थोरिको मया,बाँट के तो देख, भक्कम मया तैं पाबे जी। पर बर, खनबे गड्ढा कहूँ, तहीं ओंमा बोजाबे जी।। उड़गुड़हा पथरा रद्दा के, बनके ,झन तैं घाव कर। टेंवना बन जा समाज बर, मनखे म धरहा भाव भर।। बन जा पथरा मंदीर कस, देंवता बन पुजाबे जी…. थोरको…… कोन अपन ए ,कोन बिरान, आँखी उघार के चिन्ह ले ओला। चिखला म सनागे नता ह जउन, धो निमार के बिन ले ओला।। बनके तो देख ,मया के बूँद, मया के सागर पाबे जी….. थोरको…. छल कपट के आगी ह, खुद के,…
Read MoreYear: 2018
खिल खिलाके तोर मुस्काई
खिलखिलाके तोर मुस्काई अबड़ मोला सुहाथे मुड़ मुड़ के तोर देखना गजब भाथे हंसी हंसी म संगवारी मन तोर करथे चारी गजब हे तोर संगवारी खिलखिलाना घर के दुआरी म अंगना के कोना म सड़क के किनारे तरिया के पार म पड़ोस के कुँआ म तोर होथे चारी सबो कहिथे तोला निचट हे सुघ्घर मोर मन के भीतरी म आँखी के पुतरी म तहीं हस संगवारी तोर खिलखिलाई मोर जीव के होंगे काल निचट तोर सुघ्घराई अबड़ सताथे संझा बिहनिया गांवली बस हंसी हंसी म करथे तोर चारी खिलखिलाके तोर…
Read Moreगरमी आगे
आमा टोरे ल जाबो संगी , गरमी के दिन आये । गरम गरम हावा चलत , कइसे दिन पहाये । नान नान लइका के , होगे जी परीक्षा । मंझनिया भर घूमत हे , चड्डी पहिर के दुच्छा । ए डारा से ओ डारा मे , बेंदरा सही कूदथे । अब्बड़ मजा करथे लइका , पेड़ में अब्बड़ झूलथे । आइसक्रीम वाला आथे , अऊ पोप पोप बजाथे । लइका मन ल देख देख के अब्बड़ गाना गाथे । प्रिया देवांगन ” प्रियू “ पंडरिया
Read Moreमाटी के पीरा
मोर माटी के पीरा ल जानव जी। अपन बोली भाखा ल मानव जी। छत्तीसगढ़िया बोली भाखा ला। अपन जिनगी म उतारव जी। सब्बो छत्तीसगढ़ीया भाई, छत्तीसगढ़ी भाखा गोठियाव जी । हम अपनाबो ता सब अपनाही। अपन भाखा म गुरतुर गोठियाही। जान के माटी के मया ला। माटी के पीरा ला दुरिहा भगाही । मयारू हे मोर महतारी भाखा। ओखर मया म बोहाव जी। बन के नानकुं लइका कस। अपन महतारी के मया ल जानव जी। मोर माटी के पीरा ल जानव जी। महतारी भाखा ल गोठियाव जी। अनिल कुमार पाली…
Read Moreरोवत हे किसान
ए दे मूड़ ला धरके रोवत हे किसान। कइसे धोखा दे हे मउसम बईमान।। ए दे मूड़ ला धरके……………….. झमाझम देख तो बिजली हा चमके। कहुँ-कहुँ करा पानी बरसतहे जमके।। खेती खार नास होगे देखव भगवान। ए दे मूड़ ला धरके………………… करजा नथाय हावय दुख होवय भारी। गाँव छोड़ शहर कोती जाय सँगवारी।। कतका झेल सहय डोलत हे ईमान। ए दे मूड़ ला धरके…………………. सुन भइया सुन लव बन जावव सहाई। ढाढस बँधावौ संगी झन होय करलाई।। सपना देखय सुख के होवय गा बिहान। ए दे मूड़ ला धरके………………….. बोधन…
Read Moreझाड़ फूंक करलौ जी लोकतंत्र के
कोलिहा मन करत हे देखव सियानी, लोकतंत्र के करत हे चानी चानी। जनम के अढहा राजा बनगे, परजा के होगे हला कानी। भुकर भुकर के खात किंजरत, मेछराय गोल्लर कस ऊकर लागमानी। अंधरा बनावत हे लोकतंत्र ल, रद्दा घलो छेकावत हे। कऊवा बईठे महल के गद्दी, हँस देख बिलहरावत हे। महर महर महकय लोकतंत्र ह, अईसन बनाय रिहीस पुरखा मन। बईरी बनके आगे कलमुवा, अंधरा कनवा अऊ नकटा मन। सिरतोन केहे तै नोनी के दाई, खटिया म पचगे मिहनत के पाई। भागजनी ह राजा बनथे, करम के फुटहा चुर चुर…
Read Moreबेटी ल बचाबो
जग म आए के पहली , झन मारव कोनो बेटी ला। दुख म सुख म काम आते, झन धुतकारव बेटी ला। बेटी बिना हे जग ह सुन्ना, अऊ सुन्ना घर दुआर परछी ग। झन डालव कोनो गोड म बेड़ी, उड़ान दे बनके पनछी ग। पढ़न लिखन दे मन के ओला, करव झन कोनो सोसन ग। पढ़ लिख के ओ नाम कमाही, करही दाई ददा के नाम रोसन ग। बेटी बचाबो बेटी पढ़ाबो, इही नारा ल अपनाबो ग। नारी शक्ति ल जोर दे बर, कुछू करम ल अपनाबो ग। युवराज वर्मा…
Read Moreमहतारी तोर अगोरा मा
परसा झुमरै कोइली गावय, पुरवईया संग,दाई के अगोरा मा। नवा बछर ह झुम के नाचय, सेउक माते ,नवरात्रि के जोरा मा।। लाली धजा संग देव मनावय, भैरो बाबा , गाँव के चौंरा-चौंरा मा।। बईगा बबा ह भूत भगावय, मार के सोंटा,डोरा मा।। सातो बहिनीया आशीस लुटावय, बइठे दाई तोर कोरा मा।। बीर बजरंगी फूलवा सजावय, महतारी तोर अगोरा मा।। राम कुमार साहू सिल्हाटी, कबीरधाम [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreछत्तीसगढ़ी गज़ल
एक बेर मदिरालय मा, आ जातेस उप्पर वाले। दरुहा मन ल बइठ के तैं समझातेस उप्पर वाले। जिनगी के बिस्वास गँवागे ऊँकर मन म लागत हे, मिल-बइठ के अंतस मा,भाव जगातेस उप्पर वाले। हरहिंसा जिनगी जीये के भाव कहाँ समझथे ओमन, सुख-दुख संग जीये के तैं आस बँधातेस उप्पर वाले। तँही हर डोंगहार अउ डोगा के चतवार तँही हस, बुड़त मनखे ला तैं हर, पार लगातेस उप्पर वाले। दरुहा =शराबी, गँवागे =गुम गया, हरहिंसा =निश्चिंत; चतवार=पतवार, हस= हो, डोंगहार =नावीक, डोंगा= नाव, बुड़त =डूबते हुए। बलदाऊ राम साहू
Read Moreवाह रे कलिन्दर
वाह रे कलिन्दर, लाल लाल दिखथे अंदर। बखरी मा फरे रहिथे, खाथे अब्बड़ बंदर। गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे। नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे। बड़े बड़े कलिन्दर हा, बेचाये बर आथे। छोटे बड़े सबो मनखे, बिसा के ले जाथे। लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे। रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे। खाय के फायदा ला, डाक्टर तक बताथे। अब्बड़ बिटामिन मिलथे, बिमारी हा भगाथे। जादा कहूँ खाबे त, पेट हा तन जाथे। एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे। महेन्द्र देवांगन माटी…
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