दानी राम बंजारे और जानकी बाई बंजारे द्वारा प्रस्‍तुत गोपी चंदा गाथा

मत जाना रे बालक बेटा कौरू नगर मत जाना मत जाना रे गोपी चंदा कौरू नगर मत जाना कौरू नगर के अटपट हे जादू कोई पारे नइ पाया बड़े-बड़े राज हॅ पथरा गा होगे । वापस कोनो नहीं आया रे बालक देखे करम ला छाड़ दीस कथंव मत जाना रे बेटा कौरू नगर मत जा। मत जा बेटा। कामरूप के तिलस्‍मी संसार को जीवंत चित्रित करती अद्भुत और पल-पल रोमांचित करती छत्‍तीसगढ़ी लोकगाथा आडियो-वीडियो, टैक्‍स्‍ट और हिन्‍दी अनुवाद के साथ सहपीडिया में इस लिंक Gopichanda performed by Dani Ram Banjare…

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पांच बछरिया गनपति

राजधानी म पइठ के , परभावली म बइठ के । हमर बर मया बरसाथे , हमींच ला अइंठ के । रिद्धी सिद्धी पाके , मातगे जोगी जति । ठेमना गिजगिजहा , पांच बछरिया गनपति । बड़का बुढ़हा तरिया के , करिया भुरवा बेंगवा । अनखाहा टरटरहा , देखाये सबला ठेंगवा । पुरखौती गद्दी म खुसरे खुसरे , बना लिन अपन गति । अपनेच अपन बर फुरमानुक , पांच बछरिया गनपति । लोट के , पोट के , भोग लगाये वोट के । न करम के , न धरम के ,…

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चुनावी व्‍यंग्‍य : बूता के अपग्रेडेसन

सांझ कुन के बेरा म गुड़ाखू घंसरत, दू झिन मनखे मन तरियापार म बइठके, दुख सुख गोठियावत रहय। एक झिन डमचगहा रहय , दूसर जादूगर। दुनो पक्का संगवारी रहय। गांव गांव, गली गली किंजर किंजर के, नावा नावा खेल देखाये तब कहूं ले दे के, बपरा मन के परिवार चलय। धीरे धीरे एकर मन के धनधा मार खाय लगिस। दुनो झिन ला भविस के फिकर होगे। जादूगर पूछथे – तैं का खेल देखाथस तेमा तोर धनधा मनदा परत हे। डमचगहा किथे – अगास म पातर डोरी बांध, नोनी ला ये…

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चुनाव के चिल्लाई म मतदान करना जरूरी हे

हमर समाज म कुछु के महत्व होवय चाहे झन होवय, तभोले चुनाव के बढ़ महत्व होथे, चुनाव अइसे चीज हे जेखर ले हमन ह कुछु भी अपन मन-पसंद चीज ल चुने के मौका मिलथे, जेखर सब ले बड़े फायदा होथे हमर समाज अउ विकास बर, नेता चुने के अधिकार हमन ल हे, त हमर इहा के नेता मन घलोक कम नइ हे जइसे चुनाव के बेरा तीर म आथे त ओहु मन मनखे के तीर तखार म मंडराए ल चालू कर देथे, जइसने पानी गिरथे त मेढ़क मन नरियात-नरियात नदिया…

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तोरे अगोरा हे लछमी दाई

होगे घर के साफ सफाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई। अंगना दुवार जम्मो लिपागे, नवा अंगरक्खा घला सिलागे। लेवागे फटक्का अउ मिठाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई।। 1 अंधियारी म होवय अंजोर, दीया बारंव मैं ओरी ओर। हूम-धूप अउ आरती गा के, पईयां परत हंव मैं ह तोर, बांटव बतासा-नरियर,लाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई।। 2 तोर बिन जग अंधियार, संग तैं त रतिहा उजियार। तोर किरपा ह होथे जब, अन-धन के भरय भन्डार। सुख-दुख म तैं सदा सहाई। तोरे अगोरा हे लछमी दाई।। 3 कलजुग के तहीं महरानी, तोर…

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कहानी : बड़का तिहार

गुरूजी पूछथे – कते तिहार सबले बड़का आय ? समझ के हिसाब से कन्हो देवारी, दसरहा अऊ होली, ईद, क्रिसमस, त कन्हो परकास परब ला बड़का बतइन। गुरूजी पूछथे – येकर अलावा ……? लइका मन नंगत सोंचीन अऊ किथे – पनदरा अगस्त अऊ छब्बीस जनवरी। कालू हा पीछू म कलेचुप बइठे रहय। गुरूजी पूछथे – तैं कुछु नी जानस रे ? ओला तिर म बलइस। कालू हा अपन चैनस के आगू कोती ला, पेंठ म खोंचे रहय, पीछू कोती, चैनस हा पेंठ ले बाहिर रहय। ओकर बिचित्र पहिनावा देख, लइका…

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देवारी तिहार : देवारी के दीया

देवारी के नाम लेते साठ मन में एक प्रकार से खुशी अऊ उमंग छा जाथे। काबर देवारी तिहार खुशी मनाय के तिहार हरे। देवारी तिहार ल कातिक महीना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। फेर एकर तइयारी ह 15 दिन पहिली ले शुरु हो जाथे। दशहरा मनाथे ताहन देवारी के तइयारी करे लागथे। घर के साफ सफाई – देवारी के पहिली सब आदमी मन अपन अपन घर, दुकान बियारा, खलिहान के साफ सफाई में लग जाथे। घर ल सुघ्घर लीप पोत के चकाचक कर डारथे। बारो महिना में जो कबाड़…

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गरीब के देवारी

गरीब के देवारी का पूछथस ? संगवारी। जेकर कोठी म धान हे ओखर मन आन हे। पेट पोसा मजदूर बर सबर दिन अंधियारी ॥ का पूछथस संगवारी – गरीब के देवारी। उघरा नंगरा लइका के सुसवाय महतारी। जिनगी भर झेलथे – करम छंड़हा , लाचारी। का पूछथस संगवारी – गरीब के देवारी। दुख जेकर नगदी हे सुख हे उधारी। भूख ओकर सच हे भरपेट – लबारी। का पूछथस संगवारी – गरीब के देवारी। दुनिया अबड़ अबूज हे बिन मुड़ी के भूत हे। ईमानदार बइठे हे ठाठा – बेईमान रोज छेवारी…

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गजल

सुरुज नवा उगा के देखन, अँधियारी भगा के देखन। रोवत रहिथे कतको इहाँ, उनला हम हँसा के देखन। भीतर मा सुलगत हे आगी, आँसू ले बुझा के देखन। कब तक रहहि दुरिहा-दुरिहा, संग ओला लगा के देखन। दुनिया म कतको दुखिया हे, दुख ल ग़ज़ल बना के देखन। बलदाऊ राम साहू

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देवारी बिसेस : हमर पुरखा के चिनहा ल बचावव ग

……हमर संस्कीरिती, हमर परंपरा अउ हमर सभ्यता हमर पहिचान ये।हमर संस्कीरिती हमर आत्मा ये।छत्तीसगढ़ के लोक परब, लोक परंपरा, अउ लोक संस्कीरिती ह सबो परदेस के परंपरा ले आन किसम के हावय।जिहाँ मनखे-मनखे के परेम, मनखे के सुख-दुख अउ वोखर उमंग, उछाह ह घलो लोक परंपरा के रूप म अभिव्यक्ति पाथे। जिंनगी के दुख, पीरा अउ हतास, निरास के जाल म फंसे मनखे जब येकर ले छुटकारा पाथे, अउ जब राग द्वेस से ऊपर उठ के उमंग अउ उछाह ले जब माटी के गीत गाथे अउ हमन खुसी ल जब…

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