बसंत ऋतु

आगे बसंत ऋतु ह संगी , सबके मन ह डोलत हे। पेड़ में बइठे कोयल ह, कुहु कुहु कहिके बोलत हे। बाग बगीचा हरियर दिखत, सुघ्घर फूल ह फूलत हे। पेड़ म बांधे हावय झूला, लइका मन ह झूलत हे। मउर धरे हे आमा में , महर महर ममहावत हे, फूल फूले हे फूलवारी में सबके मन ल भावत हे। हवा चलत हे अब्बड़ संगी डारा मन ह झूमत हे, खेत खार ह हरियर दिखत, लइका मन ह घूमत हे। चना मटर के दिन आये हे, लइका मन ह जावत…

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सरगुजिहा गीत- रूख ला लगाए डारबो

माथ जरे झिन मझिनहां कर घामा, छांहा बर रूख ला लगाए डारबो। रूखर दिखे झिन परिया-पहार हरियर बर रूख ला लगाए डारबो। फूल देथे-फर देथे अउर देथे छाया। काठ कोरो देथे बगरा देथे अपन माया।। बड़खा साधु कस हवे जी मितान, एहिच बर रूख ला लगाए डारबो। आमा कर हठुली घलो मउहा कर मदगी घलो। जमती कर ठेठी तले पाकर कर फुनगी।। नान कुन गांछी ला जोगावन सयान तेकरे से घोरना घोराए डारबो। जंगल कर रूख जमों बरखा ला बलाथे। भुइयां ला दाब राखेल बोहाए झिन बचाथे।। बगरा पतई हर…

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सरगुजिहा गीत- दिन कर फेर

देखा रे भाई कइसन दिन कर फेर। रात कभों दुख ले के आथे कभों उगत है बेर।। तीन लोक कर जे स्वामी गा राज-पाट सब छोड़िन। भाग बली गा उघरा पावें बन ले नाता जोड़िन। संग चलिन सीता माता गा है कइसन अन्धेर।। देखा रे भाई ……………….. जे सिरजिस संसार कहत हैं केंवटा पार उतारे। गंगा पर करे बर जोहें भवसागर जे तारे। जेकर बस में चांद सुरूज गा कहथें होत अबेर।। देखा रे भाई …………… काया-माया जेकर बस गो जे धरती ला धारे। सोन मिरग कर पाछू कूदिन बिन…

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सरगुजिहा गीत – गोई रे

अरे गोई झमकत पानी भरल जवानी ऊपर करिया रात गोई रे, ऊपर करिया रात।। भेदी पइरी बोले बइरी मानत नह है बात गोरी रे, मानत नइ है बात। आंखी में आंजे हों जेला कर डारिस गा घात गोई रे, कर डारिस गा घात। दे के पीरा लूटिस हीरा बइठे हों पछतात गोई रे, बइठे हों पछतात। पानी बिन मछरी अस चोला है आंखी झरियात गोई रे, है आंखी झरियात मरत पियासे हैं संगी मन हैं देखत बरसात गोई रे, है देखत बरसात। लागत है हिरदे सुरता में जइसे टूटल पात…

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भंवरा तोर मन के नोहे: बद्री विशाल परमानंद

परगे किनारी मा चिन्हारी, ये लुगरा तोर मन के नोहे लागे हाबे नैना मा कटारी, ये कजरा तोर मन के नोहे लडठका ह लउकत हे दांतन मा तोर मीठ बोलना बजा देते मादर ला तोर लइसे लागे तोर खोपा मा गोई गुंझियागे हे करिया बादर ह वो इंद्रराजा आगे धनुषधारी, ये फुंदरा तोर मन के नोहे….. कोन बन मा बंसरी बजाये मोहना सुरता समागे सूरसुधिया जकर बकर होगे रे लकर धकर होगे रे कइसे परावत हे रधिया जइसे भगेली कोनी नारी, ये झगरा तोर मन के नोहे….. नाचत हे रधिया…

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नरसिंह दास के सिव के बरात

आइगे बरात गांव तोरे भोला बबा जी के, देखे जाबो चला गिंया संगी ल जगावारे। डारो टोपी धोती पांव पैजामा कसिगर, गल बंधा अंग कुरता लगावरे॥ हेरा पनही दौड़त बनही कहे नरसिंह दास, एक बार हुहां करिसबें कहूँ धावारे। पहुंच गये सुक्खा भये देखि भूत-प्रेत, कहे नहीं बांचन दाई बबा प्राण ले भगाव रे॥ कोऊ भूत चढ़े गदहा म कोऊ, कूकूर म चढ़े कोऊ-कोऊ कोल्हिया म चढ़िआवत। कोऊ बिगवा म चढ़ि कोउ बघवा म चढ़ि कोउ घुघवा म चढ़ि हांक उड़ावत॥ सर्र-सर्र सांप करे गर-गर्र बाघ करे, हांव हांव कुत्ता…

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मेदिनी प्रसाद पाण्डेय के गीत

नो हो कछेरी ए हर नो है कछैरी, हाकिम मन बैठे बैठे खेलत है गरी ए हर नो है कछैरी……… चला भाई भाग चली प्राण ला धरी विधि के विधान में सुखाये पोखरी। ए हर नो है कछैरी……. दफा सार सौ बीस बूले खोल डगरी भरत हवे पेट कोई जी इ की मरी। ए हर नो है कछैरी…….. कतकी दुःख के धन कमाके, टीकट में भरी रिसराढ़ में मुरुख बन के नालिस करी। ए हर नो है कछैरी.. दीवानी फौजदारी अर्जी दावा मुलफरकात सम्मन्स वारंट डिग्री कुर्की अवधट घाट। ए…

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धनी धरमदास के सात छत्तीसगढ़ी पद

(1) पिया बिन मोहे नीक न लागै गाँव। चलत चलत मोर चरन दुखित भे, आँखिन पर गै धूर। आगे चलौ पंथ नहिं सूझै, पाछे परै न पॉव। ससुरे जावँ पिया नहिं चीन्है, नैहर जात लजावै। इहाँ मोर गाँव, उहाँ मोर पाही, बीच अमरपुर धाम ॥ धरमदास बिनवे कर जोरी, तहाँ गाँव ना ठाँव ॥ (2) साहेब बूड़त नाव अब मोरी काम क्रोध के लहर उठत हे, मोह-पवन झकझोरी | लोभ मोरे हिरदे घुमरत हे, सागर वार न पारी ॥ कपट के भँवर परे हे बहुते, वों में बेड़ा अटके |…

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सरगुजा कर देखे जोग झरना

सरगुजा के दर्शनीय जल प्रपात परकिरती कर बदलाव ले भारतभर कर कला अउ संस्किरती कर संगे–संग इतिहास अउ पुरातत्व कर जरहोजात मन धरती कर भितरी हमाये जाथें। येमन कर जानकारी जुटाना काकरो बर अब्बड़ मेहनत कर बुता होथे। हमर सरगुजा हें कईअकठन धरम-करम, इतिहास पुरातत्व मधे कर देखे जोग जगहा हवें। इहां कर जुनहा बेंगरा, माड़ा, मंदिर, गढ़ी, किला, पखना कर मूरती, मनला देख के सरगुजा कर ढेरेच जूना, बकिन सबले जबरजस्स मूरती बनाये कर कला, सुघ्चर सभ्यता अठ धरम-करम हैं जमझन कर एकजुटता कर पता चलथे। इहां कर नदी…

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सरगुजिहा कहनी – काकर ठन बिहाव करबे

कतवारू गांव कर किसान रहिस। जांगरटोर मेहनत के कारन ओकर घरे कोनों चीज कर कमी नइ रहिस। ओकर एकेठन बेटा रहिस सोमारू। कतवारू खुद नई पढे – लिखे रहिस बकिन ओकर मन में अपन बेटा ला पढ़ाय कर ललक रहिस। सोमारू घलो सुघ्चर लइका रहिस। पढ़ाई कर उपर ओकर. पूरा ध्यान रहे। संगे-संगे अपन बापो कर काम में हाथ बंटावे। सोमारू जब गांवे कर इस्कूल ले बारहवीं पास करिस त ओकर बाप कतवारू चिलम चघाय के पूरे गांव में घूम-घूम के अपन बेटा कर गुन ला बखाने लागिस।। गरमी कर…

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