अपन दाई के सुमिरन कर अपन मन म कतको परसन मन ला सोचत हे। दाई के जाय के पाछू जम्मो परिवार का छितिर-बितर हो जाथे। ओला पोटारे बर अब कोन हे जेन हा ओ मन ला संभालत राहय, अपन मया के अंचरा मा गठिया के रखय, ते हा अब कहां है कोन कोती चले गे, काबर गिस, का फेर लहुट के आही।
आज अशोक हा बिन दाई के लइका होगे हे। ओकर संगे संग ओकर जम्मो दू भाई अउ दू बहिनी मन हा घलो बिन दाई के होगे। बड़ दु:ख पीरा हा समागे। का करबे काकरो जिनगी के भरोसा ला कोनो नई दे सकय। जनम अउ मरन के सबले बड़े अधिकार ला भगवान हा बोहे हा। इही अधिकार हा हम मनखे मन ला भगवान के आगू अपन मुड़ी नवाय बर मजबूर कर देथे। कोनो घर मा दाई के गे जान अउ लहुट के नई आना बड़ दु:ख के कारन बन जाथे। आज अशोक हा बड़ संसो मा पड़ें हे। वो हा मने मन सोचत हे के ए हा का होगे। का हमर ले कोनो बड़का पाप होके जेकर कारन हमर भगवान हा हमर दाई ला अपन कना बुला लिस। दुनिया मा पइसा कौडी, नौकरी, घरवाली, भाई-बन्ध, बहिनी, लइका, नाती-पोता, बहू, घरवाला सब्बो मिल जाथे फेर दाई नई मिलय। दाई के महत्तम अब्बड़ हे। ओकर ममता अउ पियार ल कोनो तराजू मा नइ तउले जा सकय। वो हा ममता, पियार के मूरति आय। ओकर आगू सबो नतमस्तक हो जाथे। अशोक हा आज अपन दाई ला सुमर कर मने मन भीतर-भीतर रोवत हे। ओकर आंखी मा आंसू नई हे ओ आंसू मन हा सुखागे हे। पुरुष अऊ महिला मन के रोवई मा इही तो अन्तर हे के महिला मन के आंखी मा तुरते हे आंसू आ जथे। जोर-जोर से रोवन लागथे फेर पुरुष मन कइसे करंय। उंकर आंखी मा आंसू नइ आवय ओमन मन मा भीतर ले रोथे।
अशोक के दाई न नांव शांति रिहीस। जइसन ओकर नांव तइसन ओकर काम। कलेचुप रहना जादा नइ बोलना, ओकर बड़ सांत सुभाव रहिस। हंसमुख चेहरा, पड़रिन रिहिस। गोलइन्दा भाटा कस चेहरा। सुग्घर रूप रंग। बुटरी कद काठी। ओहा अपन जिनगी भर सरलग बूता काम मा भिड़े रहय। बड़ मिलनसार। ओकर घर, मुहाटी का कोनो भी आजा तिस ओकर सुआगत बड़ हंस के करय। चाय-पानी बड़ पियार से देवव। ओकर दु:ख-सुख के बात ला गोठियावय। ओकर ले मिलइया मन ओला सदा याद रखय। अइसन सुभाव के शांति दाई हा मालकिन रिहिस। ओकर परिवार मा ओकर सबले बड़े लइका अशोक ओकर पाछू दू झन बेटी यमीमा और शमीमा, उंकर पाछू दू झन सरलग टुरा अरूण अउ अनूप रिहिन। बड़े परिवार रिहिस शांति दाई के घर वाला हा भिलाई के सेक्टर नाइन के अस्पताल ले सन् 1990 मा रिटायर होके अपन घर पद्मनाभपुर दुर्ग मा शांति दाई के संगे राहत रिहिस। दूनो परानी एक दूसर ला अपन बुढ़ापा के एक उमर मा एक दूसर ला देखत, एक दूसर के सेवा करत अपन जिनगी के गाड़ा ला बढ़ावत रिहिन। इही समे अइसन का होगे के शांति दाई ला एक ठन बड़का बेमारी हा पकड़ लिस। ओ बेमारी मा एक दाई हा नई घबराइस। ओकर एक ठन थन म केंसर के बेमारी हा होगे रिहिस। कतको दिन ले अस्पताल मा एकर जांच अउ इलाज, दवा-दारू चलीस, मगर कोनो फाइदा नइ होइस। त डॉक्टर मन हा शांति दाई ला बोलिन के तुंहर आपरेसन करे ला पड़ही। शांति दाई हा ये सुनके नइ घबराइस। ओकर आपरेसन होइस। आपरेसन पाछू बड़ दवाई पानी चलिस। दवाई खावत खावत शांति बाई के इस्थीति हा बड़ कमजोर होगे। इही कमजोरी मा अपन लोग लइका ले मिलना जुलना, खाना-पीना देना, खिलाना अपन घर के जम्मो बूता करना अपन घरवाले के विसेस धियान रखना ओकर जिनगी के इही दिनचरया राहय। काकरो ले ओकर सिकवा सिकायत नइ राहय।
ओहा बड़ धारमिक सुभाव के महिला रिहिस ओकर घर के लखटा मा चर्च राहय तेमा ओहा हर इतवार के बिना नागा करे चर्च राहय तेमा ओहा हर इतवार के बिना नागा करे चर्च जावय। अपन भगवान के भक्ति करय। बेमारी पाछू ओकर सुझाव, दुलार पियार ममता, मा कोनो कनी नइ आइस। अइसने अपन जिनगी के गाडी ला चलावत ओकर उमर हा तिहत्तर साल पूरगे। 31 मार्च सन् 1936 मा ओकर जनम हा टाटानगर मा हो रहिसे। जहां ओकर ददा जीवन मसीह हा टिन प्लेट कम्पनी मा फोरमेन रिहिस। शांतिदाई के दाई चिरौंजा हा अपन बड़की बेटी अउ पहिलावत संतान ला पाके कतका खुस होइस होही, तेकर बरनन नइ करे जा सकय। शांति दाई के माइका हा गौटिया परिवार के रिहिस। अतेक बड़े परिवार के बेटी होए के बाद भी शांति दाई के सुभाव मा कोनो गरब नइ रिहिस। सन् 1954 के 4 मई मा ओकर बिहाव एक ठन गरीब परिवार के लइका आशा कुमार के संग होय रिहिस। बिहाव पाछू ओकर रहना तिल्दा जिला रायपुर रिहिस। रायपुर मा आठ बछर ले ओहा ऊंहा रिहिस। तहां ले ओकर घर वाले हा बैतलपुर मा नउकरी करे बर आनिस, बैतलपुर मा आत ले शांतिबाई के पांचों लइका होगे रिहिस। सात झन परानी लो समभालना कोनो आसान बूता नइ रिहिस। एक झन कमइय्या अउ सात झन खवइय्या। फेर उंकर लालन-पालन, सिक्छा-दीक्छा कपड़ा लत्ता, कतका खरचा, बाढ़ गे रिहिस। तभो ले शांति दाई अइसन गरीबी मा अपन हिम्मत ला नइ हारिस। अपन जिनगी के रद्दा मा बढ़त रहय। बैतलपुर ले ओकर परिवार नागपुर चले गे। नागपुर में आठ बछर रिहिन। नागपुर ले उंकर जिनगी के गाड़ा हा भिलई मा सन् 1970 मा आगे। तब ले ओकर घरवाला के रिटायर के होत ले फरवरी 1990 तक वो हा भेलाई मा रिहिस। ओकर पाछू पद्नाभपुर के अपन ठिया मा अपन मरत दम तक 10 फरवरी 2010 तक बीस बछर ले रिहिस।
अपन परोसी मन मा ओहा अब्बड़ परसिध रहिस अपन पियारी आनटी के रूप मा अपन मया पिया ला बाटत रिहिस।
एक दिन शांति दाई हा अपन नान्हे बेटी शमीमा के घर अस्पताल सेक्टर भेलई मा आय रिहिस। एक दिन पाछू दूसर दिन अचानक ओकर तबियत हा खराब हो गे। जबान हा लड़खड़ाय लगिस। बने बोली बात हा नइ फूटत राहय। तुरत ओला सेक्टर 9 अस्पताल मा भरती करे गिस। थोरिक दिन शांति दाई हा अस्पताल मा भरती रिहिस। अचानके ओकर जोवनी अंग मा लोकवा मार दिस एकर पाके ओकर रेंगना बन्द हो के। मुंह जबान हा खुलना बंद होंगे। खाना-पीना सब छूट गे। चार-पांच दिन अपन नान्हे बेटी शमीमा के घर मा वोहा रिहिस। ओकर सेवा सत्कार बर ओकर घरवाला आशा कुमार हा अपन जी जान लगा दे रिहिस। मगर भगवान ला कोनो अउ बात मजबूर रिहिस। 10 फरवरी 2010 के पौने बारह बजे के रात मा अपन जठना मा सुते-सुते शांति दाई हा अपन बड़का परिवार ला रोवत छोड़के अपन भगवान घर चले गिस।
शांति दाई हा सांत हो गे मगर ओकर जम्मो परिवार नाते रिस्तेदार, भाई-बहिनी, परोसी, बेटा-बेटी मन असांत होगे। आज अशोक हा अपन दाई के सुमिरन कर अपन मन म कतको परसन मन ला सोचत हे। दाई के जाय के पाछू जम्मो परिवार का छितिर-बितर हो जाथे। ओला पोटारे बर अब कोन हे जेन हा ओ मन ला संभालत राहय, अपन मया के अंचरा मा गठिया के रखय, ते हा अब कहां है कीन कोती चले गे, काबर गिस, का फेर लहुट के आही। का हमन ले कोनो बड़का पाप, बेइमानी होगिस, जेकर सजा हमन अइसन पायेन। आज ए रेखाचित्र के लिखइय्या अशोक सेमसन अपन दाई शांति ला ओकर जन्मदिन 31 मार्च माए ए सुरता करत भगवान ले इही पराथना करत हे के मोर दाई ला भगवान तैहा अपन कोरा मा बइठा लेबे। ओकर सुरता ला नइ भुला सकन, जब ले जिनगी रहही, हमर जिनगी मा हमर शांति बाई हा जिनदा रहही।
अशोक सेमसन
रूत विला
प्लाट नं. ए1 बी
आशीष नगर (पश्चिम)
रिसाली भिलाई