पुतरी के बिहाव – सुधा वर्मा

रमा आज बहुत खुस हावय। आज अकती हे, आज ओखर पुतरी के बिहाव हावय। रमा के संगवारी अनु घलो खुस हावय, काबर के रमा के पुतरी ओखर घर आही। दूनों संगवारी समधिन बनहीं। दू दिन पहिली ले तइयारी चलत हावय। रमा अउ अनु तेल मायन सब करिन। एक अँगना म दूनों झन बिहाव करत रहिन हे। दूनों के परिवार माय भरिन। सब झन खूब हँसी-मजाक करत रहिन हे। हरदाही खेलिन तब तो अइसे लगत रहिस हे के सही के बिहाव होवत हावय। रमा के महतारी ह पुतरा-पुतरी बर सुघ्घर कपड़ा…

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