पच्चीस बच्छर बीत गे हावय। हमर आठ खोली के घर के नक्सा नइ बदलिस। चारो मुड़ा खोली अउ बीच मा द्वार। एक खोली ले बाड़ी डहर जाय के रद्दा। पच्चीस बच्छर पहिली कुवाँर कातिक मा ये नवा घर ला नत्ता गोत्ता संग मिलके सिरजाय रहिन। संगे संग मोर बिहाव करेबर टूरी खोजेबर बात चलात रहिन। मोरो लगन फरियाय रहय। माघ महिना मा घर सिरजगे। फागुन महिना के आखिर मा वो परिवार मिलगे जौन अपन बेटी देयबर तियार होगे। चइत मा चुमा चाटी,पेज पसिया, पइसा धरई होगे। बइसाख नम्मी मा भाँवर…
Read MoreMonth: June 2019
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
जिहां खिले-फुले धान, सुग्घर खेत अउ खलिहान। देवी-देवता के हे तीर्थ धाम, कहिथे ग इहां के किसान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…….! दुख पीरा के हमर दुर करइया, हरय हमर छत्तीसगढ़ मइया। हरियर-हरियर हे दाई के अंगना, कहिथे ग इंहा के लइका अउ सियान। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान…..! माटी ल माथा म लगाके देखबे, चन्दन – बंदन ल भुला जाबे। गुलाब कस सुंगंध दिही, कहिथे ग इहां के मजदूरमन। मोर छत्तीसगढ़ महतारी, हे ग महान……! सुत उठ के करथंव प्रणाम, इही मोर दाई-ददा अउ भगवान। जेखर करंव…
Read Moreलघु कथा – दरूहा
सुकलू ह तीस बछर के रहिस हे अउ ओकर टुरा मंगलू ह आठ बछर के रहिस हे,सुकलू ह आठ-पन्दरा दिन मं दारू पीयय,मंगलू करन गिलास अउ पानी ल मंगाववय त मंगलू ह झल्ला के काहय कि ददा मोला बिक्कट घुस्सा आथे तोर बर,तय दारू काबर पीथस गो,छोड़ देना।सुकलू ह काहय,दारू पीये ले थकासी ह भागथे रे,तेकर सेती पीथंव,मय ह दरूहा थोेड़े हरंव,कभू-कभू सुर ह लमथे त पी लेथंव,सियान सरीक मना करत हस मोला,जा भाग तय हर भंउरा-बाटी ल खेले बर,मोला पीयन धक। दिन ह बिसरत गिस अउ मंगलू ह तेरह…
Read Moreजिनगी जरत हे तोर मया के खातिर
जिनगी अबिरथा होगे रे संगवारी सुना घर – अंगना भात के अंधना सुखागे जबले तै छोड़े मोर घर -अंगना छेरी – पठरू ,घर कुरिया खेती – खार खोल – दुवार कछु नई सुहावे तोर बोली ,भाखा गुनासी आथे का मोर ले होगे गलती कैसे मुरछ देहे मया ल सात भाँवर मड़वा किंजरेंन मया के गठरी म बंध गेन नान – नान, नोनी – बाबू मया चोहना ल कैसे भुलागे जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर ….. काबर तै मोला भुलागे जिनगी ल अबिरथा बनादे लहुट आ अब मोर जिनगी…
Read Moreका जनी कब तक रही पानी सगा
का जनी कब तक रही पानी सगा कब तलक हे साँस जिनगानी सगा आज हाहाकार हे जल बूँद बर ये हरय कल के भविसवाणी सगा बन सकय दू चार रुखराई लगा रोज मिलही छाँव सुखदाई हवा आज का पर्यावरण के माँग हे हव खुदे ज्ञानी गुणी ध्यानी सगा सोखता गड्ढा बना जल सोत कर मेड़ धर परती धरा ला बोंत कर तोर सुख सपना सबे हरिया जही हो जही बंजर धरा धानी सगा तोर से कुछ होय कर कोशिश तहूँ कुछ नही ता नेक कर ले विश तहूँ प्रार्थना सुनही…
Read Moreबिरहा के आगी
जान – चिन्हार 1ः- रत्नाकर – एकठन कबि 2ः- किसन – परम आत्मा 3ः- उधव – किसन के सखा 4ः- राधा – किसन के सखी 5ः- ललिता – राधा की सखी 6:- अनुराधा – राधा की सखी दिरिस्य: 1 रत्नाकर – गोपीमन अउ किसन के बिरह के पीरा के कथा अकथनीय हावय। अथहा हावय, जेला नापा नी जा सकाय। ओ बियथा के बरनन ला चतुर अउ बने कबि ला कहत नी बनय। मैंहर तो आम आदमी हावंव। जइसने बरज के गोपी मनला संदेस दे बर उधव ला समझाय लागिस, वइसने…
Read Moreगरमी के दिन आगे
गरमी के दिन आगे संगी , मचगे हाहाकार । तरिया नदियाँ सबो सुखागे , टुटगे पानी धार ।। चिरई चिरगुन भटकत अब्बड़ , खोजत हावय छाँव । डारा पाना जम्मो झरगे , काँहा पावँव ठाँव ।। तीपत अब्बड़ धरती दाई , जरथे चटचट पाँव । बिन पनही के कइसे रेंगव , जावँव कइसे गाँव ।। बूँद बूँद पानी बर तरसे , कइसे बुझही प्यास । जगा जगा मा बोर खना के , करदिस सत्यानास ।। बोर कुवाँ जम्मो सुख गेहे , धर के बइठे माथ । तँही बचाबे प्राण सबो…
Read Moreमोर छइयां भुइयां के माटी
मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न, गंगाजल कस पावन धारा महानदी ह बोहाथे न । मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर.महर ममहाथे न ।। धान कटोरा हे मोर भुइयां ये हीरा मोती उगलथे रे, अरपा, पैरी, सोंढूर, शिवनाथ एकर कोरा म पलथे रे । अछरा जेकर हरियर-हरियर मया इहां पलपलाथे न, मोर छइयां भुइयां के माटी रे संगी महर महर ममहाथे न ।। मैनपाट जस शिमला लागे कश्मीर जस चैतुरगढ़ सोहे, प्रयागराज जस राजीव लोचन भोरमदेव हर मन ल मोहे । डोंगरगढ़ म माता…
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