हरियागे धरती अऊ खेती म धान,
कई मन के आगर हें चतुरा किसान।
बरसथे बादर, अऊ चमकत हे बिजुरी,
नोनी मन हवा संग म खेलथें फुगड़ी।
मेड़ पार म अहा तता, भर्री म कुटकी,
लपकट लहरावत हे, घुटवा कस लुगरी।
सोना बरसाथें – गुलाबी बिहान।
कइ मन के आगर हें चतुरा किसान।
अरवा अऊ नदिया के पेट हा अघागे
डोंगरी के पानी, समुनदर थिरागे।
करमा ददरिया अऊ आलहा चनदैनी,
चौरा चौरसता म, भाई अऊ बहिनी।
गावथें बांचथे – पोथी पुरान।
कई मन के आगर हें चतुरा किसान।
महर महर केकती, चमेली अऊ गोंदा,
डारा म पाके हे नीबू करौंदा।
खेकसी करेला, बेचत हाबे कोंदा,
कोढ़िया मन बइठे हे, माटी कस लोंदा।
माटी संग माते, बलकरहा जवान।
कई मन के आगर हे चतुरा किसान।
काया के दियना अऊ सनसा के बाती,
देवी के देहरी, जले दिन राती।
सरधा के फुलवा अऊ मेहनत के मोती,
माता के माथा चढ़ा ले रे साथी।
आरती उतारव गा, सनझा बिहान।
कई मन के आगर हें चतुरा किसान।
गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा