अवइया चुनाव के नावा घोसना पत्र

जबले अवइया चुनाव के सुगबुगाहट होय हे तबले, राजनीतिक पारटी के करनधार मनके मन म उबुक चुबुक माते हे। घोसना पत्र हा चुनाव जिताथे, इही बात हा , सबो के मन म बइठगे रहय। चुनाव जीते बर जुन्ना घोसना पत्र सायदे कभू काम आथे तेला, जम्मो जानत रहय। तेकर सेती, नावा घोसना पत्र कइसे बनाय जाय तेकर बर, भारी मनथन चलत रहय। एक ठिन राजनीतिक दल के परमुख हा किथे – हमर करजा माफी के छत्तीसगढ़िया माडल सबले बने हाबे, उही ला पूरा देस म लागू कर देथन, अपने अपन…

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लोकतंत्र के आत्मकथा

न हाथ न गोड़, न मुड़ी न कान। अइसे दिखत हे, कोन जनी कब छूट जही परान। सिरिफ हिरदे धड़कत हे। गरीब के झोफड़ी म हे तेकर सेती जीयत हे। उही रद्दा म रेंगत बेरा, उदुप ले नजर परगे, बिचित्र परानी ऊप्पर। जाने के इकछा जागिरीत होगे। बिन मुहू के परानी ल गोठियावत देखेंव, सुकुरदुम होगेंव। सोंचे लागेंव, कोन होही एहा ? एकर अइसे हालत कइसे होइस , अऊ एहा कइसे जियत हे ? तभे हांसे लागिस ओहा। अऊ केहे लागिस, तेंहा अइसे सोंचत हावस बाबू, जानो मानो मोला कभू…

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अमित के कुण्डलिया ~ 26 जनवरी

001~ तिरंगा झंड़ा धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय। तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय। बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी। देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी। गुनव अमित के गोठ, कभू झन आय अड़ंगा। जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा। 002~ भारत भुँइयाँ भारत हा हवय, सिरतों सरग समान। सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान। होथे नवा बिहान, फुलय सब भाखा बोली। किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली। गुनव अमित के गोठ, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ। सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुँइयाँ।…

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मोर भारत भूइयाँ ल परनाम

देस के बीर जवान जेन करिस काम महान, देस के आजादी बर गवाँ दिस परान, अइसन पुन के माटी म धरेंव जनम। मोर भारत भूइयाँ ल परनाम।। धन हे वो कोरा जेमा बीर खेलिस, दूध के करजा ल लहू देके चुकइस बेरा अब आय हे लेके ओखर नाम, मोर भारत भूइयाँ ल परनाम।। अंगरेज मन के कारन हमर जिनगी होगे रहिस हराम, भगतसिंह,गांधी मन के मेहनत के हरय ये परिनाम, वोखरे सेती करत हाबन बेफिकर होके काम। मोर भारत भूइयाँ ल परनाम।। अजादी के बाद समसिया आगे महान, जेकर बाबा…

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आजादी के गीत

खूने-खून के नदिया बोहाइस, परान छुटत ले लड़े हे। आजाद कराय बर देस ल, दुस्मन संग भिड़े हे। उही लहू के करजा ल, अब चुकाये ल परही। आजादी के गीत ल, मिलके गाये ल परही।।… घर दुवार के मोह छोड़ के, देस के रक्छा करे हे। भारत माँ के लाज बर, आगी अँगरा म जरे हे। जग ल अँजोर करइया बर, एक दीया जलाये ल परही। आजादी के गीत ल, मिलके गाये ल परही।।… जवान मन के बल देख, मउत घलो ह हारे हे। देस धरम के नास करइया, बइरी…

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मोर गांव म कब आबे लोकतंत्र

अंगना दुवार लीप बोहार के डेरौठी म दिया बार के अगोरय वोहा हरेक बछर। नाती पूछय कोन ल अगोरथस दाई तेंहा। डोकरी दई बतइस ते नि जानस रे अजादी आये के बखत हमर बड़ेबड़े नेता मन केहे रिहीन के जब हमर देस अजाद हो जही त हमर देस म लोकतंत्र आही। उही ल अगोरत हंव बाबू। नाती पूछिस ओकर ले का होही दाई ? डोकरी दई किथे लोकतंत्र आही न बेटा त हमर राज होही हमर गांव के बिकास होही। मनखे मनखे में भेद नि रही। हमर गांव के गरीबी…

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आजादी के दीवाना : सुभाष चंद्र बोस (23 जनवरी जयंती विशेष)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जनम 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में होय रिहिसे । एकर बाबूजी के नाँव श्री जानकी नाथ बोस अउ दाई के नाँव श्रीमती प्रभावती रिहिसे । एकर बाबूजी ह कटक शहर के जाने माने वकील रिहिसे । पढ़ई – लिखई – सुभाष चंद्र बोस ह पढ़ई – लिखई में बहुत हुशियार रिहिसे । वोला पढ़े लिखे के अब्बड़ सँउख रिहिसे । प्राथमिक शाला ल वोहा कटक शहर में पूरा करीस हे । ओकर बाद कालेज ल कलकत्ता में…

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नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी

सियान मन के सीख सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा ? नवा चाउर के चीला अउ पताल के चटनी अबड़ मिठाथे रे। फेर हमन नई मानन। संगवारी हो हमर छत्तीसगढ़ राज ला बने 18 बछर हो गे। ए 18 बछर में हमर छत्तीसगढ़ हर बहुत आगू बढ़िस। हमर छत्तीगढ़ में नवा-नवा उद्योग-धंधा खुल गे, नवा-नवा सड़क बनगे, बिजली के उत्पादन में हमन अगुवा गेन, हमर लोक कला अउ संस्कृति घलाव अगुवाइस फेर हमर छत्तीसगढ़ी पकवान हर खुल के हमर छत्तीसगढ़ के…

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सियान मन के सीख : ए जिनगी के का भरोसा

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! ए जिनगी के का भरोसा रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। लइकई उमर से ले के सियानी अवस्था तक मनखे के रूप रंग हर अतेक बदलथे जेखर कल्पना नई करे जा सकय। केवल रूप रंग भर बदलथे अइसे नई हे समय हर घलाव बदलत रहिथे अउ समय के अनुसार हमर बानी बिचार हर घलाव बदलत रहिथे। अइसे मा कहे जा सकथे के समय के घलाव कोनो भरोसा…

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कहाँ गँवागे मोर माई कोठी

“पूस के महीना ठूस” कहे जाथे काबर के ये महीना में दिन ह छोटे होथे अउ रात ह बड़े।एहि पूस महीना के पुन्नी म लईका सियान मन ह बड़े बिहनिया ले झोला धर के घर-घर जाथें अउ चिल्ला चिल्ला के कहिथे छेर-छेरा अउ माई कोठी के धान ला हेरते हेरा। घर के मालकिन ला बुलाथें अउ मया दुलार के आसीरबाद ला पाथे।हमर मयारू महतारी मन ह सुपा भर भर के धान ला देके अपन अशीष अउ मया ला बाँटथें।एही दिन हमर लईका जवान संगी मन ह झूम घूम के डंडा…

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