सरगुजिहा कहनी- मितान

ढेरे जुनहा गोठ हवे। गांव कर उत्तर कती एगो झोपड़ी रहिस। उहां एगो महात्मा रहत रहिन । दिन भर भीख मांगे अउर रात में झोपड़ी में कीर्तन भजन करत रहें। गांव में उनकर चेला-चपाटी भी रहिन ! कीर्तन भजन करे वाला चेला। ओही चेला में एगो चेला रहिस बिसनाथ। पढ़ल-लिखल होसियार चेला। कीर्तन भजन करे में उसताज। एक दिन बिसनाथ महात्मा जग भिनसारे पहुँचिस। ओकर चेहरा उदास रहिस । हाथ में एगो झोला रहिस। ओहर महात्मा ला पायलगी करके एक कती बइठ गइस। तब महात्मा कहिन – “का बात हवे…

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सरगुजिहा गजल

ढेरेच्च गुमान भरल, मनखे कर जात । तेकर सेथी बिगडिस, मनखे कर जात ।। धरती कर रेंगइया, तरई ला माँगे। । चलनी मा पानी भरे, मनखे कर जात।। नदिया ला दाई कहे, चन्दा ला मामा। दूनों कर नास करिस, मनखे कर जात।। सूते घनी जागत, जागत घनी सूते। रात-दिन कलथत हे मनखे कर जात।। चलती ला गाडी, जीते ला हार। । अइनसेच बुध राखथे, मनखे कर जात।। गजल ला गइहा करीहा आगू बिचार । कहथे सुबासनी सुना मनखे कर जात।। – सुबासनी शर्मा

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गीत : धनहा डोली

चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली। सुनाहूँ तोला, तीतुर, पपीहा के बोली। मेड़ -पार म उगे हवे, रंग – रंग के काँदी। खेत म खेलत हवे, डँड़ई, कोतरी, सराँगी। नाचत हवे रुख राई संग, पँड़री-पँड़री कांसी। कते रुख तरी खाथों, बइठ मैंहा बासी? तँहूँ ला खवाहूँ, मुंग – मुंगेसा ओली-ओली। चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली…………….। मेचका के टर-टर हे, पुरवाही सर-सर हे। मुही के पानी झरे, झर-झर झर-झर हे। भादो बुलकगे, सजोर होगे धान। नाच देथे कई परता, खेतेच म किसान। सँसो – फिकर के, जर जथे होली । चल घुमाहूँ…

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मोर संग चलव रे

ए गिरे परे हपटे मन अउ डरे थके मनखे मन, मोर संग चलव रे अमरइय्या कस जूड छांव मंय मोर संग बइठ जुडा लव पानी पी लव मंय सागर अंव दुख पीरा बिसरा लव नवा जोत लव नवा गांव बर रददा नवा गढ़व रे। मंय लहरी अंव मोर लहर मां फरव फुलव हरियावव महानदी मंय अरपा पैरी तन मन धो फरिया लव कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा मया के पाठ पढ़व रे। (पापी इंहे तरव रे) बिपत संग जूझे बर भाई मंय बाना बांधे हंव सरग ल पिरथी मां…

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में नो हों महराज: नारायण लाल परमार

एक ले एक हे हुसियार ,में नो हों महराज। करे सब करिया कारोबार, मे नो हो महराज॥ कनवा ला कनवा कहइया होहीं कोन्हो दूसर, गउ के किरिया हे हवलदार, मे नो हों महराज ॥ सब के बांटा ला अपन मान के जे खावत हें, कोन्हों कुकुर होही सरकार, मे नो हों महराज॥ देस ला कतकोझन, मुसुवा समझ के भूंजत हें, होहीं अइसन केउ हजार, मे नो हो महराज॥ गारी-गुप्ता, डंडा-बंधक, सबके सरता हे, चुहकत हे कोन अब कुसियार, मे नो हों महराज॥ गाय ला दाई अउ छेरी ला कहो सब…

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हरि ठाकुर के ‘सुराज के पहिली संग्राम’ के अंस

सब ले जुन्ना देश हमर धरम अउर संस्कृति के घर राम कृष्ण अवतरिन हइहां सरग बनाइन हमर भुयाँ। सुग्घर सबले छत्तिसगढ़ कौशिल्या माता के घर ओखर सुमरन कर परनान जनम दिहे तैं राजा राम। कलजुग मां जब पाप बढ़िस बेरा उतरिस, रात चढ़िस राजा-परजा दुनो निबल परिन गुलामी के दल दल। बनिया बन आइन अंगरेज मेटिन धरम, नेम, परहेज देस हमर सुख के सागर बनिस पाप-दुख के गागर। करिन फिरंगी छल-बल-कल फूट डार के करिन निबल बढ़िन फिरंगी पांव पसार हमरे खा के देइन डकार। करिन देस के सत्यानास भारत…

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हरि ठाकुर के गीत: सुन-सुन रसिया

सुन-सुन रसिया ! आंखी के काजर लगय हंसिया चंदा ल रोकेंव, सुरुज रोकेंव रोकंव कइसे उमर ला चुरुवा भर-भर, पियैव ससन भर गुरतुर तोर नजरला मोर मन बसिया! तोर आँखी के काजर लगय हंसिया। सुन-सुन रसिया! गिनत-गिनत दिन, महिना, बच्छर मोर खियागे अंगरी रद्द देखते-देखत बैरी आँखी भइगे झेंझरी बैरी अपजसिया! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया। सुन सुन रसिया! तोर बिन जिनगी ह मोला लागय जइसे जल बिना तरिया सांसा के आरी ह चीरे करेजा सपना ह बन गे फरिया बैरी परलोखिया ! तोर आँखी के काजर लगय हँसिया।…

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बादर गीत: हरि ठाकुर

भरगे ताल तरैया, भेया भरगे ताल तरैया झिमिर झिमिर जस पानी बरसे महके खेत खार के माटी घुड़र घुड़र जस बादर गरजै डोलै नदिया परबत घाटी नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया॥ इतरावत है नदिया, लागिस झड़ी गजब रे ! सावन के बादर सेना घुमड़िन जइसे राम लखन अउ रावन के पानी बादर के भाटों के घर के राम रखैया ॥ ‘फूले लागिस धरती हरियर लुगरा भुइंया पहिने नाचिस अउर जोगिनी बरिस रात मां जइसे सिता गइस माचिस खोंदरा में चुचुवात खुसरे हवें गरीब चिरैया कब सुकुवा उथे…

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सुरता: हृदय सिंह चौहान

तरसा तरसा के, सुरता सुरता के तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस॥ जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता जिनगी मोर दुभर करे, कर डारे सुरतेच के पुरता तलफा तलफा के कलपा कलपा के तोर सुरता हर बैरी, निचट घुरा डारीस॥1॥ कचलोइहा कर डारे तंयहा, पीरीत सिपचा के अइसे जलाये रे मोला, न कोइला न राख के कुहरा कुहरा के गुंगवा गुंगवा के तोर सुरता हर बैरी, खो-खो के जरा डारीस।।2॥ अंगरी के धरत धरत, नारी मं पहुंच गये, का मोहनी खवा के रे मोला, लुटे अउ कलेचुप घूंच…

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मारबो फेर रोवन नह दन: समरथ गँवइहा

मारबो फेर रोवन नइ दन तुमन सुख पाबो कहथव कमजोरहा बुद्धि एको रच नइये परे हव भोरहा तिजोरी के कुंजी तूं हमला देहे हव तुंहर सुख ल होवन नइ दन मारबो फेर……… बिन पुछे तुंहला सुनावत हन हाल रेडियो इसटेसन ला करब थोरक खियाल का खरचा करे कतेक खरचा करे हिसाब म हम गलती होवन नइ दन मारबो फेर……… रहिस खरचा के इमानदारी तो रसीद मन साखी हवय पारी के पारी येक बात हय बड़े अफसर बड़े सेठ इ मन के गवाही होवन नइ दन मारबो फेर………. कुर्सी जाय के…

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