करिया अंगरेज

बस ले उतरिस । अपन सिकल के पसीना ला पोंछिस । ऐती ओती जम्मो कोती ला देखे लागिस। जुड़ सांस लेके कुछु गुणत गुणत आगू कोती बाढ़गे अऊ होटल मा खुसरगे । ’’पानी देतो भइयां ! अब्बड़ पियास लागत हावय’’ हलु हलु किहिस । ओखर गोठ ला सुनके होटल वाला ऊचपुर करिया जवनहा हा अगिया बेताल होगे । ओला गोड़ ले मुड़ी तक देखिस । दांत ला किटकिटावत किहिस “ इंहा फोकट मा पानी नई मिले डोकरा….। कुछु खाय ला पड़थे बरा , भजिया,समोसा ।‘‘ होटल मा बइठे जम्मो मइनखे…

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सरगुजिहा बोली कर गोठ

बदलाव परकिरती कर नियम हवे। संसार कर कोनों चीज जस कर तस नई रहथे। सरलग बदली होअत रहथे। एहर आपन संघे कहों सुख त कहों दुख लानथे। जेकर में सहज रूप ले बदली होथे . ओकर परिनाम सुख देवईया अउ जिहाँ जबरजस्ती करथें उहाँ दुख देवईया होथे। जम जगहा कर संघे सरगुजा में हों जबरजस्स बदलाव देखे में आथे। आज ले तीस-चालीस बच्छर पहिले कर रहन सहन, संडक-डहर, इस्कुल-कालेज, बन-पहार, नदी-नरवा, पुल-पुलिया, तर-तिहार, खेती-बारी, बोली-बानी में ढेरे फरक आए गईस हवे। ओ घरी थोर आमदनी, कमती साधन में हों खुस…

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लईका मन कर सरगुजिहा समूह गीत: पेटू बघवा

ये गीत कहिनी ला लइका मन नाटक बनाए घलो खेल सकत आहाएं एक झन बघवा बनही और बाकी लइका मन जनावर। पाछू बाट जंगल कर परदा लगाए के, साज बाज संघे खेल सकथें। पेटू बघवा पेटू बघवा बन में आइस पेटू बघवा (गुर्र गुर्र गुर्र) जीभ लमाए-लप्पर लप्पर लार चुहाए-टप्पर टप्पर जंगल भर उदबास होय गईस जे हर बढ़िस खलास होय गईस घटिया सरना परबत झरना पतरा पतरी घुटरा घुटरी ओंगरी टोंगरी टोंगरी ओंगरी रोएट जनावर छोएट जनावर चरई चुनगुन चुनमुन चुनमुन खाते जाये अठर ललाए जेहर आए पेट में…

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देहे ल घलव सीखव – नीति कथा

एक भिखारी बिहनिया भीख माँगे ल निकलिस। निकलत बेरा ओ ह अपन झोली म एक मुठा चना डार लीस। कथें के टोटका या अंधविश्वास के सेती भिक्षा मांगे बर निकलत समें भिखारी मन अपन झोली खाली नइ रखयं। थैली देखके दूसर मन ल लगथे के एला पहिली ले कोनो ह दान देहे हे। पून्‍नी के दिन रहिस, भिखारी सोचत रहिस के आज भगवान के किरपा होही त मोर ये झोली संझकुरहे भर जाही। अचानक आगू ले देश के राजा के सवारी आत दिखिस। भिखारी खुश हो गइस। ओ सोचिस के,…

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लॉकडाउन म का करत हें असम के छत्‍तीसगढ़ वंशी

लाकडाउन के बीच कई दिन के बाद असम म रहइया कुछ छत्तीसगढ़िया मनखे मन ले बातचीत होइस। पहली बात होइस बामनवाड़ी निवासी ललित साहू ले जेकर काली जन्मदिन रहिस। ललित के पूर्वज धमतरी तीर के जंवरतला नाम के गांव ले चाय बागान म काम करे बर असम गे रहिन जिहां अभी उंखर पांचवा पीढ़ी निवास करत हे। अभी हाल म ललित मन तीनो भाई अऊ ओखर पिता, सबो चिकित्सा के क्षेत्र म काम करत हें अऊ कोविड-19 के सेती सबो के अपन-अपन व्यस्तता हे। दुसर बात मोर होजाई निवासी डॉ.…

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दैनिक देशबंधु के संदर्भ में छत्तीसगढ़ी की साहित्यिक पत्रकारिता का विश्‍लेष्‍णात्‍मक अध्‍ययन

An analytical study of Chhattisgarhi literary journalism in the context of Dainik Deshbandhu शोधकर्ता: तृप्ता कश्यप गाइड : श्रद्धा चंद्राकर, कीवर्ड: कला और मानविकी, छत्तीसगढ़ी की साहित्यिक पत्रकारिता, दैनिक देशबंधु पूर्ण तिथि: 2017 विश्वविद्यालय: पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय दैनिक देशबंधु के संदर्भ में छत्तीसगढ़ी की साहित्यिक पत्रकारिता का विश्‍लेष्‍णात्‍मक अध्‍ययन अध्याय प्रथम छत्तीसगढ़ी की साहित्यिक पत्रकारिता का विकास :- लघु पत्रिकाओं का योगदान <- येला क्लिक करके पढ़व 1.1 आरंभिक दौर 1.2 स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व का दौर 1.3 स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्‌ का दौर 1.4 नई शताब्दी के आरंभ…

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कुंवर दलपति सिंह के राम-यश मनरंजन के अंश

सीता माता तुम्हार करत सुरता रे, झर झर बहै आंसू भीजथे कुरता रे पथरा तक पिघले टघलैं माटी रे। सुनवइया के हाय फटत छाती रे, कोनों देतेव आगी में जरि जातेंव रें, जिनगी में सुख नइये में मरि जातेवें रे। कहिके सीता माता अगिन मांगिन रे, कुकरी के बरोबर कलपे तो लागिन रे। ठौका तउने बखत टपकाय दियेंव में, चिन्हा मु दरी तुम्हरेला गिराय दियेंव में। झपर सीता माता उठाके तउने छिन, अकबक होके येती वोती देखिन रे। मुंदरी ला चिन्हें अपन घर के, लेइस छाती छुवाय आंखी में धर…

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गोविन्द राव विट्ठल के छत्तीसगढ़ी नाग-लीला के अंश

सब संग्रवारी मन सोचे लगिन कि, पूक, कोन मेर खेलबो, विचार जमगे। जमुना के चातर कछार में, जाके खेल मचाई। दुरिहा के दुरिहा है अउ, लकठा के लकठा भाई।। केरा ला शक्कर, पागे अस, सुनिन बात संगवारी। कृष्ण चन्द्र ला आगू करके, चलिन बजावत तारी।। धुंघरू वाला झुलुप खांघ ले, मुकुट, मोर के पाँखी। केसर चन्दन माथर में खौरे, नवा कवंल अस आंखी।। करन के कुंडल छू छू जावै, गोल गाल ला पाके। चन्दा किरना साही मुसकी, भरें ओंट में आके।। हाथ में बंसुरी पांव में पैजन, गला भरे माला…

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पारंपरिक ददरिया

कया के पेंड माँ कया नइए । निरदई तोर शरीर माँ दया नइये॥ हंडिया के मारे तेलई फूट जाय। चारी चुगली के मारे पिरित छुट जाय॥ तवा के रोटी तवा मं जरि जाय। दुजहा ला झन देबे कुंआरी रहि जाय॥ पीपर के पाना हलर ह॒इया। दुई डउकी के डउका कलर कइया॥ तोर मन चलती मोर मन उदास। जल देवता मां खड़े होके मरथंव पियास॥ फूटहा रे मंदीर कलस तो नइये। दू दिन के अवइया दरस तो नइये॥ मोर जरत करेजा कसकत तन मां। चुर चुर के रहंव राजा अपन मन…

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पारंपरिक राउत-नाच दोहा

गौरी के गनपति भये, अंजनी के हनुमान रे। कालिका के भैरव भये, कौसिल्या के लछमन राम रे॥ गाय चरावे गहिरा भैया, भैंस चराय ठेठवार रे। चारों कोती अबड़ बोहावे, दही दूध के धार रे॥ गउ माता के महिमा भैया, नी कर सकी बखान रे। नाच कूद के जेला चराइस, कृष्णचंद्र भगवान रे॥ नारी निंदा झन कर गा, नारी नर के खान रे। नारी नर उपजाव॑ भैया, धुरू – पहलाद समान रे॥ दू दिन के दुनिया मां संगी, झन कर बहुतें आस रे। नदी तीर के रुखड़ा भैया, जब तब होय…

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