ए गिरे परे हपटे मन अउ डरे थके मनखे मन, मोर संग चलव रे अमरइय्या कस जूड छांव मंय मोर संग बइठ जुडा लव पानी पी लव मंय सागर अंव दुख पीरा बिसरा लव नवा जोत लव नवा गांव बर रददा नवा गढ़व रे। मंय लहरी अंव मोर लहर मां फरव फुलव हरियावव महानदी मंय अरपा पैरी तन मन धो फरिया लव कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा मया के पाठ पढ़व रे। (पापी इंहे तरव रे) बिपत संग जूझे बर भाई मंय बाना बांधे हंव सरग ल पिरथी मां…
Read MoreMonth: July 2021
में नो हों महराज: नारायण लाल परमार
एक ले एक हे हुसियार ,में नो हों महराज। करे सब करिया कारोबार, मे नो हो महराज॥ कनवा ला कनवा कहइया होहीं कोन्हो दूसर, गउ के किरिया हे हवलदार, मे नो हों महराज ॥ सब के बांटा ला अपन मान के जे खावत हें, कोन्हों कुकुर होही सरकार, मे नो हों महराज॥ देस ला कतकोझन, मुसुवा समझ के भूंजत हें, होहीं अइसन केउ हजार, मे नो हो महराज॥ गारी-गुप्ता, डंडा-बंधक, सबके सरता हे, चुहकत हे कोन अब कुसियार, मे नो हों महराज॥ गाय ला दाई अउ छेरी ला कहो सब…
Read Moreहरि ठाकुर के ‘सुराज के पहिली संग्राम’ के अंस
सब ले जुन्ना देश हमर धरम अउर संस्कृति के घर राम कृष्ण अवतरिन हइहां सरग बनाइन हमर भुयाँ। सुग्घर सबले छत्तिसगढ़ कौशिल्या माता के घर ओखर सुमरन कर परनान जनम दिहे तैं राजा राम। कलजुग मां जब पाप बढ़िस बेरा उतरिस, रात चढ़िस राजा-परजा दुनो निबल परिन गुलामी के दल दल। बनिया बन आइन अंगरेज मेटिन धरम, नेम, परहेज देस हमर सुख के सागर बनिस पाप-दुख के गागर। करिन फिरंगी छल-बल-कल फूट डार के करिन निबल बढ़िन फिरंगी पांव पसार हमरे खा के देइन डकार। करिन देस के सत्यानास भारत…
Read Moreहरि ठाकुर के गीत: सुन-सुन रसिया
सुन-सुन रसिया ! आंखी के काजर लगय हंसिया चंदा ल रोकेंव, सुरुज रोकेंव रोकंव कइसे उमर ला चुरुवा भर-भर, पियैव ससन भर गुरतुर तोर नजरला मोर मन बसिया! तोर आँखी के काजर लगय हंसिया। सुन-सुन रसिया! गिनत-गिनत दिन, महिना, बच्छर मोर खियागे अंगरी रद्द देखते-देखत बैरी आँखी भइगे झेंझरी बैरी अपजसिया! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया। सुन सुन रसिया! तोर बिन जिनगी ह मोला लागय जइसे जल बिना तरिया सांसा के आरी ह चीरे करेजा सपना ह बन गे फरिया बैरी परलोखिया ! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया।…
Read Moreबादर गीत: हरि ठाकुर
भरगे ताल तरैया, भेया भरगे ताल तरैया झिमिर झिमिर जस पानी बरसे महके खेत खार के माटी घुड़र घुड़र जस बादर गरजै डोलै नदिया परबत घाटी नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया॥ इतरावत है नदिया, लागिस झड़ी गजब रे ! सावन के बादर सेना घुमड़िन जइसे राम लखन अउ रावन के पानी बादर के भाटों के घर के राम रखैया ॥ ‘फूले लागिस धरती हरियर लुगरा भुइंया पहिने नाचिस अउर जोगिनी बरिस रात मां जइसे सिता गइस माचिस खोंदरा में चुचुवात खुसरे हवें गरीब चिरैया कब सुकुवा उथे…
Read Moreसुरता: हृदय सिंह चौहान
तरसा तरसा के, सुरता सुरता के तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस॥ जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता जिनगी मोर दुभर करे, कर डारे सुरतेच के पुरता तलफा तलफा के कलपा कलपा के तोर सुरता हर बैरी, निचट घुरा डारीस॥1॥ कचलोइहा कर डारे तंयहा, पीरीत सिपचा के अइसे जलाये रे मोला, न कोइला न राख के कुहरा कुहरा के गुंगवा गुंगवा के तोर सुरता हर बैरी, खो-खो के जरा डारीस।।2॥ अंगरी के धरत धरत, नारी मं पहुंच गये, का मोहनी खवा के रे मोला, लुटे अउ कलेचुप घूंच…
Read Moreमारबो फेर रोवन नह दन: समरथ गँवइहा
मारबो फेर रोवन नइ दन तुमन सुख पाबो कहथव कमजोरहा बुद्धि एको रच नइये परे हव भोरहा तिजोरी के कुंजी तूं हमला देहे हव तुंहर सुख ल होवन नइ दन मारबो फेर……… बिन पुछे तुंहला सुनावत हन हाल रेडियो इसटेसन ला करब थोरक खियाल का खरचा करे कतेक खरचा करे हिसाब म हम गलती होवन नइ दन मारबो फेर……… रहिस खरचा के इमानदारी तो रसीद मन साखी हवय पारी के पारी येक बात हय बड़े अफसर बड़े सेठ इ मन के गवाही होवन नइ दन मारबो फेर………. कुर्सी जाय के…
Read Moreपरेवा गीत: बाबूलाल सिरीया दुर्लभ
उड़िया जा परेवा तंय, ले के संदेस, मोर पिया के देस पामगढ़ जाबे फेर सवरीनारायन, अंगना म लागे हवय आमा के पेड़। गर्रा-धूंका अस तंय जाबे, अऊ ओसने आ जाबे, रूख-राई के छंइहा म झन कोनो मेर सुरताबे। झनिच बिलमबे कोनो मेर न, झन करवे कहूँ अबेर। उड़िया जा परेवा तयं॥ चील- कँउवा-बाज हें अब्बड़ साव-चेती जाबे, सिकारी मन के माया जाल म जाके झन झोरसाबे। मोर दया-मया तंय संग ले जा, तोर होही रखवार। उड़िया जा. ॥ महनंदिया म पानी मिलही, चंडीगढ़ म चारा, तरिया तीर म ऊंखर महल…
Read Moreअन्न कुंवारी के जवानी: मन्नीलाल कटकवार
अन्न कुंवारी के जवानी सब ल आशीष देत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे। असाढ़ महिना चरण पखारै, सावन तोर गुन गाव । भादों महिना लगर-लगर के, तोला खूब नहवावै। कुवांर महिना कोर गांथ के, तोला खूब समरावे। कातिक अंक अंग म तोर, सोनहा गहना पहिरावै । तोर जवानी देख सरग के, रंभा होगे अचेत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे॥ उमर जवानी के मस्ती म, कसमकसात हे चोली। ऐती ओती गिरगिर के, बइहर संग करै ठिठौली। बीच खेत ले करगा राणी,…
Read Moreमोरो कोरा ल भर दे: मन्नीलाल कटकवार
हे राम! गजब मैं पापी, फोकट जनमेंव दुनियाँ म। कतका दिन होगे आए, नइए लइका कोरा म॥ जौन मोर ले पीछू आइन, उन हो गय हें लइकोरी। कोरा म पाके लइका, कुलकत हे जाँवर-जोड़ी ॥ सब धन-दौलत हे घर म, कोठी म धान हे जुन्ना। मोर दुखिया मन नइ मानै, एक ठन बिन घर हे सुन्ना॥ मोर सास-ननंद खिसियाथे, बोलियाथे पारा-टोला। छाती फाटे अस करथे, ठड़॒गी कइथें जब मोला॥ सब कइयथें तेला सहिथौ, छाती म पथरा धर के। मुँहले भाखा नइ बोलॉव, मरजाद रखे बर घर के। अंतस म सुलगे…
Read More