अगहन बिरसपति – लक्ष्मी दाई के पूजा अगहन बिरसपति

हमर हिन्दू पंचांग में अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक के बाद अगहन मास में गुरुवार के दिन अगहन बिरस्पति के पूजा करे जाथे । भगवान बिरस्पति देव के पूजा करे से लक्ष्मी माता ह संगे संग घर में आथे। वइसे भी भगवान बिरस्पति ल धन अऊ बुद्धि के देवता माने गे हे । एकर पूजा करे से लछमी , विदया, संतान अऊ मनवांछित फल के प्राप्ति होथे । परिवार में सुख शांति बने रहिथे । नोनी बाबू के जल्दी बिहाव तको लग जाथे । पूजा के विधान –…

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जड़कला मा रउनिया तापव

अइसे तो जड़कला हा कुँवार महिना से सुरु हो जाथे अउ पूस ले आगू तक रहिथे। कातिक महिना ले मनखे मन रउनिया लेय के घलाव सुरु कर देथे। अग्हन अउ पूस महिना मा कड़कड़ाती जाड़ लागथे।ये महिना मा सूरुज देव अपन गर्मी ला कहाँ लुकाथे तेकर पताच नइ चलय। ये दिन मा कतका जल्दी बेरा पंगपंगा जाथे अउ कतका जल्दी बेर बूड़ जाथे। बूता कराइया मन ला अइसे लागथे कि आज कुछू बुताच नइ होइस। जाड़ दिन के घलाव हमर जिनगी मा भारी महत्तम हावय।इही दिन हा उर्जा सकेले के…

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दारू के गोठ

जेती देखबे तेती, का माहोल बनत हे। सबो कोती ,मुरगा दारू के गोठ चलत हे।। थइली म नइहे फूटी कउड़ी,अउ पारटी मनाही। चांउर ल बेंच के, दारू अउ कुकरी मंगाही।। मुरगा संग दारू ह,आजकाल के खातिरदारी हे। खीर पूड़ी के अब, नइ कोनो पुछाड़ी हे।। दारू के चक्कर म, छोटे बड़े के नाता ल भुलागे। आधा मारबे का कका,कइके मंगलू ह ओधियागे।। नंगत कमाय हे कइके, बेटा बर लानत हे ददा ह। अब तो संगे संग म पीयत हे, कका अउ बबा ह।। होवत संझाती भट्ठी म, भारी भीड़ दिखत…

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राजिम नगरी

पबरीत हावे राजिम नगरी, परयाग राज कहलाऐ। बिच नदीया में कुलेश्वर बईठे, तोरेच महीमा गाऐ।। महानदी अऊ पईरी सोंढ़हू, कल-कल धारा बोहाऐ। तीनों नदीया के मिलन होगे, तीरबेनी संगम कहाऐ।। ब्रम्हा बिष्णु अऊ शिव संकर, सरग ऊपर ले झांके। बेलाही घाट में लोमश रिषी, सुग्घर धुनी रमाऐ।। राजिव लोचन तोर कोरा मं बईठे, सुग्घर रूप सजाऐ। राजिम के दुलौरिन करमा दाई, तोर कोरा मं मांथ नवांऐ।। राम लखन अऊ सिया जानकी, तोर दरश करे बर आऐ। वीर सपूत बजरंग बली, तोरे चवंर डोलाऐ।। तोर चरण मं कलम धरके, गोकुल महीमि…

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माटी के मया

अब तो नइ दिखय ग, धान के लुवइया। कहाँ लुकागे संगी, सीला के बिनइया। दउरी,बेलन ले, मुँह झन मोड़व रे…..। माटी संग माटी के, मया ल जोड़व रे…..।। बोजहा के बंधइया, अब कहाँ लुकागे। अरा-तता के बोली, सिरतोन नदागे। गाडा़, बइला के संग ल, झन तुमन छोड़व रे…..। माटी संग माटी के, मया ल जोड़व रे…..।। होवत मुंधरहा संगी, पयरा के फेकइ। आज घलो सुरता आथे, बियारा के सुतइ। धर के कलारी, पयरा ल कोड़व रे…..। माटी संग माटी के, मया ल जोड़व रे…..।। केशव पाल मढ़ी (बंजारी) सारागांव, रायपुर…

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छत्तीसगढ़ी राजभासा दिवस खास – छत्तीसगढ़ी भासा के अतीत, वर्तमान स्वरूप

छत्तीसगढ़ी भासा बोले म सहज अउ सुग्घर हे, ये भासा म कुसियार के रस असन मिठास हे। एकर व्याकरन ल अठारह सौ पचीयासी म हिरालाल चन्नाहु ह लिख डारे रहिस हे। ये व्याकरन ल बछर 1890 म कोलकाता के अंग्रेजी कम्पनी ले प्रकासित घलो कराए गए रहिस हे। छत्तीसगढ़ी भासा छत्तीसगढ़िया मन के महतारी भासा आय। अभी के बेरा म एकर बोलइया लगभग दु करोड़ ले ऊपर हे। छतीसगढ के अलावा नागपुर म बसे छत्तीसगढ़िया, दिल्ली, जम्मू, धमधी (महाराष्ट्र), असाम के चाय बागान के प्रवासी छत्तीसगढ़िया मन के दुवारा घलो…

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सबो नंदागे

कउवा के काँव काँव। पठउंहा के ठउर छाँव। भुर्री आगी के ताव। सबो नदागे।। खुमरी के ओढ़इ। कथरी के सिलइ। ढेकना के चबइ। सबो नदागे।। हरेली के गेड़ी चढ़इ। रतिहा म कंडील जलइ। कागज के डोंगा चलइ। सबो नदागे।। नांगर म खेत जोतइ। बेलन म धान मिंजइ पइसा बर सीला बिनइ। सबो नदागे।। ममा दाई के कहानी किस्सा। संगवारी संग खेलइ तीरी पासा। मनोरंजन के गम्मत नाचा। सबो नदागे।। रेडियो के समाचार सुनइ। सगा ल चिट्ठी लिखइ। सिलहट पट्टी म लिखइ-पढ़इ। सबो नदागे।। टेंड़ा म पानी पलोइ। ढेंकी म धान…

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ग़ज़ल : उत्तर माढ़े हे सवाल के

हो गे चुनाव ये साल के। उत्तर माढ़े हे, सवाल के। बहुत चिकनाईस बात मा चिनहा ह दिखत हे, गाल के। आज हम कौन ल सँहरावन जम्मो हावै टेढ़ा चाल के। किस्सा सोसन के भूला के, रक्खौ लहू ला उबाल के। झन धरौ कौनो के पाँव ल, अपन ला रक्खौ सँभाल के। बलदाऊ राम साहू

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तुंहर मन म का हे

तुंहर मन म का हे अपन अंतस ल बोल दव मोर मन के गोठ ल सुन लव अभी तो मान लव जो हे बात हांस के कही दव जिनगी के मया म रस घोल दव अभी तो बदलाव कर दव महुँ हंव किनारा म मझधार ल पार करा दव मया के गोठ हांस के बता दव… लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल, कोसीर

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माटी मोर मितान

सुक्खा भुँइया ल हरियर करथंव, मय भारत के किसान । धरती दाई के सेवा करथँव, माटी मोर मितान । बड़े बिहनिया बेरा उवत, सुत के मँय ऊठ जाथंव । धरती दाई के पंइया पर के, काम बुता में लग जाथंव । कतको मेहनत करथों मेंहा, नइ लागे जी थकान । धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । अपन पसीना सींच के मेंहा, खेत में सोना उगाथंव । कतको बंजर भूंइया राहे, फसल मँय उपजाथँव । मोर उगाये अन्न ल खाके, सीमा में रहिथे जवान । धरती दाई के…

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