नंदावत हे रूख-राई : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन बने-बने स्वादिश्ट फल के बीजा ला जतन के धरे राहय। उॅखर पेटी या संदूक ला खोले ले रिकिम-रिकिम के बीजा मिल जावत रहिस हे। जब हमन छोटे-छोटे रहेन तब हमर दाई-बबा के संदूक ले कागज के पुड़िया में रखे कोहड़ा, रखिया, तुमा, छीताफल अउ कई परकार के बीजा मिल जावत रहिस हे। देख के बड़ अचरज होवय के दाई-बबा मन बीजा ला अतेक सम्हाल के काबर धरे हावय। पूछन तब बतावय। कहय-बेटी! जब पानी…

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लेख : बंटवारा

बुधारु अऊ समारु दूनों भाई के प्रेम ह गांव भर में जग जाहिर राहे ।दूनों कोई एके संघरा खेत जाय अऊ मन भर कमा के एके संघरा घर आय । कहुंचो भी जाना राहे दूनों के दोस्ती नइ छूटत रिहिसे ।ओकर मन के परेम ल देख के गाँव वाला मन भी खुस राहे अऊ बोले के एकर मन के जोड़ी तो जींयत ले नइ छूटे । बिचारा बुधारु अऊ समारु के बाप तो नानपन में ही मर गे रिहिसे ।बाप के सुख ल तो जानबे नइ करत रिहिसे ।ओकर दाई…

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पीथमपुर के कलेसरनाथ : भोला बबा के महत्तम

हसदो नदिया के तिर म कलेसरनाथ भगवान। दरसन जउन ओखर करिहि, आ बइकुंठ जाही।। – प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी छत्तिसगढ़ प्रांत म घलो बड़कन जियोतिरलिंग जइसन काल ल जितवइया भोला बबा के मंदिर-देवालय हवय जेखर सावन म दरसन, पूजा-पाठ अउ अभिसेक करे म सब पाप धुल जाथे। अइसनहे एक ठन मंदिर जांजगीर-चापा जिला म हसदो नदिया के तिर म बसे पिथमपुर म हवय। सावन महिना म, महासिवरात्रि म अउ चइत परवा से अम्मावस तक 15 दिन इहां मेला भरथे अउ धूल पंचमी के दिन इहां भोला बबा के बरात निकलथे जेला…

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बाबू जगजीवनराम अऊ सामाजिक समरसता : 5 अप्रैल जन्म-दिवस

हिन्दू समाज के निर्धन अऊ वंचित वर्ग के जऊन मनखे मन ह उपेक्षा सहिके घलोक अपन मनोबल ऊंचा रखिन, ओमां बिहार के चन्दवा गांव म पांच अप्रैल, 1906 के दिन जनमे बाबू जगजीवनराम के नाम उल्लेखनीय हे। ऊंखर पिता श्री शोभीराम ह कुछ मतभेद के सेती सेना के नौकरी छोड़ दे रहिस। उंखर माता श्रीमती बसन्ती देवी ह गरीबी के बीच घलव अपन लइका मन ल स्वाभिमान ले जीना सिखाइस। लइकई म बाबू जगजीवनराम के स्‍कूल म हिन्दू, मुसलमान अउ दलित हिन्दु मन बर पानी के अलग-अलग घड़ा रखे जात…

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माफी के किम्मत

भकाड़ू अऊ बुधारू के बीच म, घेरी बेरी पेपर म छपत माफी मांगे के दुरघटना के उप्पर चरचा चलत रहय। बुधारू बतावत रहय – ये रिवाज हमर देस म तइहा तइहा के आय बइहा, चाहे कन्हो ला कतको गारी बखाना कर, चाहे मार, चाहे सरेआम ओकर इज्जत उतार, लूट खसोट कहीं कर …….. मन भरिस तहन सरेआम माफी मांगले …….। हमर देस के इही तो खासियत हे बाबू …….. इहां के मन सिरीफ पांच बछर म भुला जथे अऊ कन्हो भी, ऐरे गैरे नत्थू खैरे ला, माफी दे देथे। भकाड़ू…

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आरटीओ चेकिंग : समसामयिक हास्य संस्मरण

एक्सीलेटर ल मुठा म चीपे जोर से अइंठत सुन्ना रोड म फटफ़टी ल भगावत रहेंव, सनसन..सनसन… बोंअअ…ओंओंअअ ..। रद्दा में देखेंव त आठ दस झन मनखे मन तिरयाये अपन मोटरसाइकिल धरके खड़े रहय। एक झन नवरिया बिहतिया कस लागिस ओखर सुवारी कनिहा के आत ले मुड़ ला ढांके रहय। एक झन बनिया व्यापारी टइप मनखे गाड़ी के पाछू म बोरा लादे अउ आघू पुट्ठा म सामान धरे तीर मा ठाढे रहय। दू झन मनखे जबरन गाड़ी के प्लक ल खोल के साफ़ करत रहय, सब्बो गाडी वाले मन ल ठाढ़े…

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दोहा छंद म गीत

काँटों से हो दोस्ती, फूलों से हो प्यार। इक दूजे के बिन नहीं, नहीं बना संसार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. कठिन डगर है जिंदगी, हँस के इसे गुजार। दुनिया का रिश्ता यहीं, निभता जाये यार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. दुख हो सुख हो काट लो, ये जीवन उपहार। राम नाम में जोड़ लो, साँसों का ये तार।। काँटों से हो दोस्ती……………….. धूप छाँव बरसात हो, मिले ग़मों की मार। हँसता हुआ गुलाब ज्यों, छाये सदा बहार।। काँटों से हो दोस्ती………………… खो जाओ मजधार में, चलता हुआ बयार। हरि का मनमें…

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सुरूज नवा उगइया हे : छत्‍तीसगढ़ी गज़ल संग्रह

अपनी बात साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती चलती है। सामाजिक सरोकारों के अतिरिक्त युगीन चेतना विकसित करने का भी यह एक सशक्त माध्यम है। निश्चय ही परंपरावादी विद्वानों ने गज़़ल के संबंध में कहा है कि गज़़ल औरतों से या औरतों के बारे में बातचीत करना है,परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में…

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छत्तीसगढ़ गज़ल और बलदाऊ राम साहू

-डॉ. चितरंजन कर निस्संदेह गज़ल मूलत: उर्दू की एक काव्य विधा है, परन्तु दुष्यंत कुमार के बाद इसकी नदी बहुत लंबी और चौड़ी होती चली गई है। जहाँ-जहाँ से यह नदी बहती है, वहाँ-वहाँ की माटी की प्रकृति, गुण, स्वभाव और गंध आदि को आत्मसात कर लेती है, जैसे नदी अलग-अलग प्रांतों, देशों में बँटकर भी अपना नाम नहीं बदलती, वैसे ही छत्तीसगढ़ में यह छत्तीसगढ़ी गज़ल के नाम से जानी जाने लगी है। छत्तीसगढ़ी में जिन कलमकारों ने गज़ल-विधा को आगे बढ़ाया है, उनमें डॉ. प्रभंजन शास्त्री, रामेश्वर वैष्णव…

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प्रभु हनुमान जइसे भगत बनना चाही

पूरा भारत देस के कोंटा-कोंटा म भगवान श्री राम के नाव हे अउ ओखर नाव के संगे-संग श्री राम जी के सबले बड़े भक्‍त हनुमान के नाव सब्बो कोती लेहे जाथे, जइसे श्री राम के बड़े भक्‍त भगवन हनुमान हवयं, वइसने भगत अउ कोनो अब ये दुनिया म नइ हो सके, हनुमान जी ह अपन भगवान राम के सेवा म अपन पूरा जीवन ल लगा दे रहिस हे, अउ अपन भगवान के बिना ओला अउ कोनो दूसर चीज के मोह माया नइ रहिस हे, काबर के जेकर तीर ओकर भगवान…

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