हमर हिन्दू धरम मा देवी-देवता के इस्थान हा सबले ऊँच हावय। देवी-देवता मन बर हमर आस्था अउ बिसवास के नाँव हरय ए तीज-तिहार, परब अउ उत्सव हा। अइसने एक ठन परब कारतिक पुन्नी हा हरय जेमा अपन देवी-देवता मन के प्रति आस्था ला देखाय के सोनहा मौका मिलथे। हमर हिन्दू धरम मा पुन्नी परब के.बड़ महत्तम हावय। हर बच्छर मा पंदरा पुन्नी होथे। ए सबो मा कारतिक पुन्नी सबले सरेस्ठ अउ शुभ माने जाथे । कारतिक पुन्नी के दिन भगवान शंकर हा तिरपुरासुर नाँव के महाभयंकर राक्छस ला मारे रहीन हे तब ले एला तिरपुरी पुरनिमा के नाँव जानथें अउ मानथें। शंकर भगवान के नाँव हा इही दिन ले तिरपुरारी के नाँव हा इही दिन ले मिलीस हे। अइसन मानियता हे के कारतिक मा शिवशंकर के दरसन करे ले सात जनम ले मनखे हा गियानी अउ धनवान होथे। इही दिन अकाश मा जब चंदा उवत रथे तभे सिवा, संभूति, संतती,पिरती, अनसुइया अउ छमा ए छै किरतिका मन के पूजा-पाठ करे ले शंकर जी हा अड़बड़ प्रसन्न होथे। इही दिन गंगा मईया मा असनांदे ले बच्छर भर के असनांद के फल मिलथे। एखरे सेती कारतिक पुरनिमा ला महा कारतिकी पूरनिमा घलाव कहे जाथे।
कारतिक पुन्नी के दिन संझा बेरा मा विष्णु भगवान के मछरी अवतार होय रहीस। ए दिन गंगा मा नहाय अउ दान देके महत्तम हावय। ए दिन नदीया मा नहा के दीया के दान दक्छिना ले दस ठन जग बरोबर फल मिलथे। ब्रम्हा, विष्णु, महेश, ऋषि अंगीरा अउ आदित्य मन हा कारतिक पुन्नी ला महापुनीत परब माने हावय। एखर सेती ए दिन गंगा असनांद करके दीया के दान दे के, हूम-जग, उपास अउ पूजा-पाठ करके विशेष महत्तम हमर धरम ग्रंथ मन मा बताय गे हावय। पूजा-अरचना , दान-दक्छिना अउ जग, हवन ला शुभ बेरा मा संपन्न करे जाय ता शुभेच शुभ होथे।
जौन प्रकार ले हमर पिरिथिवी लोक मा कारतिक अमावसिया के दिन मा देवारी के जगमग तिहार ला मनाथे, ठीक अइसने कारतिक पुन्नी के शुभ तिथि मा देवलोक मा देवी-देवता मन अब्बड़ धूमधाम ले देवारी के उत्सव ला मनाथे। एखर सेती कारतिक पुन्नी के परब ला हमन देव देवारी के नाँव ले घलाव जानथन। धरम ग्रंथ अउ पुराश के हिसाब ले असाढ़ महीना के अंजोरी पाख अकादशी के दिन ले भगवान विष्णु हा चार महीना बर योगनिद्रा मा लीन हो जाथे पताल लोक मा। भगवान विष्णु हा कारतिक महीना के अंजोरी पाख के अकादशी के दिन जागथे तेला देवउठनी अकादशी कहिथे। एखर पाँच दिन पाछू कारतिक पुन्नी के दीन सबो देवी-देवता मन खुशी ले झूम-झूम के भगवान विष्णु संग लछमी जी के आरती उतार के उच्छल मंगल के संग दीया बार के देवलोक मा देवारी मनाथे। हमर पिरिथिवी के देवारी मा भगवान विष्णु के चार महीना के नींद मा रहे के सेती लछमीजी के संग देवता मन के परतिनिधी के रुप मा श्री गणेश जी के आरती उतारे जाथे।
कारतिक पुन्नी ला दे्ता मन के त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु अउ महेश मन के द्वारा महापुनीत परब के संज्ञा दे हावय। ए दिन गंगा असनाँद, व्रत, उपास, अन-धन के दान, दीया के दान, हूम-जग, आरती-पूजा के विशेष महत्तम बताय गे हावय। धारमिक मानियता के हिसाब इही दिन कन्यादान करे के संतान व्रत हा पूरा हो जाथे। जौन सरद्धालु मन हा कारतिक पुन्नी ले शुरु करके जम्मों पंदरा पूरनिमा के व्रत, उपास राख के चँदा ला जल अरपन करथें। भगत मन सरद्धा अउ सक्ति के अनुसार दान-पान, शुभ कारज करथे ओखर सभो मनोकामना हा पूरा होथे। इही दिन के रतिहा मा दीया बार के, रतिहा जाग के भजन करत, पूजा-पाठ अउ अराधना करना चाही। इही दिन भगवान विष्णुजी के पूजा-पाठ के संगे संग तुलसी पूजा अउ तुलसी बिहाव करे ले घर मा सुख समरिद्धी अउ शांति के भंडार भरथे। कारतिक महीना मा तुलसी बिहाव अउ तुलसी अराधना के विशेष महत्तम हावय।
पुरान मन के कथा मा गुनबती नाँव के एक झन इस्तिरी हा मंदिर के मुहाँटी अउ अँगना मा तुलसी के सुग्घर फुलवारी ला कारतिक महीना मा लगाइस अउ तन-मन ले सेवा करीस। इही गुनबतु हा अपन आगू जनम मा सतभामा बनके श्री कृष्ण भगवान के पटरानी बनीस। एखरे सेती कारतिक पूरनिमा के दिन तुलसी पूजा अउ तुलसी बिहाव के बड़ महत्तम हावय। इही दिन तुलसी के बिरवा अउ तुलसी चौरा ला सजाय सवाँरे जाथे अउ भगवान सालिगराम के बिधि-बिधान ले पूजा-पाठ करे जाथे अउ तुलसी बिहाव के उत्सव ला सरद्धा के संग मनाय जाथे।
कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक, भाठापारा