छत्‍तीसगढ़ी जनउला (पहेली-प्रहेलिकायें)

बिना पूंछी के बछिया ल देख के, खोदवा राउत कुदाइस खेत के मेंड ऊपर बैठके, बिन मूंड के राजा देखिस (मेंढक, सर्प और गिरगिट) नानक टुरी के फुलमत नांव हे, गंवा के फुंदरा गिजरिया गांव (पैली, काठा ) काटे ठुड़गा उलहोवय नहीं (बोडरी ) एक ठन धान के घर भर भूसा (चिमनी ) कर्रा कुकरा, अंइठ पूंछी, अउ छू दिहीच, ते किकया उठीच (शंख) खा पी के जुठही बलावय (बहारी ) वृहद आनलाईन छत्‍तीसगढ़ी-हिन्‍दी शब्‍दकोश की कड़ी- https://dictionary.gurturgoth.com दिन मन अल्लर राहय, रात कन अडे़ राहय (छांद डोरी ) पेट…

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छत्‍तीसगढ़ी भाषा परिवार की लोक कथाऍं

छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हलबी, धुरवी, परजी, भतरी, कमारी, बैगानी, बिरहोर भाषा की लोक कथाऍं लेखक – बलदाऊ राम साहू छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ प्रांत में बोली जानेवाली भाषा छत्तीसगढ़ी कहलाती है। यूँ तो छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रभाव सामान्यतः राज्य के सभी जिलों में देखा जाता है किन्तु छत्तीसगढ़ के (रायपुर, दुर्ग, धमतरी, कांकेर, राजनांदगाँव, कोरबा, बस्तर, बिलासपुर,जांजगीर-चांपा और रायगढ़) जिलों में इस बोली को बोलने वालों की संख्या बहुतायत है। यह भाषा छत्तीसगढ के लगभग 52650 वर्ग मील क्षेत्र में बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी भाषा का स्वरूप सभी क्षेत्र में एक समान…

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जल अमरित

पानी के बूँद पाके, हरिया जाथें, फुले, फरे लगथें पेड़ पउधा, अउ बनाथें सरग जस,धरती ल। पानी के बूँद पाके, नाचे लगथे, मजूर सुघ्घर, झम्मर झम्मर। पानी के बूँद पाए बर, घरती के भीतर परान बचाके राखे रहिथें टेटका, सांप, बिछी, बीजा, कांद-दूबी, अउ निकल जथें झट्ट ले पाके पानी के बूँद, नवा दुनिया देखे बर। पानी के सुवागत मं नाचथें फुरफून्दी, बत्तर कीरा। इसकूल घलोक करत रहिथे अगोरा पानी के खुले बर। पानी पाके लाइन घलोक हो जथे अंजोर, पहिली ले जादा। पानी ल पाके, किसान सुरु करथे काम…

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सुरता

गिनती, पहाड़ा, सियाही, दवात पट्टी, पेंसल, घंटी के अवाज स्कूल के पराथना, तांत के झोला दलिया, बोरिंग सुरता हे मोला। बारहखड़ी, घुटना अउ रुल के मार मोगली के अगोरावाला एतवार चउंक के बजरंग, तरियापार के भोला भौंरा, गिल्ली-डंडा सुरता हे मोला। खोखो, कबड्डी अउ मछली आस भासा, गनित, आसपास के तलाश एक एकम एक, चार चउंके सोला चिरहा टाटपट्टी सुरता हे मोला। गाय के रचना, चिखला मे सटकना बियाम के ओखी एती ओती मटकना अलगू, जुम्मन अउ कांच के गोला कंडील के अंजोर सुरता हे मोला। चोर-पुलिस,आदा-पादा खी-मी, कुकुरचब्बा आधा…

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कुछ तो बनव

आज अंधियारी म बितगे भले, त अवइया उज्जर कल बनव। सांगर मोंगर देहें पांव हे, त कोनो निरबल के बल बनव। पियासे बर तरिया नी बनव, त कम से कम नानुक नल बनव। रूख बने बर छाती नीहे, त गुरतुर अउ मीठ फल बनव। अंगरा बरोबर दहकत हे जम्मो, त ओला शांत करे बर जल बनव। कपट के केरवस मे रंगे रहे जिनगानी, त अब तो थोरिक निरमल बनव। रीझे यादव टेंगनाबासा(छुरा)

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कपड़ा

कतका सुघ्घर दिखथे वोहा अहा! नान-नान कपड़ा मं। पूरा कपड़ा मं, अउ कतका सुघ्घर दिखतीस? अहा!! केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘ बरदुली,कबीरधाम (छ.ग. ) 7999385846

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बंदौ भारत माता तुमला : कांग्रेस आल्हा

खरोरा निवासी पुरुषोत्तम लाल ह छत्तीसगढ़ी म प्रचार साहित्य जादा लिखे हे। सन 1930 म आप मन ह कांग्रेस के प्रचार बर, ‘कांग्रेस आल्हा’ नाम केे पुस्तक लिखेे रहेव। ये मां कांग्रेस के सिद्धांत अऊ गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम के सरल छत्तीसगढ़ी म वरनन करे गए हे। कांग्रेस आल्हा के उदाहरन प्रस्तृत हे – वंदे मातरम् बंदौ भारत माता तुमला, पैंया लागौं नवा के शीश। जन्म भूमि माता मोर देबी, देहु दास ला प्रेम असीस।। विद्या तुम हौ धरम करम हौ, हौ सरीर औ तुम हौ प्रान। भक्ति शक्ति…

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उरमाल म मयारू तोर मुंह ल पोंछव उरमाल म

उरमाल म मयारू (गजामूंग) तोर मुंह ल पोंछव उरमाल म, उरमाल म ग बईहा तोर मुंह ल पोछवं उरमाल म। अमली फरे कोका-कोका जामुन फरे करिया ओ चल दूनो झन संगे जाबो तरिया। उरमाल म … आम गाँव जामगांव तेंदू के बठेना तोर बर लानेंव मय चना-फूटेना । उरमाल म … हाट गेंव बजार गेव उहाँ ले लानेव तारा, पूछत पूछत, आबे बही तैं हा टिकरीपारा । उरमाल म … खीरा खाले केकरी खाले अऊ खाले जोंधरा, चल बही दूनों देखबो दूधमोंगरा। उरमाल म …

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बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमरे

बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमरेे, डोंगरी के पाके चार ले जा लान दे बे । मया के बोली भरोसा भारी रे कहूँ दगा देबे राजा लगा लेहूँ फाँसी । बखरी के तुमा नार … हम तैं आगू जमाना पाछू रे कोनो पावे नहीं बांध ले मया म काहू रे । डोंगरी के पाके चार … तोर मोर जोडी गढ लागे भगवान, गोरी बइंहा म गोदना गोदाहूँ तेरा नाम । बखरी के तुमा नार … मऊहा के झरती कोवा के फरती … फागुन लगती राजा आ जाबे जल्दी ।…

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कोइली के गुरतुरबोली मैना के मीठी बोली जीवरा ल बान मारे रेे

कोइली के गुरतुरबोली मैना के मीठी बोली जीवरा ल बान मारे रेे … गिरे ल पानी चूहे ल ओइरछा, तोर मया म मयारू मारथे मूरछा । जीवरा ल बान मारे रै … गोंदा के फूल बूंभर कांटा रे तोर सुख-दुख म हे मोरो बांटा रे। जीवरा ल बान मारे रे … पीरा के ओर न पीरा के छोर तोर दरस बर संगी मन कल्पथे मोर जीवरा ल बान मारे रे … । दुखिया बाई, टिकरी पारा (गंडई ) राजनादगाव से प्राप्त।

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