कोनो भी बाबा के सफलता के पछीत म कोर्ह न कोई बवइन के पलौंदी जरूर होथें। मैं अपन चोरी चमारी के रचना सुना सुनाके तीर तखार के गाॅव म प्रसिध्द होगे हौं। फेर घर म जोगडा के जोगड़ा हौं। उही चिटियाहा चड्डी बनीयइन, बिन साबुन तेल के खउराहा उखराहा हाथ गोड़। चिथियाए बगरे भुरूवा भुरूवा बड़े बड़े चुंदी। गर म कुकुर के पट्टा कस ओरमे मोहनजोदड़ो युग के टेटकू मोबाइल। उहू मोबाइल के स्क्रीन टूटहा हे। उपरौनी म ओकर पछीत के ढकना टूटहा। जेला मैं रंगीन रब्बड़ में लपेट के…
Read MoreYear: 2018
विश्व जल संरक्षण दिवस : सार छंद मा गीत – पानी जग जिनगानी
पानी जग जिनगानी मनवा, पानी अमरित धारा। पानी बिन मुसकुल हे जीना, पानी प्रान पियारा। जीव जगत जन जंगल जम्मो, जल बिन जर मर जाही। पाल पोस के पातर पनियर, पानी पार लगाही। ए जग मा जल हा सिरतो हे, सबके सबल सहारा। पानी जग जिनगानी मनवा, पानी अमरित धारा।1 तरिया नँदिया लहुटय परिया, धरती दाई रोवय। रुख राई हा ठुड़गा ठुँठवा, बादर बरसा खोवय। मनखे के हे ए सब करनी, भोगय जग संसारा। पानी जग जिनगानी मनवा, पानी अमरित धारा।2 राहत भर ले सेखी मारे, भर भर उलचे भारी।…
Read Moreरामनौमी तिहार के बेरा म छत्तिसगढ़ में श्रीराम
-प्रोफेसर अश्विनी केसरवानी आज जऊन छत्तिसगढ़ प्रान्त हवय तेखर जुन्ना गोठ ल जाने बर हमन ल सतजुग, तेरताजुग अऊ द्वापरजुग के कथा कहिनी ल जाने-पढ़ेबर परही। पहिली छत्तिसगढ़ हर घोर जंगल रहिस। इहां जंगल, पहाड़, नदी रहिस जेखर सुघ्घर अउ सांत बिहनिया म साधु संत इहां तपस्या करय। इहां जंगली जानवर अउ राक्छस मन भी रहय जऊन अपन एकछत्र राज करे बर साधु संत मन डरावंय अऊ मार डारय। इकर बाद भी ये जगह के अड़बड़ महत्ता होय खातिर साधु संत मन इंहा रहय। इहां बहुतअकन साधु संत मन के…
Read Moreअपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा
अपन-अपन भेद कहौ, भैरा मन के कान मा। जम्मो जिनिस रख देवौ, ओ टुटहा मकान मा। झूठ – लबारी के इहाँ नाता अउ रिस्ता हे, गुरुतुर-गुरुतुर गोठियावौ,अपन तुम जबान मा। थूँके-थूँक म चुरत हे, नेता मन के बरा हर, जनता हलाकान हो गे , ऊँकर खींचतान मा। कऊँवा, कोयली एक डार मा, बइठे गोठियावै, अब अंतर दिखथे मोला, दुनो के उड़ान मा। गाँव के निठल्ला मन अब भले मानुस हो गे, लिख दे पुस्तक जम्मो, ‘बरस’ उनकर सनमान मा। भैरा= बहरा , जिनिस=वस्तु, टुटहा =टूटा हुआ, डार= शाख , गुरुतुर…
Read Moreआगे आगे नवा साल
आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। डारा पाना गीत गाये,पुरवाही मा हाल। पबरित महीना हे,एक्कम चैत अँजोरी के। दिखे चक ले भुइँया हा,रंग लगे हे होरी के। माता रानी आये हे,रिगबिग बरत हे जोती। घन्टा शंख बाजत हे,संझा बिहना होती। मुख मा जयकार हवे ,तिलक हवे भाल। आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल। नवा नवा पाना मा,रूख राई नाचत हे। परसा फुलके लाली,रहिरहि के हाँसत हे। कउहा अउ मउहा हा इत्तर लगाये हे। आमा के मौर मा छोट फर आये हे। कोयली नाचत गावत हे,लहसे आमा डाल। आगे…
Read Moreबुढ़वा लइका पांव पखारत हे तोर
सज गे तोर दरबार दाई, जल गे जोत हजार । चैत नवत्रत आगे दाई, मनावन जवरा तिहार। जय होवय डोंगड़गढ़हीन, कइथे तोला सब बमलाई। रतनपुर म बइठे हावय, दुःख हरइया महमाई। नव दीन के नवरात हे, जोत जवारा बोवाथे वो। सेउक तोर सेवा करत हे, मनवांछित फल पाथे वो। नव दीन ले तै रईथस माई, नव ठन हे अउ रूप। जय होवय तोर नव रूप मई, जलावव आगरबत्ती अउ धुप। मोर शीतला महमाया बरगड़ा के, तोर अंगना म जलत हे जोत। गांव म लगे मोर मैया के दरबार, बुढ़वा लइका…
Read Moreहिन्दू नवा बच्छर के बधाई..
आज फेसन के युग हे। ये बात सोलाआना सिरतोन हे फेर फेसन के चलन मा अपन जरी कटई हा अलहन ला नेवता देवई हरय। आज बिदेशी जीनिस ला अपनाय के चस्का मा अपन देशी मान मरजाद ला घलाव मेटावत चले जाथन। अइसने एकठन नवा फेसन हे 31 दिसंबर के अधरतिहा हो हल्ला करत नवा बच्छर के सुवागत करई। फेर सिरतोन मा एहा हमर भारतीय नवा बच्छर नो हे। पबरित भारत भुँइयाँ के शान अउ मान दु हजार ले जादा जुन्ना विक्रम संवत हा हरय जेखर सुग्घर सुरुवात चइत अंजोरी पाख…
Read Moreछत्तीसगढ़ी गज़ल
घर-आँगन मा दिया बरे, तब मतलब हे। अँधियारी के मुँहू टरे, तब मतलब हे।। मिहनत के रोटी हर होथे भाग बरोबर, जम्मो मनखे धीरज धरे, तब मतलब हे। दुनिया कहिथे ओ राजा बड़ सुग्घर हे, दुखिया मन के दुख हरे, तब मतलब हे। नेत-नियाव के बात जानबे तब तो बनही अतलंग मन के बुध जरे, तब मतलब हे। सबके मन मा हावै दुविधा ‘बरस’ सुन ले, सब के मन ले फूल झरे, तब मतलब हे। बड़=बहुत;नेत-नियाव =नीति, अतलंग=उपद्रवी, बुध=बुद्धि। बल्दाउ राम साहू [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]
Read Moreनवरात मा दस दोहा
1~भक्ति भाव भक्कम भरे, बंदन बदन बुकाय। राम-राम बड़ जीभ रटे, छूरी पीठ लुकाय। 2~ चंदन चोवा चुपर के, सादा भेस बनाय। रंगरेलिहा मन हवै, अंतस जबर खखाय। 3~जप-तप पूजा पाठ ले, नइ छूटय जी पाप। मन बैरागी जे करय, वोला का संताप। 4~ माया मोय मा मन रमे,भगवन मंदिर खोज। अंतस अपने झाँक ले, प्रभू दरस हे रोज। 5~ नौ दिन देवी देहरी, भंडारा दिनरात। लांघन महतारी मरे, कइसे बनही बात। 6 ~देवी सेवा जस करे, करथे कैना भोज। महतारी के कोख मा, बेटी हतिया रोज। 7~तन ला तपसी…
Read Moreछ्न्द बिरवा : नवा रचनाकार मन बर संजीवनी बूटी
चोवाराम वर्मा “बादल” जी के “छ्न्द बिरवा” पढ़े बर मिलिस । एक घव मा मन नइ माढ़ीस दुबारा पढ़ डारेंव। सिरतोन म अतका बढ़िया छन्द संग्रह हवय येकर जतका प्रसंशा करे जाय कम हवय । अब के बेरा म अइसन लिखइया आगे हवय जिंकर किताब ल पढ़ना तो दूर पलटाय के भी मन नइ होय अइसन बेरा मा बादल जी ल पढ़ना सुखद अनुभव रहिस । सबो छ्न्द विधान सम्मत, व्याकरण सम्मत हवय । अनुस्वार अउ अनुनासिक के बहुत ही बारीकी से प्रयोग बादल जी करे हवय । शब्द चयन…
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