सुरता : प्रेमचंद अउ गांव

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित के अनमोल रतन आय। उंकर लिखे कहानी अउ उपन्यास आज घलो बड चाव से पढ़े जाथे। उंकर कहानी ल पढत रबे त अइसे लागथे जानो मानो सनिमा देखत हैं। उंकर कहानी के पात्र के हर भाव ल पाठक ह सोयम महसूस करथे। गांव अउ किसान के जइसन चित्रण उंकर कहानी म पढ़े बर मिलथे वइसन दूसर कहानीकार मन के कहानी म देखब म बहुत कम अथे। गांव ल संउहत गांव बरोबर उही मन कागज म उतारे हे। नानुक रहंव त बड संउक लागे महूं अलगू चौधरी…

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रफी के छत्तीसगढ़ी गीत

रफी साहब….. हिंदी सनिमा जगत के बहुत बड़े नाम आय। जिंकर गुरतुर अउ मीठ अवाज के जादू के मोहनी म आज घलो जम्मो संगीत परेमी मनखे झूमरत रथे। उंकर अवाज के चरचा के बिना हिंदी सनिमा के गीत-संगीत के गोठ ह अधूरहा लागथे। जम्मो छत्तीसगढ़िया मन भागमानी हवय के अतिक बड़े कलाकार ह हमर भाखा के गीत ल घलो अपन अवाज दे हवय। रफी साहब के अवाज म छत्तीसगढ़ी गीत सुनना अपन आप म बड गौरव के बात आय। बछर 1965 के आसपास म जब छत्तीसगढ़ी सनिमा जगत के दादा…

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हिन्दी साहित्य के महान साहित्यकार उपन्यास सम्राट, कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद

हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दीर भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीं भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार हावय। हिन्दीं भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा मन आथे। आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दी3 साहित्य के इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल,…

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उत्‍ती के बेरा

कविता, झन ले ये गाँव के नाव, ठलहा बर गोठ, हद करथे बिलई, बिजली, चटकारा, बस्तरिहा, अंतस के पीरा, संस्कृति, तोला छत्तीसगढी, आथे!, फेसन, कतका सुग्घर बिदा, गणेश मढाओ योजना, बेटा के बलवा, बाई के मया, रिंगी-चिंगी, अंतस के भरभरी, बिदेशी चोचला, ममादाई ह रोवय, छत्तीसगढिया हिन्दी, सवनाही मेचका, चिखला, महूँ खडे हँव, जस चिल-चिल, कुकुरवाधिकार, पइसा, तोर मन, होही भरती, छ.ग. के छाव, उत्ती के बेरा, हरेली, दूज के चंदा, अकादशी, निसैनी, प्रहलाद, राजनीति, नवा बछर, गुन के देख, चाकर, बिचार, श्रृंगार अउ पीरा, जीव के छुटौनी, पसार दिये तैं मनोज कुमार श्रीवास्त, शंकरनगर नवागढ, जिला – बेमेतरा, छ.ग., मो. 8878922092, 9406249242, 7000193831 हरेली सखी मितान अउ सहेली, मिल-जुल के बरपेली, खाबों बरा-चिला अउ, फोड्बो नरियर भेली, आज कखरो नई सुनन संगी, मनाबो तिहार हरेली

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बिन बरसे झन जाबे बादर

हमर देस के सान तिरंगा, आगे संगी बरखा रानी, बिन बरसे झन जाबे बादर, जेठ महीना म, गीत खुसी के गाबे पंछी, मोर पतंग, झरना गाए गीत, जम्मो संग करौ मितानी, खोरवा बेंदरा, रहिगे ओकर कहानी, बुढवा हाथी, चलो बनाबो, एक चिरई, बडे़ बिहिनिया, कुकरा बोलिस, उजियारी के गीत, सुरुज नवा, इन्द्रधनुस, नवा सुरुज हर आगे, अनुसासन में रहना.. हमर देस के सान तिरंगा फहर-फहर फहरावन हम । एकर मान-सनमान करे बर महिमा मिल-जुल गावन हम। देस के खातिर वीर शहीद मन अपन कटाए हें तन, मन, धन ल अरपित…

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लघु कथा संग्रह – धुर्रा

धुर्रा (नान्हे कहिनी) जितेंद्र सुकुमार ‘ साहिर’ वैभव प्रकाशन रायपुर ( छ.ग. ) छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित आवरण सज्जा : अशोक सिंह प्रजापति प्रथम संस्करण : 2016 मूल्य : 50.00 रुपये कॉपी राइट : लेखकाधीन भूमिका कोनो भी घटना ले उपजे संवेदना, पीरा ल हिरदय के गहराई ले समझे बर अउ थोरकिन बेरा म अपन गोठ-बात ल केहे बर अभु लघुकथा या नान्हें कहिनी ह एक मात्र ससक्त विधा हे। नान्हें कहिनी हा अभु के बेरा म समाजिक बदलाव के घलो बढिया माध्यम हे। समाज…

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हरेली तिहार आवत हे

हरियर-हरियर खेत खार, सुग्घर अब लहरावत हे। किसान के मन मा खुशी छागे, अब हरेली तिहार आवत हे।। खेत खार हा झुमत गावत, सुग्घर पुरवाही चलावत हे। छलकत हावे तरीया डबरी, नदिया नरवा कलकलावत हे।। रंग बिरंग के फूल फुलवारी, अब सुग्घर डुहूँरु सजावत हे। कोइली पँड़की सुवा परेवना, प्रेम संदेशा सुनावत हे।। नर-नारी अउ जम्मो किसान, किसानी के औजार ला धोवत हे। किसानी के काम पुरा होगे, अब चिला चघाय बर जोहत हे।। लइका मन भारी उत्साह, बाँस के गेड़ी बनवावत हे। चउँर के चिला सुग्घर खाबो, अब हरेली…

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घानी मुनी घोर दे : रविशंकर शुक्ल

घानी मुनी घोर दे पानी .. दमोर हे हमर भारत देसल भइया, दही दूध मां बोर दे गली गांव घाटी घाटी महर महर महके माटी चल रे संगी खेत डंहर, नागर बइला जोर दे दुगुना तिगुना उपजय धान बाढ़े खेत अउर खलिहान देस मां फइले भूख मरी ला, संगी तंय झकझोर दे देस मां एको झन संगी भूखन मरे नहीं पावे आने देस मां कोनो झन मांगे खतिर झन जावे बाढे देस के करजा ला, जल्दी जल्दी टोर दे। – रविशंकर शुक्ल चंदैनी गोदा के लोकप्रिय और प्रसिद्ध गीत

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तयं काबर रिसाये रे बादर

तयं काबर रिसाये रे बादर तरसत हे हरियाली सूखत हे धरती, अब नई दिखे कमरा,खुमरी, बरसाती I नदियाँ, नरवा, तरिया सुक्खा सुक्खा, खेत परे दनगरा मेंड़ हे जुच्छा I गाँव के गली परगे सुन्ना सुन्ना, नई दिखे अब मेचका जुन्ना जुन्नाI करिया बादर आत हे जात हे, मोर ह अब नाचे बर थररात हेI बिजली भर चमकत हे गड़गड़ गड़गड़, बादर भागत हे सौ कोस हड़बड़ हड़बड़ I सुरुज ह देखौ आगी बरसात हे, अबके सावन ल जेठ बनात हे I कुआँ अऊ बऊली लाहकत लाहकत, चुल्लू भर पानी म…

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सावन के झूला

सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे। सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।। हंसी ठिठोली अब्बड़ करत , झूला मा बइठे हे। पेड़ मा बांधे हाबे जी , डोरी ला कसके अइठे हे।। दू सखी हा बइठे हे जी , दू झन हा झूलावत हे। पारी पारी सबो संगी, एक दूसर ला बुलावत हे।। हांस हांस के सबोझन हा , अपन अपन बात बतावत हे। सावन के आगे महीना जी ,सबोझन झूला झूलावत हे।। प्रिया देवांगन “प्रियू” पंडरिया (कवर्धा) छत्तीसगढ़

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