंगी बाबा

गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँहीं बता, कोन सहीं कोन ढोंगी ? बड़े बड़े गोटारन माला, घेंच मा पहिने रहिथे । मोर से बढ़के कोनों नइहे, अपन आप ला कहिथे । फँस जाथे ओकर जाल मा , गाँव के कतको रोगी । कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी ? जगा जगा आश्रम खोल के, कतको चेला बनाथे । पढ़े लिखे चाहे अनपढ़ हो , सबला वोहा फंसाथे । आलीशान बंगला मा रहिके, सबला बुद्धू बनाथे । माया मोह ला छोड़ो कहिके,…

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बेटी मन ल बचाए बर

अपन रखवार खुद बनव, छोंड़व सरम लजाए बर। घर घर मा दुस्साशन जन्मे, अब आही कोन बचाए बर।। महाकाली के रूप धरके, कुकर्मी के सँघार करव। मरजादा के टोर के रुंधना, टँगिया ल फेर धार करव।। अब बेरा आगे बेटी मन ला, धरहा हँसिया ल थम्हाए बर… अपन रखवार….. बेटी के लहू मा, भुँइया लिपागे, दुस्साशन अब ले जिन्दा हे। होगे राजनीति बोट के सेती, मनखेपन(मानवता)शर्मिन्दा हे।। भिर कछोरा रन मा कूदव, महाभारत सिरजाए बर… अपन रखवार….. बेटी के लाज के ठेका लेवईया, दुर्योधन मन थानेदार होगे। आफिस मन मा…

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गरमी अब्बड़ बाढ़त हे

गरमी अब्बड़ बाढ़त हे, कइसे दिन ल पहाबो। गरम गरम हावा चलत हे, कूलर पंखा चलाबो।। घेरी बेरी प्यास लगत हे , पानी दिनभर पियाथे । भात ह खवाय नही जी, बासी गट गट लिलाथे। आमा के चटनी ह, गरमी म अब्बड़ मिठाथे। नान नान लइका मन, नून मिरचा संग खाथे। पेड़ सबो कटा गेहे, छाँव कहा ले पाबो। पानी सबो सुखा गेहे, प्यास कइसे बुझाबो।। चिरई चिरगुन भटकत हे, चारा खाय बर तड़पत हे। पेड़ सबो कटा गेहे, घोसला बनाय बर तरसत हे। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया (कवर्धा )…

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छंदमय गीत- तोर अगोरा मा

तोर अगोरा मा रात पहागे, देखत-देखत आँखी आ गे। काबर तँय नइ आए ओ जोही, आँखी आँसू मोर सुखागे।।1।। दिन-दिन बेरा ढरकत जावै, तोर सूध मा मन नइ माढ़े। गोड़ पिरागे रद्दा देखत, कुरिया तीर दुवारी ठाढ़े।।2।। सपना देखत रात पहावँव, गूनत-गूनत दिन बित जावै। चिन्ता मा महुँ डूबे रहिथौं, अन-पानी नइ घलो खवावै।।3।। दुनिया जम्मो बइरी लागै, दया-मया नइ जानै संगी। का दुख ला मँय तोला काहौं, मोरो मन नइ मानै संगी।।4।। जिनगी मोरो ओखर बस में, काहीं कुछु नइ भावय मोला। होय अबिरथा दुनिया मोरो, कइसे बाँचय ए…

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आमा के चटनी

आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे, दू कंऊरा भात ह जादा खवाथे । कांचा कांचा आमा ल लोढहा म कुचरथे, लसुन धनिया डार के मिरचा ल बुरकथे। चटनी ल देख के लार ह चुचवाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बोरे बासी संग में चाट चाट के खाथे, बासी ल खा के हिरदय ह जुड़ाथे, खाथे जे बासी चटनी अब्बड़ मजा पाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे। बगीचा में फरे हे लट लट ले आमा, टूरा मन देखत हे धरों कामा कामा । छुप छुप के चोराय बर…

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गहना गुरिया : चौपाई छंद

जेवर ये छत्तीसगढ़ी, लिखथे अमित बखान। दिखथे चुकचुक ले बने, गहना गरब गुमान। नवा-नवा नौ दिन चलय, माढ़े गुठा खदान। चलथे चाँदी सोनहा, पुरखा के पहिचान।। पहिरे सजनी सुग्घर गहना, बइठे जोहत अपने सजना। घर के अँगना द्वार मुँहाटी, कोरे गाँथे पारे पाटी।~1 बेनी बाँधे लाली टोपा, खोंचे कीलिप डारे खोपा। फिता फूँदरा बक्कल फुँदरी, कोरे गाथें सुग्घर सुँदरी।~2 कुमकुम बिन्दी सेन्दुर टिकली, माथ माँग मोती हे असली। रगरग दमदम दमकै माथा, कहत अमित हे गहना गाथा।~3 लौंग नाक नग नथली मोती, फुली खुँटी दीया सुरहोती। कान खींनवा लटकन तुरकी,…

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धरती मँइयाँ : चौपाई छन्द

नँदिया तरिया बावली, भुँइयाँ जग रखवार। माटी फुतका संग मा, धरती जगत अधार।। जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार। मनमानी अब झन करव, सुन भुँइयाँ गोहार।। पायलगी हे धरती मँइयाँ, अँचरा तोरे पबरित भुँइयाँ। संझा बिहना माथ नवावँव, जिनगी तोरे संग बितावँव।~1 छाहित ममता छलकै आगर, सिरतों तैं सम्मत सुख सागर। जीव जगत जन सबो सुहाथे, धरती मँइयाँ मया लुटाथे।~2 फुलुवा फर सब दाना पानी, बेवहार बढ़िया बरदानी। तभे कहाथे धरती दाई, करते रहिथे सदा भलाई।~3 देथे सबला सुख मा बाँटा, चिरई चिरगुन चाँटी चाँटा। मनखे बर तो खूब…

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किसानी के पीरा

खेत पार मा कुंदरा, चैतू रखे बनाय । चौबीसो घंटा अपन, वो हर इहें खपाय ।। हरियर हरियर चना ह गहिदे । जेमा गाँव के गरूवा पइधे हट-हट हइरे-हइरे हाँके । दउड़-दउड़ के चैतू बाँके गरूवा हाकत लहुटत देखय । दल के दल बेंदरा सरेखय आनी-बानी गारी देवय । अपने मुँह के लाहो लेवय हाँफत-हाँफत चैतू बइठे । अपने अपन गजब के अइठे बड़बड़ाय वो बइहा जइसे । रोक-छेक अब होही कइसे दू इक्कड़ के खेती हमरे । कइसे के अब जावय समरे कोनो बांधय न गाय-गरूवा । सबके होगे…

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पंडित शुकलाल पाण्डेय : छत्तीसगढ़ गौरव

हमर देस ये हमर देस छत्‍तीसगढ़ आगू रहिस जगत सिरमौर। दक्खिन कौसल नांव रहिस है मुलुक मुलुक मां सोर। रामचंद सीता अउ लछिमन, पिता हुकुम से बिहरिन बन बन। हमर देस मां आ तीनों झन, रतनपुर के रामटेकरी मां करे रहिन है ठौर।। घुमिन इहां औ ऐती ओती, फैलिय पद रज चारो कोती। यही हमर बढ़िया है बपौती, आ देवता इहां औ रज ला आंजे नैन निटोर।। राम के महतारी कौसिल्या, इहें के राजा के है बिटिया। हमर भाग कैसन है बढ़िया, इहें हमर भगवान राम के कभू रहिस ममिओर।।…

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