माटी के काया

माटी के काया ल आखिर माटी म मिल जाना हे। जिनगी के का भरोसा,कब सांस डोरी टूट जाना हे। सांस चलत ले तोर मोर सब,जम्मो रिश्ता नाता हे। यम के दुवारी म जीव ल अकेला चलते जाना हे। धन दोगानी इंहे रही जही,मन ल बस भरमाना हे। चार हांथ के कंचन काया ल आगी मे बर जाना हे। समे राहत चेतव-समझव,फेर पाछू पछताना हे। मोह-माया के छोड़के बंधना,हंसा ल उड जाना हे। नाव अमर करले जग मे,तन ल नाश हो जाना हे। सुग्घर करम कमाले बइहा,फेर हरि घर जाना हे।…

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सरकारी इसकूल

लोगन भटकथें सरकारी पद पाए बर, खोजत रहिथें सरकारी योजना/सुविधा के लाभ उठाए बर, फेर परहेज काबर हे, सरकारी इसकूल, अस्पताल ले? सबले पहिली, फोकट समझ के दाई ददा के सुस्ती, उप्पर ले, गुरुजी मन उपर कुछ काम जबरदस्ती। गुरुजी के कमी,और दस ठोक योजना के ताम झाम मं, गुरुजी भुलाये रहिथे पढ़ई ले जादा दूसर काम मं। नइ ते सरकारी इसकूल के गुरुजी, होथे अतका जबरदस्त जइसे पराग कन फूल के, जेन सरकारी गुरुजी बने के योग्यता नइ रखै नइ ते बन नइ पावै, तेने ह बनथे संगी गुरुजी…

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समीक्षा : जुड़वा बेटी

छत्तीसगढ़ी साहित्य म गद्य लेखन नहीं के बतौर होवत हे। कहानी,एकांकी,उपन्यास के तो मानो टोंटा परे हवय। अइसन बेरा मा बादल जी के “जुड़वा बेटी” ल पढ़े के बाद ये आस जागिस हवय कि अब गद्य लेखन छत्तीसगढ़ी मा समृद्ध होही। बादल जी के कहानी मन आँचलिक समस्या ऊपर केंद्रित हवय। गाँव गवई में समाज के समस्या ल कहानी के रूप मा प्रस्तुत करके  पाठक ल जोड़े मा बादल जी पूरा सफल होय हवय। मुहावरा अउ लोकोक्ति के सुग्घर प्रयोग बादल जी के कहिनी म देखे बर मिलथे। कहानी के…

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सेल्फी के चक्कर

सेल्फी ले के चक्कर में , दूध जलगे भगोना में। सास हा खोजत हे अब्बड़, बहू लुकाय कोना में । आ के धर लिस चुपचाप सास हा हाथ, बहू हा देखके खड़े होगे चुपचाप । घर दुवार के नइहे कोनो कदर , मइके से ला हस का दूध गदर। एक बात बता ऐ मोबाइल मा का हे खास, सबो झन करथे इही मा टाइम पास। चींटू अऊ चींटू के दादा इही म बीजी रहीथे, थोकिन मांगबे ता जोर से चिल्लाथे। का जानबे डोकरी आजकाल के ऐप ला, घर मा पानी…

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बेरा के गोठ : फिलिम के रद्दा कब बदलही

आजकल जौन ला देखबे तौन हा फिलिम, सिरियल अउ बजरहा जिनिस बेचइया विज्ञापन करइया मनके नकल करेबर अउ वइसने दिखेबर रिकिम रिकिम के उदिम करत हे।सियान मन कहिते रहिगे कि फिलिम विलिम ला देखव झिन, ये समाज अउ संस्कृति के लीलइया अजगर आय जौन सबो ला लील देही। आज वइसनेच होत हावय। हमर पहिराव ओढ़ाव, खाना पीना, रहना बसना, संस्कृति, परंपरा, तीज तिहार, बर बिहाव सबो फिल्मी होगे। देस मा जब फिलिम बनेबर सुरु होइस तब कोंदा फिलिम अउ करिया सफेद (ब्लेक एंड व्हाइट) फिलिम हा हमर देबी देवता के…

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन भूकत,  उछरत,  घूमत  हावै,  गाँव  के  मतवार  मन, लाँघन, भूखन बइठे हावै, कमिया अउ भुतियार मन। राज बनिस नवा-नवा, खुलिस कतको रोजगार  इहाँ, मुसवा कस मोटागे उनकर, सगा अउ गोतियार  मन। साहब, बाबू, अगुवा मन ह, छत्तीसगढ़ ल चरत हावै, चुचवावत सब बइठे हे, इहाँ  के  डेढ़  हुसियार  मन। पर गाँव ले आये  हे, उही  चिरई  मन  हर  उड़त  हे, पाछू-पाछू म  उड़त  हावै,   इहाँ  के  जमीदार  मन। सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन, कते बुता ल करन हम। धर ले हें  जम्मो  धंधा  ल,  अनगइहाँ  बटमार  मन। –बलदाऊ राम…

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सक

‘‘मोर सोना मालिक, पैलगी पहुॅचै जी। तुमन ठीक हौ जी? अउ हमर दादू ह? मोला माफ करहौ जी, नइ कहौं अब तुंह ल? अइसन कपड़ा,अइसे पहिने करौ। कुछ नइ कहौं जी, कुछ नइ देखौं जी अब, कुछू नइ देखे सकौं जी, कुछूच नहीं, थोरकुन घलोक नहीं जी। तुमन असकर कहौ, भड़कौ असकर मोर बर, के देखत रहिथस वोला-वोला, जइसे मरद नइ देखे हे कभू, कोनों दूसर लोक ले आए हे जनामना तइसे………। मोर राजा मालिक, तुहर ऑखि के आघू, कोनों माई लोगिन/मावा लोग आ जाथे कभू, त तुमन देख लेथौ…

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