मानक बिना मान नही

हमर राज के गुरतुर छत्तीसगढ़ी बोली अब भाषा बन गेहे, अब तो छत्तीसगढ़ी के मान सम्मान आगास मा पहुंच जाना चाही, फेर अइसन का होवत हे कि हमर अंतस मा हमाय छत्तीसगढ़ी, सम्मान के अगोरा मा दिनोदिन दुबरावत हे? जम्मों झन ये बात ला नकार नइ सके कि कोनो राज, संस्कृति, परंपरा, भाषा अउ गियान-बिग्यान ला साहित्य हा सहेज के राखथे, साहित्य के बिना ये दुनिया अंधियारी खोली बरोबर हो जही, अउ यहू गोठ ला माने ला परही कि ये दुनिया अउ समाज ला साहित्यिकार मन ही अपन ढंग ले रद्दा देखा सकत हे। फेर साहित्यिकार ला बल कहाँ ले मिलय? यहू एक ठन जबर गोठ आये, काबर की भाषा अउ साहित्य के बिकास बर कलम मा ताकत होना चाही।
हमर राज के साहित्यिकार मन के लगन, तप, मिहनत, महतारी भाखा बर मया, अउ गियान बुद्धि मा कोनो कमी नइये, फेर छत्तीसगढ़ी के मानक सबद के अभाव मा सबो सुरुज बरोबर चमकत साहित्यिकार मन ला गरहन धर लेथे। कतको कलम के पुजारी साहित्य के सेवा मा अपन जिनगी खपा डरिन, कोनो गद्य मा कोनो पद्य मा साहित्य ला उँचाई देखइन, त कोनो छंद मा साहित्य ला पोठ करे के बूता करिन। अउ ये बूता अभू घलो पीढ़ी दर पीढ़ी चलत हे, फेर मानक सबद के अगोरा मा जम्मों झन के उदीम हा अध्धर हो जथे। अइसे तो सुरुज ला कतको चपक के राख ले फेर अंजोर तो बाहिर आबे करही। तभो ले कलम के सिपाही मन के अथक परयास ला मान सम्मान नइ पावत देख के अंतस मा छाला पर जथे।




जम्मों साहित्यिकार स्वाभिमानी अउ संतोसी हे, ते पाय के कोनो अपन सम्मान के बाट नइ जोहे, फेर महतारी के सम्मान नइ होही त अंतस कचोटबे करही। हमर राज भाषा आयोग के गठन साहित्यिकार मन के इही पीरा ला कम करे बर करे गे रीहिस। जेखर ले पीरा थोकन कमतियाय हे, फेर पूरा कटे नइये, काबर कि जेन आसरा कलमकार मन ला आयोग से हवय ओखर पूरा होना बाँचे हे। सबले पहिली तो जम्मों कलमकार मानक सबद के अगोरा करत हे। जम्मों झन अपन सकत ले भाषा के सम्मान बर जतन करत हे, फेर मानक सबद लाने के बूता तो आयोगेच ला करे ला परही।
मानक सबद के अभाव मा कोनो काहीं रचना करे, सबला मानेच ला परथे, येमा जम्मों के नकसान हे, नवा लिखईया मन ला कोनो टोक नइ सके, काबर कि टोके या सुधारे बर कोनो आधार घलो तो होना चाही, अउ एक घँव नवा कलमकार के अधकचरा रचना आघू बढ़गे ताहन वोला सुधार नइ सकस, ये भोरहा मा कतको कलमकार अब छत्तीसगढ़ी के मूल सबद ला घलो भुलावत हे। जइसे बउरना, बेरा, पहुना, कपाट, दुवार ये सब छत्तीसगढ़ी के मूल सबद आय फेर अब ये सब ला छोड़के साहित्यिकार मन हिन्दी ला टोर के लिखत हे, परयोग करना, समे, मिहमान, फाटक, अँगना। अइसन मा मूल सबद के नंदाये के खतरा बाढ़त हे।
अब जेन हा मात्रा गनती मा रचना लिखत हे तेखर पीरा तो अउ जबर हे, छंद रचना मा एक मात्रा के कम या जादा होय ले पूरा रचना गलत हो जथे, अब सँझा बिहिनिया मिहनत करके कोनो हा रचना करे हे, अउ बाद मा वोला कहे जाही कि तोर रचना मा मात्रा कम या जादा हे, त ओखर छ्त्तीसगढ़ी साहित्य अउ भाषा बर का सम्मान रही, ये सब समझे सकत हव। अब उदाहरन बर उपर के मोरे एक सबद ला देख लव, मेहा अभी ‘मिहनत’ लिखे हँव, अउ काली के दिन मा मानक सबद मा कहे जाही की ‘मेहनत’ सबद ला मान्य करे जाही त मोर ये सबद मा एक मात्रा बाढ़ जही, अउ मेहा ये सबद ला छंद मा घलो बउरे हँव, त मोर ये सबद आय वाला जम्मों छंद गलत हो जही। अउ बहुत झन साहित्यिकार मन के मानना हे कि हिन्दी वर्नमाला के कुछ सबद ला छत्तीसगढ़ी मा नइ बउरना हे, त अइसन मा घलो ब्याकरन मा रचना लिखना कठिन हो जथे। छत्तीसगढ़ी मा 12 ठन स्वर अउ 40 ठन व्यंजन माने गे हवय। ड, त्र, ण के काम अं या न ले चल जथे, ‘क्ष’ अउ ‘श’ ‘ष’ के जगा ‘छ’ अउ ‘स’ हो जथे। जइसे कि मोला तुकांत मिलान हे, त ‘क्लेश’ अउ ‘परदेस’ के तुकांत उत्तम तुकांत नइ होवय, फेर छत्तीसगढ़ी मा ‘श’ ल ‘स’ लिखबो त ‘कलेस’ अउ ‘परदेस’ के तुकांत बन जही, अतका सब ठीक हे, फेर जेन दिन मानक आही अउ साहित्यिकार ये दुनिया मा नइ रही त ओखर लिखे साहित्य मा सुधार कोन करही? अउ सुधार नइ होही त वो साहित्य ला सही माने जाही या गलत?




एक ठन अउ जबर गोठ ये हवय कि जम्मों साहित्यिकार के लेखन मा अंतर होय ले पढ़ईया मन छत्तीसगढ़ी रचना ला पढ़े मा रुची नइ देखाय, सुने अउ बोले मा छत्तीसगढ़ी ला भले जम्मों झन बउरथे, फेर पढ़े-लिखे के बेरा छत्तीसगढ़ी हा साहित्यिकार मन के जिम्मा छोड़ दे जाथे। इही पाय के कतको वरिष्ठ साहित्यिकार मन के कहना हे कि जेन छत्तीसगढ़ी के मूल सबद हे उही ला बउरे जाये, अउ छत्तीसगढ़ी के मूल सबद नइ मिले के स्थिति मा उधारी के सबद ला ज्यों के त्यों बउर लेना ही, ये बेरा के मांग हे। अउ सिरतोन कबे त अब काखरो गोठ ला माने जाय, फेर छत्तीसगढ़ी के मानक सबद आना खच्चित जरूरी होगे हवय। मानक बिना छत्तीसगढ़ी ला पूरा मान सम्मान नइ मिल सके।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला- गरियाबंद (छ.ग.)

Related posts

One Thought to “मानक बिना मान नही”

  1. Pushpraj

    बड़ सुघ्घर। बड़ कन सिखे ल मिलिस ये रचना म।

Comments are closed.