चुनावी लघुकथा : बुरा न मानो …… तिहार हे

एक – तैं कुकुर दूसर – तैं बिलई एक – तैं रोगहा दूसर – तैं किरहा एक – तैं भगोड़ा दूसर – तैं तड़ीपार एक – तैं फलाना दूसर – तैं ढेकाना ……… गांव के मनखे मन पेपर म रोज पढ़य। अचरज म पर जावय के, अइसन एक दूसर ला काबर गारी बखाना करथे। ओमन सोंचय, अइसन न हमर सनसकिरीति, न सुभाव। तभे गांव गांव म, फोकट म चऊंर बांटे के, घोसना होय लगिस। पेटी पेटी चेपटी, आये लगिस। कपड़ा लत्ता बांटे बर, गांव गांव म होड़ मचे रहय। रात…

Read More

देवारी के दीया

चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो। अंधियारी ल दूर भगाके, जीवन में अंजोर लाबो।। कतको भटकत अंधियारी मे, वोला रसता देखाबो। भूखन पियासे हाबे वोला, रोटी हम खवाबो।। मत राहे कोनो अढ़हा, सबला हम पढ़ाबों। चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।। छोड़ो रंग बिरंगी झालर, माटी के दीया जलाबों। भूख मरे मत कोनो भाई, सबला रोजगार देवाबो।। लड़ई झगरा छोड़के संगी, मिलबांट के खाबो। चल संगी देवारी मे, जुर मिल दीया जवाबो।। घर दुवार ल लीप बहार के, गली खोर ल बहारबो। नइ होवन देन बीमारी,…

Read More

छत्तीसगढ़ी नवगीत

चलव गीत ल गा के देखन, चलव गीत ल गा के देखन, अंतस ल भुलिया के देखन। सुख अउ दुख तो आथे-जाथे, कभू हँसाथे कभू रोवाथे। मन के पीरा ला मीत बना ले अपने अपन वो गोठियाथे। ये सब के पाछू मा का हे ? चिटिक हमू फरिया के देखन। चार दिन बर चंदा आथे फेर अँधियारी समा जाथे ये जिनगी के घाम-छाँव हर दुनिया भर ला भरमाथे। जिनगी के मतलब जाने बर दुख-पीरा टरिया के देखन। जिनगी सरग बरोबर होथे सुख हर जब सकला जाथे मन उछाहित हो जाथे…

Read More

बेरोजगारी के पीरा

का बतावंव संगी मोर पीरा ल,नींद चैन नइ आवत हे। सुत उठ के बड़े बिहनियाँ,एके चिंता सतावत हे। नउंकरी नइ मिलत हे,अउ बेरोजगारी ह जनावत हे। दाई ददा ह खेती किसानी करके,मोला पढ़हावत हे। फेर उही किसानी करे बर,अब्बड़ मोला सरम आवत हे। पर के नउंकरी करे बर,मन ह मोर अकुलावत हे। अँगूठा छाप मन कुली कबाड़ी करके,पंदरा हजार कमावत हे। फेर मँय इस्नातक पास ल,पाँच हजार में घलो कोनो नइ बलावत हे। पढ़त-पढ़त सोचंव कलेक्टर बनहूँ,अब चपरासी बनना मुस्किल पड़त हे। नानकिन चपरासी बर,पी.एच.डी वाले मन फारम भरत हे।…

Read More

चुनावी कथा : कंठ म जहर

समुनदर मनथन म, चऊदह परकार के रतन निकलीस। सबले पहिली, कालकूट जहर निकलीस। ओकर ताप ले, जम्मो थर्राये लगीन। भगवान सिव, अपन कंठ म, ये जहर ला धारन कर लीन। दूसर बेर म, कामधेनु गऊ बाहिर अइस, तेला देवता के रिसी मन लेगीन। तीसर म, उच्चैश्रवा घोड़ा ल, राकछस राज बलि धरके निकलगे। चउथा रतन के रूप म निकले, एरावत हाथी, इंद्र ला दे दीन। पांचवा रतन, कौस्तुक मनि निकलीस तेला, भगवान बिसनु अपन हिरदे म राख लीस। छठवा रतन, कल्पबिरिक्छ निकलीस तेला, देवता मन अपन सरग म, लगा दीन।…

Read More

सोंच समझ के चुनव सियान

छत्तीसगढ़ ला गजब मयारू, सेवक चाही अटल जुझारू, अड़बड़ दिन भोरहा म पोहागे, निरनय लेके बेरा आगे। पिछलग्गू झन बनव, सुजान, सोंच समझ के चुनव सियान ।। करिया गोरिया जम्मो आही, रंग रंग के सब बात सुनाही, जोगी आही भोगी आही, सत्ता लोलुप रोगी आही। कोन हितू, कोन बेंदरा मितान, सोंचा समझ के चुनव सियान।। एक झिन बड़का सरग नेसेनी, दूसर के अदभुत हे करनी, ये नाग के नथइया, ओ सांप नचइया, दुबिधा म मत परव रे भइया। रसता सुझाही कुलेस्वर भगवान, सोंच समझ के चुनव सियान।। नहि खुरसी के…

Read More

मंय छत्तीसगढ़ बोलथंव

मंय छत्‍तीसगढ़ी बोलथंव मंय मन के गॉंठ खोलथंव छत्तीसगढ़ियामन सुनव मोर गोठ ल धियान गॉंव-गॉंव म घुघवा डेरा नंजर गड़ाहे गिधवा-लुटेरा बांॅध-छांद के रखव खेती-खार अऊ मचान एक-अकेला छरिया जाहू जुरमिल दहाड़व बघवा समान मंय छत्तीसगढ़ बोलथंव तूं सुनव देके कान चार-चिरोंजी पुरखऊती ए जंगल जिनगानी लिखाहे ते बस्तर म खून कहानी करिया कपटीमन रचाहे घोटुल-घोटुल गुंडाधूर निकलव भूमकाल बर उठावव तीर-कमान मंय छत्तीसगढ़ बोलथंव तूं सुनव देके कान करजा के सुनामी म बुड़गे रूख लटके किसान हे रेती कस किसानी गंवाथे किसान होथे गुलाम हे गॉंव-गॉंव ले किसान निकलव…

Read More

छत्तीसगढ़ी भासा के महत्तम

छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ ,गुरतुर बोली आय, आमा के रूख मा कोइली मीठ ,बोली अस आय. छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ….. हिदय के खलबलावत भाव ल उही रूप म लाय, फूरफूंदी अस उड़त मन के ,गीत ल गाय. छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ….. जइसन बोलबे तइसन लिखबे ,भासा गुन आय, जै जोहार अउ जै जवहरिया,सब्द भासा के आय. छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ…… अपन भासा म गोठियावव,सरम का के आय, छत्तीसगढ़ी भासा हमर राज के भासा आय . छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ….. हमर भासा बर रूख पीपर ,करेजा म ठंडक देवय, लोक गाथा…

Read More

सुवा कहि देबे संदेस

समारू हर ऐ बखत अपन दु एकड़ खेत म चना बोय रिहिस. बने ऊंच -ऊंच हरियर-हरियर चना के झार म अब्बड़ रोठ-रोठ मिठ दाना चना के फरे रिहिस. अइसन चनाबूट के दाना ल देख के समारू हर अब्बड़ खुस होगे रहाय. इही पइत के चना हर अब्बड़ सुघ्घर होय हवय, बने पचास बोरी ले जादा चना होही. अइसना बिचार म अब्ड़े खुस रिहिस समारू हर. अपन घरवाली संग संझा बिहिनिया चना के खेत के रखवारी करत रहाय. फेर चना हर पाके ल धरिस त एक दिन बिहिनिया समारू अउ ओखर…

Read More

छत्तीसगढ़ी गज़ल

भाषण सबो देवइया हावै। सपना गजब देखइया हावै। कौन इहाँ जी सच ला कहही सब के सब भरमइया हावै। काकरो मुँह में थाहा नइ हे मर्यादा कौन निभइया हावै? देस के चिंता हावै कौन ल, गड़बड़ गीत गवइया हावै। सबरी कस रद्दा हम देखथन राम कहाँ ले अवइया हावै? थाहा=नियंत्रण बलदाऊ राम साहू

Read More