प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – संस्कार

संस्कार – छट्ठी (छठी), मुहू जुठारना (अन्न प्राशन संस्कार), झालर उतारना (मुंडन संस्कार), बरवा (जनेऊ संस्कार), मंगनी-जंचनी, बिहाव (विवाह संस्कार), मुह देखउनी, सधउरी (गोद भराई), काठी /लेसना/माटी देना (अंतिम संस्कार)) आगी देना (मुखाग्नि), तिज नहावन (तीसरा करना), दसनहावन (दशगात्र), तेरही (तेरहवाँ करना), बरसी (वार्षिक श्राद्ध)। विवाह संबंधी प्रक्रिया– मंगनी-जंचनी, मंगनी /सगई, चूलमाटी, मड़वा, तेल-हरदी, हरदाही, माई मौरी, नहडोरी, बरात, परघनी, दूधभत्ता, भांवर, टिकावन, बिदा, चौथिया, लिहे बर जाना, गवना। व्यक्ति– ढेड़हा, पगरईत (दूल्हे के पिता, चाचा आदि), लोकड़हीन, सुवासीन, लेठवा, चूल मंदरिहा (दोनो पक्षों का मध्यस्थ) आदि । सामग्री– मर, पर्रा, झाँपी,…

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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – खानपान

शाकाहार व्यंजन – दार, भात, रोटी, साग, बरा, भजिया, बोबरा, अँईरसा, फरा, सौंहारी, ठेठरी, खुरमी, पेठा, रसाउर, खस्तोरी, धुसका, हथफोड्वा, पपची, देहदौरी, करी, चौसेला, चिलबोबरा, पीठा, तसमही, तिलगुजिया, बफौरी, नूनफरा, भजिया, रोट, घुचकुलिया, बासी, चटनी, अंगाकर रोटी, चिला, कोहरी, फरा, दुधफरा, मुठिया, अट्टरसा, कोढा रोटी, गुझा, कढी, पेंऊस, खुजरी, खीर, सेवड, बघारे भात, खिचरी, फरहार-कतरा, घीव, लाडू- बूँदी, करी, मुर्रा, लाई, मोतीचूर, तिली, मगज, चिरोंजी, छेवारी लाडू, बेसन । मोदक, साबूदाना, पापड, सेतवा, गुरभजिया /गुलगुला भजिया, मिरचा भजिया, लिमउ अथान, आमा अथान, मिरचा अथान, करउंदा अथान, अंवरा / जिमिकांदा अथान,…

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महान लोकनायक अउ समन्वयवादी कबि गोस्वामी तुलसीदास

हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दील भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीत भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिन्दीत भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दीं साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन,…

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नाग पंचमी के महत्तम

हमर भारत देस राज ह खेती-किसानी वाला देस हावय। याने हमर देस ह किरसी परधान देस हावय। नाग देवता ह किसान के एक परकार ले संगवारी ये, काबर के वो ह किसान के खेत-खार के रछा करथे। येखर कारन वोला छेत्रपाल कहे जाथे। छोटे-मोटे जीव जंतु अउ मुसवा ह फसल ल नुकसान करे वाला जीव हावय। ओखर नास करके नाग ह हमर खेत के रछा करथे। सांप ह हमन ल कई परकार के संदेस घलो देथे। सांप के गुन देखे बर हमनकरा गुनग्राही अउ सुभग्राही नजर होना चाही। भगवावन दत्ता़त्रय…

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गुने के गोठ : मोर पेड़ मोर पहिचान

वासु अउ धीरज ममा फूफू के भाई ऑंय। दूनो झन चार छ: महिना के छोटे बड़ेआय। दूनो तीसरी कक्छा मा पढ़थें। वासु शहर के अँगरेजी इस्कूल मा पढ़थे अउ धीरज गाँव के सरकारी स्कूल मा। धीरज के दाई ददा किसानी करथँय अउ वासु के दाई ददा नउकरिहा हावँय। गर्मी के छुट्टी माँ एसो वासु हा ममा गाँव गइस। आजी आजा खुश होगे। ममा मामी के घलाव मया दुलार पाय लगिस।फेर सबले बढ़िया ओला धीरज लगिस। लइका अपन खेलबर संगवारी खोजथे। ओला अपन जँहुरिया संगवारी मिलगे। दू दिन वासु के महतारी…

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शिव शंकर

शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी  , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी  , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में  , चंदा चमके माथ में । श्रद्धा रखथे नाथ में  , गौरी ओकर साथ में ।। सावन महिना खास हे , भोले के उपवास हे । जेहर जाथे द्वार जी  , होथे बेड़ा पार जी ।। महेन्द्र देवांगन “माटी”  (शिक्षक) पंडरिया …

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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

आँसू के कीमत तैं का जनाबे। प्रेम- मोहब्बत तैं  का  जानबे। झगरा हावै धरम अउर जात के, हे असल इबादत तैं का जानबे। आँसू  पोंछत  हावै  अँछरा  मा, दुखिया के हालत तैं का जानबे। सटका बन के  तैं  बइठे  हावस, हे जबर बगावत  तैं  का जानबे। हावै फोरा जी जिनकर  पाँव  मा, उन झेलिन मुसीबत तैं का जानबे। सटका= बिचौलिया, फोरा=फोड़ा, बलदाऊ राम साहू

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कविता: कुल्हड़ म चाय

जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे जमाना चिट्ठी के पढोईया नंदागे गांव ह घलो बिगड़ गे जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे कुनहुन गोरस के पियैया “साहिल” घलो दारू म भुलागे आम अमचूर बोरे बासी ह नंदागे तीज तिहार म अब फैसन ह आगे पड़ोसी ह घलो डीजे म मोहागे का कहिबे मन के बात ल अब अपन संगवारी ह घलो मीठ लबरा होगे जेती देखबे ओती मोबाईल ह छागे घर म खुसर फुसुर अउ खोल…

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कविता : वा रे मनखे

वा रे मनखे रूख रई नदिया नरवा सबो ल खा डरे रूपिया- पैसा धन-दोगानी, चांदी-सोना सबो ल पा डरे जीव-जंतु, कीरा-मकोरा सब के हक ल मारत हस आंखी नटेरे घेरी बेरी ऊपर कोती ल ताकत हस पानी नी गीरत हे त तोला जियानत हे फेर ए दुनिया के सबो परानी ऊपरवाला के अमानत हे तोर बिसवास म पूरा पिरथी ल तोला दे दिस अउ तें बनगे कैराहा-कपटी, लालची अब भुगत अपन करनी के सजा ऊपरवाला ल लेवन दे मजा!! रीझे यादव टेंगनाबासा (छुरा)

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किताब कोठी: आवौ भैया पेड़ लगावौ

छत्तीसगढ में बालगीतों का सृजन सबसे पहली बात तो यह कि बाल-गीत या कहें कि बालकों यानी बच्चों के लिए किसी भी विधा में लिखना ही अपने-आप में बडा चुनौती भरा काम है। लेकिन उन सबमें ‘बाल गीत’? इसके लिए गीतकार को (या कहें कि बाल साहित्यकार को) उसी स्तर पर जाना पडता है। स्वयं को बालक बना लेना पडता है और तभी वह बालकों की जुबान पर आसानी से चढ जाने वाले गीत, कविता, कहानी, नाटक, एकांकी आदि का सृजन कर पाता है। यदि यह सब इतना कठिन नहीं…

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