संत परंपरा के मनखे मन जन-चेतना के बिकास म अपन योगदान दे के समाज ल एक नवा दिसा देथे। समाज में अइसे कतको बिसगति समा जाथे, जोन ह समाज ल आगू नइ बढ़न दे। धीरे-धीरे समाज म एक जड़ता आ जाथे। आम मनखे मन ये जड़ता ल अपन जीवन म अपना लेथे अउ रूढ़ता के कारण एला संस्कृति के हिस्सा मान बइठथे, परुं जोन मनखे मन भीतरी म आत्म-चेतना होथे, वो हा ये जड़ता ल टोरे के अपन बिचार समाज ल देथे। समाज ह कभू नवा बिचार ल सोझे नइ…
Read MoreYear: 2020
सरगुजिहा कहनी – हिस्सा-बांटा
रामपाल जइसे तइसे हाईस्कूल पास करके जंगल ऑफिस में बाबू बन गइस । तेजपाल आठवीं कछा ले आगू नइ बढ़े सकिस । हार के ओकेला नागर कर मुठिया धरेक बर परिस । तेजपाल अपन खेती-पाती कर काम में बाझे रहे त दीन दुनियां सब ला भुलाए रहे। रामपाल अपन ऑफिस कर काम ले फुरसत पावे ते पूछ लेहे करे – “ कइसे बाबू नागर-बरधा ठीक चलथे ना ?’ तेजपाल कहदे – हॉ ददा बने बरधा हवंय। मोर खेत कस कोनों .. कर खेत नई जोताइस होही। रामपाल ओकर पीठ में…
Read Moreनान्हे कहिनी- चिन्हारी
चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन म नौकरी करत मोला डेढ़ बछर होगय रहे। शुरू शुरू म मोला लागे कि ….मैं ये कहां आके फँस गए ! फेर धीरे-धीरे करत मैं उहां खुसर गए रहय। फेर अतेक दिन ल मोर देश -राज कोती के एको झन मनखे नइ भेटाय रहिन। डेढ़ साल के लम्मा समे के बाद म आज ये दे मोर कोती के एक झन मनखे माखनलाल हर भेंटाय रहीस।वोहर मोर तरी म इहां लगे रहीस। फेर वोकर साथे -साथ तीन चार अउ आदमी मन घलव रहीन मोर तरी म। वोमन…
Read Moreढेलवा डोंगरी
हमर गांव डाहर झलप के तीर म ढेलवा डोंगरी हे। एकर ले संबंधित भीम अउ हिरमिसी कैना (हिडम्बनी) के एक कथा हे। ये डोंगरी म ओ कैना के महल रिहीस अउ झूले बर बड़े जनिक ढेलवा रिहीस। पंडो मन के बनवास के समय घूमत घामत एक दिन भीम ह ओ डोंगरी म आगे। ढेलवा झूलत हिरमिसी कैना ओकर ऊपर मोहागे। भीम ल किहीस बड़ सुग्घर अउ बल्कहार दीखत हस। लेतो मोला बने ढेलवा झुला। भीम ह वो कैना ल ढेलवा झुलईस। झूलावत झुलावत उत्ती कोती ढेलवा ह जाय तब जोंक…
Read Moreछत्तीसगढ़ की महिला रचनाकारों की साहित्य का अनुशीलन
शोधकर्ता: साहू, लीना गाइड : सिंह, तीर्थेश्वर कीवर्ड: हिंदी साहित्य, महिला लेखिका पूर्ण तिथि: 2009 विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ की महिला रचनाकारों की साहित्य का अनुशीलन अनुकम अध्याय-1 छत्तीसगढ़ की प्रतिनिधि महिला रचनाकार एवं साहित्यिक परिदृश्य महिला रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय छत्तीसगढ़ के रचनाकारों में महिलाओं की भूमिका महिला रचनाकारों का विधागत वर्गीकरण अध्याय-2 महिला रचनाकार्रों का रचनात्मक धरातल कविता व गीत का संवेदनात्मक धरातल कहानी का यथार्थ अध्याय-3 महिला रचनाकार्से का भावात्मक पक्ष वात्सल्य, प्रेम व समर्पण परिवार व समाज स्त्री जीवन व त्रासदी अध्याय-4 महिला रचनाकार्ये…
Read Moreछत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य को लतीफ घोंघी के अवदान का मूल्यांकन
Evaluation of the contribution of Latif Ghonghi to Chhattisgarhi satire literature शोधकर्ता: देवांगन, रीना गाइड : शर्मा, शीला कीवर्ड: कला और मानविकी, साहित्य, साहित्य विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय पूर्ण तिथि: 2016 छत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य को लतीफ घोंघी के अवदान का मूल्यांकन रूपरेखा अध्याय- प्रथम व्यंग्य का स्वरूप एवं उसकी व्याख्या 1.1 व्यंग्य का अर्थ 1.2 व्यंग्य की परिभाषा 1.3 व्यंग्य के तत्व 1.4 व्यंग्य के प्रकार अध्याय- द्वितीय हिन्दी व्यंग्य का उद्भव एवं विकास – 2.1 गद्य में व्यंग्य विधा का उद्गम 2.2 प्राचीन साहित्य में व्यंग्य 2.3 आधुनिक…
Read Moreछत्तीसगढ़ गौरव के रचियता पंडित शुकलाल पांडेय
प्रो. अश्विनी केशरवानी भव्य ललाट, त्रिपुंड चंदन, सघन काली मूंछें और गांधी टोपी लगाये सांवले, ठिगने व्यक्तित्व के धनी पंडित शुकलाल पांडेय छत्तीसगढ़ के द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में से एक थे.. और पंडित प्रहलाद दुबे, पंडित अनंतराम पांडेय, पंडित मेदिनीप्रसाद पांडेय, पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविंदसाव, पंडित पुरूषोत्तम प्रसाद पांडेय, वेदनाथ शर्मा, बटुकसिंह चौहान, पंडित लोचनप्रसाद पांडेय, काव्योपाध्याय हीरालाल, पंडित सुंदरलाल शर्मा, राजा चक्रधरसिंह, डॉ. बल्देवप्रसाद मिश्र और पंडित मुकुटधर पांडेय की श्रृंखला में एक पूर्ण साहित्यिक व्यक्ति थे। वे केवल एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक…
Read Moreसरगुजिहा गीत : बरखा कर पानी
लबरा कर गोएठ लेखे, ए बच्छर बरखा कर पानी। एकस हें कइसें होए पारही, हमरे मन कर किसानी। एकघरी कर बरखा हर बुइध ला भुलाइस अगास कर बदरा हर, बुंदी बर तरसाइस। परिया परल हवे, जोंग ला नसाइस लागत हवे बतर ला बिदकाइस। ए बच्छर कर बरखा हें दिसथे, नई होए पारही किसानी। धुरिया बतराहा अउर चोपी चिखला नई, बीड़ा ला कोन उठने खोंची। बीयासी कर बेरा बतर हर नसाइस। काकर नांव धरी अपन किस्मत ला कोसी। हमर धरी कर का कहाऊ असों फेर नई होइस नगद पानी। सोंचे रहेंन…
Read Moreसरगुजिहा गीत- मोर संगे गा ले संगी
मोर संगे गा ले संगी मोर संगे गा। राग तैं मिला ले संगी राग तैं मिला।। आमा कर बीरो लीम कर मुखारी लकरा कर चटनी चीला सोहारी मोर संगे खा ले संगी मोर संग खा।। जटंगी कर फूल मुनगा कर पाना उरदा कर दार। डॉड़का सयाना मोर संग जगा ले संगी मोर संग जगा रेड़ अउ कन्हर मोरन महान हसेदव गागर गलफूला जान मोर संगे नहा ले संगी मोर संगे नहा।। लहसून जमीरा सामरी कर पाट सरई तेंदू महुआ अउर बांस आमा कटहर हर्रा परास मोर संग पा ले संगी…
Read Moreसरगुजिहा व्यंग्य कबिता: लचारी
जीना दूभर होइस, अटकिस खाली मांस है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। झाडू-पोंछा बेटा करथे, घर कर भरथे पानी। पढ़ल-लिखल मन अइसन होथें, हम भुच्चड़ का जानी। दाई-दाउ मन पखना लागें, देवता ओकर सास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। जबले घरे बहुरिया आइस, टी.बी. ला नइ छोड़े। ओकर आगू नाचत रथे, बेटा एगो गोड़े। रोज तिहार हवे उनकर बर, हम्मर बरे उपास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। होत बिआह बदल गे बेटा, देथे हमला गारी। अप्पन घर हर भुतहा,…
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