गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी ।
कइसे जानबे तँहीं बता, कोन सहीं कोन ढोंगी ?
बड़े बड़े गोटारन माला, घेंच मा पहिने रहिथे ।
मोर से बढ़के कोनों नइहे, अपन आप ला कहिथे ।
फँस जाथे ओकर जाल मा , गाँव के कतको रोगी ।
कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी ?
जगा जगा आश्रम खोल के, कतको चेला बनाथे ।
पढ़े लिखे चाहे अनपढ़ हो , सबला वोहा फंसाथे ।
आलीशान बंगला मा रहिके, सबला बुद्धू बनाथे ।
माया मोह ला छोड़ो कहिके, झूठा उपदेश सुनाथे ।
आश्रम अंदर कुकर्म करत हे, धन के हावय लोभी ।
कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी ?
जागव रे मोर भाई अब तो, एकर चाल ला जानव ।
छोड़ दे बाबा के चक्कर ला , घर के देवता ला मानव ।
अइसन अत्याचारी मन ला, मिल के सजा देवावव ।
पहिरे हावय साधु के चोला , ओकर नकाब उतारव ।
हमर संस्कृति ला बदनाम करत हे , अइसन पापी भोगी ।
कइसे जानबे तँही बता , कोन सही कोन ढोंगी ?
गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी ।
कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी ?
महेन्द्र देवांगन “माटी”
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
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