कबीरदास कोन ? एक भक्त , समाज सुधारक या एक रहस्यवादी जन कवि

हमर देस राज म साहित्य बैदिक काल ले आज तलक समरिध हावय चाहे वो जब हिंदी भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिंदी भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिंदी भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिंदी साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल, रीतिकाल…

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दुसर के दुख ला देख : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने म ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा ! दुसर के दुख ला देख रे! फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। काबर उमन कहय के दुसर के दुख ला देख। संगवारी हो ये दुनिया में भांति-भांति के मनखे हे। कोनो मन दुसर के दुख ला नई देखे सकय त कोनो मन दुसर के सुख ला नई देखे सकय यहू हर अड़बड़ सोचे के बात हरय। तइहा के मनखे मन के मन में जम्मों जीव-जन्तु…

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हीरा सोनाखान के

छत्तीसगढ़ी साहित्य के पद्य लेखन मा उत्कृष्ट लेखन के कमी हवय, छन्द लेखन म तो बिल्कुल नगण्य। येकर भरपाई – हीरा सोनाखान के (खंडकाव्य) करत हवय । ये खण्डकाव्य ला पढ़ेंव एक घव मा मन नइ माढ़ीस ता दुबारा-तिबारा पढ़ डारेंव। पंडित सुंदरलाल शर्मा के दानलीला के एक लंबा अंतराल मा खण्ड काव्य आइस जेन पूरा व्याकरण सम्मत अउ विधान सम्मत हवय। बीच-बीच मा खण्डकाव्य के इक्का दुक्का किताब जरूर आइस फेर व्याकरण अउ विधान म पूरा खरा नइ उतरिस । मितान जी के ये खण्डकाव्य विधान सम्मत अउ व्याकरण…

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दिनेश चौहान के आलेख – कबीर जयंती बर विशेष : जन-मन म बसे कबीर

हिन्दी साहित्य के अकास म आज ले लगभग सवा छै सौ साल पहिली एक अइसे नक्षत्र के उदय होय रिहिस जेला हमन कबीरदास के नाँव ले जानथन। कबीरदास जी कवि ले बढ़के एक समाज सुधारक रिहिन। जउन सोझ-सोझ अउ खर भाखा म बात केहे के बावजूद हिन्दू अउ मुसलमान दुनो के बीच समान रूप म लोकप्रिय होइन अउ आजतक ले हवँय। ऊँखर पूरा जीवन विवाद के चादर म लपटाय मिलथे। कबीरदास जी के माता-पिता अउ जनम के बारे म निश्चित ढंग ले कुछ कहना संभव नइ हे। कोनो कहिथे के…

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खेती किसानी

बादर गरजे बिजली चमके , गिरय झमाझम पानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। खातू कचरा फेंकय सबझन , नाँगर ला सिरजाये । काँटा खूँटी साफ करय सब , मेड़ पार बनवाये ।। चूहत रहिथे परछी अब्बड़ , छावय खपरा छानी । सबके मन हा हुलसत हावय , करबो खेती किसानी ।। बड़े बिहनिया बासी धर के , चैतु खेत मा जाथे । मिहनत करथे सबो परानी , तब बासी ला खाथे ।। मिहनत के फल मिलथे संगी , हावय बादर दानी । सबके मन…

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सुरता मा जुन्ना कुरिया

पच्चीस बच्छर बीत गे हावय। हमर आठ खोली के घर के नक्सा नइ बदलिस। चारो मुड़ा खोली अउ बीच मा द्वार। एक खोली ले बाड़ी डहर जाय के रद्दा। पच्चीस बच्छर पहिली कुवाँर कातिक मा ये नवा घर ला नत्ता गोत्ता संग मिलके सिरजाय रहिन। संगे संग मोर बिहाव करेबर टूरी खोजेबर बात चलात रहिन। मोरो लगन फरियाय रहय। माघ महिना मा घर सिरजगे। फागुन महिना के आखिर मा वो परिवार मिलगे जौन अपन बेटी देयबर तियार होगे। चइत मा चुमा चाटी,पेज पसिया, पइसा धरई होगे। बइसाख नम्मी मा भाँवर…

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