गोविन्द राव विट्ठल के छत्तीसगढ़ी नाग-लीला के अंश

सब संग्रवारी मन सोचे लगिन कि, पूक, कोन मेर खेलबो, विचार जमगे। जमुना के चातर कछार में, जाके खेल मचाई। दुरिहा के दुरिहा है अउ, लकठा के लकठा भाई।। केरा ला शक्कर, पागे अस, सुनिन बात संगवारी। कृष्ण चन्द्र ला आगू करके, चलिन बजावत तारी।। धुंघरू वाला झुलुप खांघ ले, मुकुट, मोर के पाँखी। केसर चन्दन माथर में खौरे, नवा कवंल अस आंखी।। करन के कुंडल छू छू जावै, गोल गाल ला पाके। चन्दा किरना साही मुसकी, भरें ओंट में आके।। हाथ में बंसुरी पांव में पैजन, गला भरे माला…

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पारंपरिक ददरिया

कया के पेंड माँ कया नइए । निरदई तोर शरीर माँ दया नइये॥ हंडिया के मारे तेलई फूट जाय। चारी चुगली के मारे पिरित छुट जाय॥ तवा के रोटी तवा मं जरि जाय। दुजहा ला झन देबे कुंआरी रहि जाय॥ पीपर के पाना हलर ह॒इया। दुई डउकी के डउका कलर कइया॥ तोर मन चलती मोर मन उदास। जल देवता मां खड़े होके मरथंव पियास॥ फूटहा रे मंदीर कलस तो नइये। दू दिन के अवइया दरस तो नइये॥ मोर जरत करेजा कसकत तन मां। चुर चुर के रहंव राजा अपन मन…

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पारंपरिक राउत-नाच दोहा

गौरी के गनपति भये, अंजनी के हनुमान रे। कालिका के भैरव भये, कौसिल्या के लछमन राम रे॥ गाय चरावे गहिरा भैया, भैंस चराय ठेठवार रे। चारों कोती अबड़ बोहावे, दही दूध के धार रे॥ गउ माता के महिमा भैया, नी कर सकी बखान रे। नाच कूद के जेला चराइस, कृष्णचंद्र भगवान रे॥ नारी निंदा झन कर गा, नारी नर के खान रे। नारी नर उपजाव॑ भैया, धुरू – पहलाद समान रे॥ दू दिन के दुनिया मां संगी, झन कर बहुतें आस रे। नदी तीर के रुखड़ा भैया, जब तब होय…

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पारंपरिक बांस-गीत

छेरी ल बेचों मेढ़ ल बेचौं, बेचों भंसी बगार। बनी भूती मा हम जी जाबो सोबोन गोड़ लमाय॥ छरी न बेचों, मेढ़ी न बेचौं न बेचौं भैंसी बगार। मोले मही मां हम जी जाबो, अउ बेचौं तोही ल घलाय॥ कोन तोरे करही राम रसोई, कोन करे जेवनार। कोन तोरे करही पलंग बिछौना, कोन जोहे तोरे बाट॥ दाई करिहै रामे रसोई, बहिनी करे जेवनार। सुलखी चेरया पलंग बिछाही, अउ मुरली जोहे मोर बाट॥ सास डोकरिया मरहर जाही नंनद पढठोहूं ससुरार। सुलखी चेरिया हाटन बिकाही, अउ मुरली नदी माँ बोहाय॥ दाई ल…

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