समारू हर ऐ बखत अपन दु एकड़ खेत म चना बोय रिहिस. बने ऊंच -ऊंच हरियर-हरियर चना के झार म अब्बड़ रोठ-रोठ मिठ दाना चना के फरे रिहिस. अइसन चनाबूट के दाना ल देख के समारू हर अब्बड़ खुस होगे रहाय. इही पइत के चना हर अब्बड़ सुघ्घर होय हवय, बने पचास बोरी ले जादा चना होही. अइसना बिचार म अब्ड़े खुस रिहिस समारू हर. अपन घरवाली संग संझा बिहिनिया चना के खेत के रखवारी करत रहाय.
फेर चना हर पाके ल धरिस त एक दिन बिहिनिया समारू अउ ओखर घरवाली दुनों झिन खेत कोती गिन.का देखथे के बक खागे, के हरियर चना के बूट म हरियर सुवा के झुन हर झुमे रहाय .एक सैकड़ा के संख्या म इही सुवा मन हर रिहिन. ओखर चना के डारा म झुमे रिहिन. अउ खा डरिन चना ल. चना के बूट म चना फरे कस दिखत हवय फेर ओहर फोकला हवय. जम्मो चना ल सुवा मन खा डरिन. समारू हर दउड़ के सुवा मन ल भगाय लगिस अउ सुवा मन उड़ियागे.फेर चना के झाड़ ल देखिस त देखतिस रहियगे. जम्मो चना के बूट म फरे चना हरियर चना हर फोकला होगे रहाय. अइसना चना के हालत ल देख के समारू अपन मुंडी म हाथ धरके खेत के मेड़ म बइठगे अउ ओखर आंखी ले आसु बोहाय लगिस. मन म गुने लहिस के मोर जिनगी के आधार इही चना हर आज फोकला होगे. एको बछर अइसना नइ होय रिहिस.मनखे हर खातिस, छेरी, गइया, भइंसी हर खातिस त समझ म आतीस. इही सफ्फा चना ल त सुवा हर फोकला कर दे हवय. हाय मोर भाग.
खेत के दुरदसा ल देख के समारू हर मुंड धर के खेत म बइठगे. ओला देख के समारू के घरवाली हर किहिस-“अभे हमर का होही, हमर जम्मो दु एकड़ खेत म बोयाय चना हर त फोकला होगे हवय. मेंहर त पहिली ले कहात रेंहव, चना ल झन बोवव जी, फेर मोर गोठ ल नइ मानेव. चना के रथिया बिहिनिया राखवारी करेल परथे, त आप मन नइ मानेव. अब त मनखे, गइया, भइंसा, छेरी ले बचाय हवन त सुवा हर हमर चना फसल ल बरबाद कर दीस. भइगे अब इही बछर फेर मजूरी करे ल परही. अब भइगे राखवारी होगे. इही चना भाजी ल उखान डार थन. चारा बर बेचे के काम आही. बने पोटठाय चना के बूट के चेराय भाजी तको मनखे के कोनो खाय के नो हरे.” समारू अपन घरवाली के गोठ ल सुन के थोरकुन थिरगे, अउ किहिस-“सिरतोन बने कहत हस सुकारो अब इही चना भाजी ल चारा बर बेच के थोरकुन पइसा पा जाबो.” अइसना कहिके दुनों झन चना बूट ल उखाने लगिन.
हरियर- हरियर चना बूट म फोकला बीजा अइसन लागत हवय के ओमा चना फरे हवय. फेर धन फूटहा भाग. इही मन म गुनत सुकारो हर चना बूट के झार ल उखाने लगिस. उही बेरा एक ठन सुवा हर चना के झार म लटके अपन पांख ल फर फरावत रिहिस. ओहर उड़िया नइ सकत रिहिस. सुकारो हर ओला देख डरिस अउ अपन अंचरा म राख लिस. खेत के मेड़ तीर म ओला पानी पियाइस,त ओहर बने आंखी ल खोलिस.सुकारो हर सुवा ल अपन अंचरा के ओली म लुका के राख लिस.समारू हर उही बेरा कहावत रिहिस -“सिरतोन मोला एको ठन सुवा ले भेंट होतिस त मेंहर ओखर बोटी-बोटी कर देतेव. फेर का करबे सुवा मन त उड़ियागे हवय.” समारू के गोठ ल सुन के सुकारो हर सुवा ल अउ लुका डरिस अंचरा म. चना के झार के चरिया बना के अपन मुंडी म बोहे दुनों झिन कलपत मन ले चना खेत ले रेंगे लगिस.
सुकारो के अंचरा म लुकाय सुवा हर बेर बेर फरफरावत रहाय, त ले कले चुप सुकारो सुवा ल लुकाय रहाय.खेत के मेड़ म रेंगत, अपन खेत के चना फसल के दुख ल भुलाय, सुवा बर बिचारत वोहर अपन घर अंगना म पहुंचगे. चना बूट के चरिया ल अंगना म पटके कुरिया म नींगगे.
सबले पहिले कुरिया म नींगके सुवा ल टुकना म लुका के एक ठन साफी ल ओखर ऊपर तोप दिस अउ लकर -लकर चूल्हा म आंगी बार के भात रांधे बर,अंधना चघाके चूल्हा के दूसर अंग दार ल चघा दिस. हरियर कोवंर -कोवंर चना भाजी ल उरर के भांटा संग म ऊसन के लहसुन अउ लाल मिरचा म बघार दिस. अंधना आईस त चाउर ल डेचकी म डार के झारा ले खोइस अउ चाउर पकगे त चाउर ल पसा दिस.चाउर ल पसो के डेचकी के ढकना म अंगरा ल राख दिस.उही बेरा समारू तरिया ले नहा के आगे.
समारू ल ताते-तात खाना परोस दिस. समारू भर पेट ताते-तात दार-भात अउ चना भाजी ल खाइस अउ अपन थकान ल मिटाय बर चटई म ढलंगे. उही बेरा सुवा हर चिं-चिं करत रिहिस. समारू हर कहे लगिस-“घर कुरिया म तको सुवा के बोली हर सुनाई देवत हवय. मोर खेत ल त उजार दिस. अब घर कुरिया ल उजारे बर सुवा के बोली हर सुनावत हवय तइसने लागत हावय.सुकारो अओ सुकारो देख त कहां ले सुवा के बोली सुनावत हवय?का घर तको ल फोकला करे के ठान ले हवय का सुवा हर. रथिया बिहिनिया मंझनिया जम्मो बेर सुवा के सपना दिखही तइसने लागत हवय.” सुकारो हर किहिस-“आपमन थोरकुन सुत जावव. इहा कहां ले सुवा हर आही.” अइसना कहिके सुकारो हर थोरकुन दार-भात ल माली म सान के टुकना म लुकाय सुवा ल निकार के ओखर चोच म खवाय लगिस.माली म पानी लान के पियाइस. सुवा थोरकुन बने होगे.ओला लुकाय अंचरा म बारी कोती ले गिस.मन म गुनिस के सुवा ल बारी म उड़िया दुहुं. बारी म जा के सुवा ले किहिस-“सुवा तेंहर उड़िया जा. फेर सुवा हर बारी म येती ओती किंदरे लगिस. वोहर उड़िया नइ सकिस.
सुकारो मन म गुनिस के समारू ल इही सुवा के बारे म पता चलहि त ओहर अब्बड़े रिसा जाही, फेर का करव, इही सुवा हर मोर जीव के काल होवत हवय. उड़ियावत नइये, काय करव.सुवा ल पोसे के गोठ ल गोठियाहुं त मोला मारे डारहि. काबर जेन सुवा हर हमर बछर भरके फसल ल चौपट करे हवय,तेही ल पोसबों. का सरकार हर इही गोठ ल पतियाही के सुवा हर जम्मों चना फसल ल चौपट करे हवय.
सुकारो ल दु दिन होगे. सुवा ल टुकना म लुकाय, साफी पटका म तोपे लाली मिरचा,बिही ल ओखर बर बारी ले तोर के लान के खवावत गिस.सिरतोन सुकारो ल मया होगे सुवा बर.ओला कहिचों अकेला छोरे बर डरावय. काबर कुकुर-बिलई ओला हबक झन देवय.सुवा के परान बचाय के उदिम करे लगिस.
पंछी-परेवा त हमर इही परकिती के देन हवय. सुघ्घर रंग बिरंगी इखर संसार त हमन ल सुख देथे.फेर आज हमर खेत के गोठ हर अंतस ल पीरा देवत हवय.जा रे सुवा तेहर उड़िया जा, अपन संगी संगवारी करा उड़िया जा.तेंहर उड़िया जा कहिके सुकारो हर चना के खेत म लुकाय सुवा ल ढ़िल दिस.सुकारो कहे लगिस-” कहि देबे संदेस, ओ सुवना,आगू बछर झन आबे मोर खेत ओ सुवना,रे सुवना मोर दुख पीरा ल दूर करबे ओ सुवना.”
डॉ.जयभारती चन्द्राकर
प्राचार्य
सिविल लाईन गरियाबंद, जिला गरियाबंद(छ.ग.)
मोबाइल न. 9424234098