अइसे हाबय छत्तीसगढ़ के गुद गुद बासी जइसे नवा बहुरिया के मुच-मुच हांसी मया पोहाये येकर पोर-पोर म अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी कासा जइसे दग-दग उज्जर चोला मया-पिरित के बने ये दासी छल-फरेब थोकरो जानय नहीं हमर छत्तीसगढ़ के ये बासी कोंवर गजबेच जइसे घिवहा सोहारी भोभला तक के बने ये संगवारी रोटी सहीं तक के ये महतारी अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी सब कलेवा बनेगे सोज्ना येला बना दीन रासी कभू पारटी म चलिस नहीं हमर छत्तीसगढ़ के ये वासी येकर बर गहेरिच बन…
Read MoreDay: July 20, 2021
पहुना: ग.सी. पल्लीवार
पहुना आगे, पहुना आगे अब्बड़ लरा जरा हो देखत होहू उनखर मन के टुकना मोटरी मोटरा हो….. कनवा कका, खोरवी काकी चिपरा आँखी के उनखन नाती रामू के ददा, लीला के दाई बहिनी के भांटो मेछर्रा हो- ननद मन ला हांसेला कहिदे चटर चटर बोले ला कहिदे तिलरी खिनवा करधन सूता भइगे उत्ताधुर्रा हो- रांधे के बेरा म मूड पिराये आगी के आधघू म देंह जुड़ावे देखत सुनत महूं बुढ़ागेंव इनखन मन के नखरा हो- भइया खाही जिमी कांदा भौजी खोजे खेकसी खेकसा कोनो पूछहिं ठेठरी खुरमी बाचैं नहीं बरा…
Read Moreबसंत पंचमी: नित्यानंद पाण्डेय
आ गय बसंत पंचमी, तोर मन बड़ाई कोन करे द्वापरजुग के कुरक्षेत्र होईस एक महाभारत कौरव मन के नाश कर देईस अर्जुन बान मा भारत। बड़का बड़का का वीर ढलंग गे बीच बचाव ल कौन करें।। 11। तहूं सुने होवे भारत म रेल मा कतका मरिन मनखे ओकर दुख ल नई भुलायेन भुईया धसकगे मरगे मनखे। बरफ गिरे ले आकड़िन कतका, तेकर गिनती कौन करै।। 21। अर्जुन नई हे अब द्वापर के शब्द ला सुन के मारै बान कलजुग के अर्जुन लंग नई हे ओ गांडीव तीर कमान। बान चलावत…
Read Moreधूंका-ढुलबांदर: रवीन्द्र कंचन
बादर नवां छवाये मांदर ! धातिन् तिनंग तीन दहांदा पानी बरसे गादा-गादा हर-हर चले खेत म नांगर! मोती-जइसे बरसे पानी भीजे कुरिया भीजे छानी रूख तरी छैहावय साम्हर ! आल्हा-भोजली जंगल गावे बेंगचा-झिंगरा तान मिलावे नाचत हे धूंका-ढुलबांदर होगे अब अंधियार के पारी छिंटकत हावे कोला-बारी रात के हॉथ म करिया-काजंर। रवीन्द्र कंचन छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्यकार Chhattisgarhi language writers and litterateurs Ravindra Kanchan
Read Moreपरबत के झांपी: रवीन्द्र कंचन
परबत के झांपी खमखम ले माढ़े हे परबत के झांपी ! सात रंग के बोड़ा बहिंगा बने हे बादर के खाँद म तन तन तने हे नदिया के देहे ला कइसे हम नापी? सुरूज हा का जाने काबर रिसागे चंदा हा कोन कोती जाके लुकागे तरिया-तेलाई म काला हम ढांपी? रवीन्द्र कंचन
Read Moreरंग: तीरथराम गढ़ेवाल के कविता
तोला कोन रंग भाथे वो नोनी के दाई वोही रंग लाहूं मंय बिसा के। मोला जउने रंग भाथे हो बाबू के ददा। वोही रंग लाहा तू बिसा के ॥ लाली लाहूं लाल लगाहूं, नीला लाहूं रंग रंगाहूं, हरा लाहूं अंग सजाहूं, पींवरा लाहूं रंग मिलाहूं। कारी रंग लाहूं का बिसा के ! लाली लागय हो अंगरा अस नीला लागय हो बदरा अस, हरा लागय हो कचरा अस कारी लागय हो कजरा अस। पींवरा रंग लाहा झन बिसा के। लाली हे तोर मांथ के सेंदूर कारी हे तोर कारी चुंदी, हरा…
Read Moreपहिचान: भूपेंद्र टिकरिहा के कविता
छत्तीसगढ़ी मा लिखन, पढ़न, गोठियान, तभे जागही छत्तिसगढ़िया सान। अपढ़, गंवार जेला कहिथन अपन भाखा मा गोठियाथें, पढ़े लिखे नोनी बाबू मन बोलब मा सरमाथें, बेरा-बेरा म बखान करे बर थोरको झन सकुचान। हिन्दी बोलन, झाड़न कस के अंगरेजी, जउन जइसे ओकर बर ओइसने जी, अपन भाखा भाखे ले मया पिरित लागथे, जस अमरित समान सबले पहिली हम हिन्दुस्थानी तेकर पाछू आनी बानी, रिंग बिग सिगबिग फूल खिले हमर देस के इही कहानी, फुलवारी के हम कइसन फुलवा बोली-भाखा दय पहिचान। भूपेंद्र टिकरिहा छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक और साहित्यकार Chhattisgarhi…
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