बेटी के हाथ मा तलवार करव बिचार

ओ दिन छग ले परकासित सबो अखबार मा फोटू छपे रहिस, संगे संग लिखाय रहिस -“बेटियों ने थामी तलवार” । पढ़के मोर आत्मा कलप गे। जौन बेटी ल ओकर दाई ह चूल्हा फूकेबर, बर्तन मांजे बर,घर लिपेबर, साग भात रांधेबर, पढ़लिख के अपन गोड़ मा खड़े होयबर अउ ममता, मया के संग जिनगी बिताय के गुन सीखे के सिच्छा देथय।आज समाज मा हमर बेटी के हाथ मा तलवार धरात हे।हमर बेटी मन घलो,चाहे पढ़े लिखे होय चाहे अनपढ़, परबुधनीन बनत जात हे।गुनीक मन बिचार करव।का ये बने होवत हे?कुछेक बच्छर…

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जब ले बिहाव के लगन होगे

संगी, जब ले बिहाव के लगन होगे बदल गे जिंनगी,मन मगन होगे। सात भांवर, सात बचन, सात जनम के बंधन होगे। एक गाड़ी के दू चक्का जस, दू तन एक मन होगे। सांटी के खुनुर- खुनुर, अहा! सरग जस आंगन होगे। भसम होगे छल-कपट सब, बंधना पबरित अगन होगे। नाहक गे तन्हाई के पतझड़, जिंनगी तो अब चमन होगे। समे गुजरगे तेन गुजर गे भले अइसने, अब ले एक-दूसर के जीवन होगे। मोर जीवन साथी सबले सुघ्घर, देखके ये भाव, सब ल जलन होगे। एक ले भले दू कहिथें, दूनों…

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कहानी – बड़की बहू

कमला के बिहाव होय 24 बच्छर होगे हे।ओ हा अपन बड़े नोनी के बिहाव घलाव कर डारिस।ओकर नानकुन बेटी नतनीन घलो आगे,फेर कमला के बुढ़ी सास अऊ ओकर सास ह आज ले गारी देयबर नी छोड़िन अउ न कमला ल बड़की बहू मानिन। कम पढ़े लिखे घलो नई हे कमला! अपन मईके के पहिली नोनी रहिस जौन दू कोस रोज साइकिल म आन गांव जाके 8वीं पास होय रहिस ।तहसील मा चपरासी बर नउकरी के चिट्ठी घलो आय रहिस,फेर दाई ददा मन मना कर दिस।अऊ लगती अठारा बच्छर मा परोसी…

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पानी हे जिंदगानी

कोनो तो समझ, का चीज ये पानी । जिए के एक ठन चीज, किथे ओला पानी। गांव गली सड़क नाला, झन बोहावव पानी ल। जिए पिए के काम आहि, ओ दीन मांगहू पानी ल। पानी बिना हे बन ह सुन्ना, चिरई चिरगुन उन्ना जी। पानी बचाबोन नई बोहावन, छोड़बो करनी जुन्ना जी। एक दिन अईसे आही जी, सबो परानी पछताबो जी । पानी बचबो पेड़ लगाबो, तभे जिनगी ल पबो जी। युवराज वर्मा बरगड़ा (साजा) जिला बेमेतरा 9131340315

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पंचू अऊ भकला के गोठ : चुनई ह कब ले तिहार बनगे

पंचू अऊ भकला के गोठ बात चलत रिहिस हे, थोरकिन सुने बर बईठ गेंव पंचू काहत रहय भकला ल, सुन न रे भाई भकला, चुनई आवत हे हमर गाँव गंवई के मईनखे बर बड़का तिहार ये। भकला- किथे, पंचू भईया चुनई ह कबले तिहार बन गेहे नवा बनाय हे का ? पहिली तो अईसनहा तिहार सुने नीं रेहेंव। दसेरा, देवारी, होली, हरेली ल जानथव अऊ सबो गाँव वाले मन मिरजुर के मनाथे, फेर ये चुनई ह तिहार कबले बनगे ? पंचू- किथे, जबले अंगरेज मन हमर देश ल छोड़े हे,…

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बारी के फूट

वाह रे बारी के फूट, फरे हस तैं चारों खूँट । बजार में आते साठ, लेथय आदमी लूट । दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय । छोटे बड़े जम्मो मनखे, बड़ सऊंख से खाय । जेहा येला नइ खाय, अब्बड़ ओहा पछताय । मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय । बखरी मा फरे हावय, पाना मा लुकाय । कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय । नान नान लइका मन, चोराय बर जाय । कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय । कूदत फांदत भागे टूरा, नइ…

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ससुर के नखरा

बिहाव के सीजन चलत हे, महु टुरी देखे बर गेंव, टुरी के ददा ह पूछथे, तोर में का टैलेंट हे, मैं केहेंव टैलेंट के बात मत कर, टैलेंट तो अतका हे, गाड़ी हला के बता देथव, टंकी में पेट्रोल कतका हे। रिस्ता केंसल। दूसर जघा गेंव, टुरी के ददा ह कथे का करथस? मैं केहेंव, वइसे तो पूरा बेकार हव, मैं एक साहित्यकार अव, गांव गली चौराहा में कविता सुनाथव, मनखे के मन बहलाथव, समय नई मिलय मोला बईठ के सुरताय बर, अपने मजाक बना लेथव मनखे ल हसाय बर।…

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बलदाऊ राम साहू के गज़ल

गोरी होवै या कारी होवै। सारी तब्भो ले प्यारी होवै। अलवा-जलवा राहय भले जी एकठन हमर सवारी होवै। करन बड़ाई एक दूसर के काकरो कभू झन चारी होवै। राहय भले घर टुटहा-फुटहा तब्भो ले ओ फुलवारी होवै। बेटा कड़हा – कोचरा राहय मंदहा अउ झन जुवारी होवै। ‘बरस’ कहत हे बात जोख के, जिनगी म कभु झन उधारी होवै। तब्भो = तो पर भी, अलवा-जलवा= समान्य, चारी= निंदा, कड़हा-कोचरा =अनुत्पादक, मंदहा =मद्यपान सेवन करने वाला, मन मा जब तक अहसास हावै जी। अंतस मा सब उल्लास हावै जी। कब तक…

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मंगल पांडे के बलिदान : 8 अप्रैल बलिदान-दिवस

अंगरेज मन ल हमर देस ले भगाए बर अउ देसवासी मन ल स्‍वतंत्र कराए बर चले लम्बा संग्राम के बिगुल बजइया पहिली क्रान्तिवीर मंगल पांडे के जनम 30 जनवरी, 1831 के दिन उत्तर प्रदेश के बलिया कोति के गांव नगवा म होय रहिस। कुछ मनखे मन इंकर जनम उत्‍तर प्रदेश के साकेत जिला के गांव सहरपुर म अउ जन्मतिथि 19 जुलाई, 1927 घलोक मानथें। मेछा के रेख फूटतेच इमन सेना म भर्ती हो गये रहिन। वो बखत सैनिक छावनी मन म गुलामी के विरुद्ध आगी सुलगत रहिस। अंग्रेज मन जानत…

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राजा के मुड़ी म सिंग

ऐ बात तब के आय.जब हमन छुट्टी बिताए बर गांव म जान, हमर कुंती दई अब्बड किस्सा कहनी कहे..संझा ढलत देरी नई की सब्बो लईकामन खटिया ल जोर के बइठ जाए, तहां ले कुतीं दइ के कहनी सुरु हो जाए…एक ठन राजा रहिस..हव कहत रहू त कहनी ल आगू कहहू.. नइ हूकारू भरहू त कहनी ल इहिच मेर खतम समझहू..त सब्बो झिन ह.. ह… हव..अइसे कहत रहन…त ओ राजा ल चम्पी मालिस के सौकिन रहे…आगू गुडी़ म एक झिन बदरू नांव के न उ सियान रहे..अब्बड तान दे ,देके चम्पी…

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