जीना दूभर होइस, अटकिस खाली मांस है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। झाडू-पोंछा बेटा करथे, घर कर भरथे पानी। पढ़ल-लिखल मन अइसन होथें, हम भुच्चड़ का जानी। दाई-दाउ मन पखना लागें, देवता ओकर सास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। जबले घरे बहुरिया आइस, टी.बी. ला नइ छोड़े। ओकर आगू नाचत रथे, बेटा एगो गोड़े। रोज तिहार हवे उनकर बर, हम्मर बरे उपास है। बेटा अठवीं फेल, बहुरिया सुनथों बी.ए. पास है।। होत बिआह बदल गे बेटा, देथे हमला गारी। अप्पन घर हर भुतहा,…
Read MoreMonth: May 2020
करिया अंगरेज
बस ले उतरिस । अपन सिकल के पसीना ला पोंछिस । ऐती ओती जम्मो कोती ला देखे लागिस। जुड़ सांस लेके कुछु गुणत गुणत आगू कोती बाढ़गे अऊ होटल मा खुसरगे । ’’पानी देतो भइयां ! अब्बड़ पियास लागत हावय’’ हलु हलु किहिस । ओखर गोठ ला सुनके होटल वाला ऊचपुर करिया जवनहा हा अगिया बेताल होगे । ओला गोड़ ले मुड़ी तक देखिस । दांत ला किटकिटावत किहिस “ इंहा फोकट मा पानी नई मिले डोकरा….। कुछु खाय ला पड़थे बरा , भजिया,समोसा ।‘‘ होटल मा बइठे जम्मो मइनखे…
Read Moreसरगुजिहा बोली कर गोठ
बदलाव परकिरती कर नियम हवे। संसार कर कोनों चीज जस कर तस नई रहथे। सरलग बदली होअत रहथे। एहर आपन संघे कहों सुख त कहों दुख लानथे। जेकर में सहज रूप ले बदली होथे . ओकर परिनाम सुख देवईया अउ जिहाँ जबरजस्ती करथें उहाँ दुख देवईया होथे। जम जगहा कर संघे सरगुजा में हों जबरजस्स बदलाव देखे में आथे। आज ले तीस-चालीस बच्छर पहिले कर रहन सहन, संडक-डहर, इस्कुल-कालेज, बन-पहार, नदी-नरवा, पुल-पुलिया, तर-तिहार, खेती-बारी, बोली-बानी में ढेरे फरक आए गईस हवे। ओ घरी थोर आमदनी, कमती साधन में हों खुस…
Read Moreलईका मन कर सरगुजिहा समूह गीत: पेटू बघवा
ये गीत कहिनी ला लइका मन नाटक बनाए घलो खेल सकत आहाएं एक झन बघवा बनही और बाकी लइका मन जनावर। पाछू बाट जंगल कर परदा लगाए के, साज बाज संघे खेल सकथें। पेटू बघवा पेटू बघवा बन में आइस पेटू बघवा (गुर्र गुर्र गुर्र) जीभ लमाए-लप्पर लप्पर लार चुहाए-टप्पर टप्पर जंगल भर उदबास होय गईस जे हर बढ़िस खलास होय गईस घटिया सरना परबत झरना पतरा पतरी घुटरा घुटरी ओंगरी टोंगरी टोंगरी ओंगरी रोएट जनावर छोएट जनावर चरई चुनगुन चुनमुन चुनमुन खाते जाये अठर ललाए जेहर आए पेट में…
Read Moreदेहे ल घलव सीखव – नीति कथा
एक भिखारी बिहनिया भीख माँगे ल निकलिस। निकलत बेरा ओ ह अपन झोली म एक मुठा चना डार लीस। कथें के टोटका या अंधविश्वास के सेती भिक्षा मांगे बर निकलत समें भिखारी मन अपन झोली खाली नइ रखयं। थैली देखके दूसर मन ल लगथे के एला पहिली ले कोनो ह दान देहे हे। पून्नी के दिन रहिस, भिखारी सोचत रहिस के आज भगवान के किरपा होही त मोर ये झोली संझकुरहे भर जाही। अचानक आगू ले देश के राजा के सवारी आत दिखिस। भिखारी खुश हो गइस। ओ सोचिस के,…
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