अइसे तो जड़कला हा कुँवार महिना से सुरु हो जाथे अउ पूस ले आगू तक रहिथे। कातिक महिना ले मनखे मन रउनिया लेय के घलाव सुरु कर देथे। अग्हन अउ पूस महिना मा कड़कड़ाती जाड़ लागथे।ये महिना मा सूरुज देव अपन गर्मी ला कहाँ लुकाथे तेकर पताच नइ चलय। ये दिन मा कतका जल्दी बेरा पंगपंगा जाथे अउ कतका जल्दी बेर बूड़ जाथे। बूता कराइया मन ला अइसे लागथे कि आज कुछू बुताच नइ होइस।
जाड़ दिन के घलाव हमर जिनगी मा भारी महत्तम हावय।इही दिन हा उर्जा सकेले के दिन आवय। फेर अब ओ दिन मन नंदागे। अंगेठा बार के चारो मुड़ा घर परिवार के जम्मो सदस्य बइठ के धान -पान , कोठी- डोली, कोठार- बियारा अउ काली काय बूता करना हवय ओकर गोठबात करय। बिहना ले दउँरी फाँदना, बेलनगाड़ी मा धान मिंजना। उत्ती मा सूरुज देव ला उवत देख के दर्शन करना। 10-15 दिन ले कोठार मा रतिहा सुतई होय। बइला गाड़ा ला चारो मुड़ा पैरा मा ढ़ाँक के झाला बनावय अउ भीतरी मा पैरा जठाके, धान बोरा के पाल उपर कथरी जठाके कमरा ओढ़के डोकरा बबा संग सूतन। तब आज के हजारो रुपया के रजाई गद्दा ले जादा नींद आवय। भीतर मा कंडील हा जुगुर जुगुर बरत रहय। पहट के चार बजे ले बेलन नइ ते दउँरी फँदा जाय।बिहनिया ले ओहो तोतो के रेरी आस परोस के कोठार ले घलाव सुनावय।
बिहना बेर उवत डोकरी दाई हा लाल चहा धरके कोठार मा आवय। बबा हा बइला ला सुरताव कहिके चहा पीयेबर आ जावय।पाछू कका काकी अउ दाई ददा मन आय अउ दू -तीन घंटा ले मिंजाय धान ला कोड़ियाय। फेर बेलन शुरु हो जावय। बेलन अउ दउँरी के पाछू मा उलानबाँटी खायबर संगवारी मन हाथ तीर के लेगय। जाने अंजाने मा पंदरा बीस दिन उवत सुरुज के रउनिया तापेबर मिलय।जोन बच्छर बर निरोग रखय अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता ला बढ़ावय।
ज्ञानिक गुनीक मन कहिथँय कि जौन मनखे रोज उवत सुरुज के दर्शन करथँय ओखर नानमुन रोग राई ,सर्दी बुखार,खाँसी ,खजरी हा दूरिहा जाथे। जड़कला के दिन मा सूरुज देव के रउनिया हा फायदा देवइया होथय।जादा बेर तक ओकर रउनिया ला ले सकत हन। सूरुज हा धरती के तीर मा रहिथय ते पाय के ओकर बिहना के रउनिया हा जादा बिटामिन डी देथय अउ रोग प्रतिरोधक क्षमता देथय।हमर ऋषि मुनी मन एकरे सेती बिहनिया ले नहाय अउ सूरुज देव ला अर्ध देय के परंपरा बनाय रहिस।फेर आज तो कुरिया मा खुसर के अकेल्ला नहाय के मजा लेवत हे।
घर मा नहाय के जब ले शुरुवात होइस उही दिन ले मनखे ला नान नान रोग राई धरे लागगे। पाँच मिनट कुरिया मा नहाय के मजा पाछू दिन भर हाय हाय पीरा।ये दे कर फोरा , ये दे करा कसटूटी, दाद , खजरी,आँखी के कमजोरी ,नस पीरा, गैस ….। बिहनिया ले तरिया नदिया मा तउँरना ला व्यायाम मा सबले श्रेष्ठ माने हावय।सहर के हाल तो अउ देखे के लइक हे।खबरिया मन कहिथे कि सहर के साठ सत्तर प्रतिशत मनखे तो अपन जिनगी के आधा दिन तक उवत सूरुज ला देख नइ पाय हे।एकरे सेती घेरी बेरी अस्पताल के फेरी लगाना ,दवाई खाना उँखर भाग मा लिखा जाथे।
हमर संस्कृति मा अइसने किसम के नान नान परंपरा हावय जौन तन मन ला निरोग राखथे।फेर आज के पढ़त लिखत लइका अउ पढ़े लिखे दाई ददा मन नइ मानय, नइ समझय। आधा रात ले मोबाइल, कम्प्यूटर, लेपटाप,टीवी चलावत रहिथे अउ बिहनिया नौ-दस बजत ले सूते रहिथे।पाछू कहिथे कि पढ़े मा मन नइ लगत हे,खाय बर भूख नइ लगत हे। एकरे सेती कहिथे कि बुद्धि बढ़ाना हे, उर्जा पाना हे, निरोग रहना हे, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना हे तब रोज बिहनिया उठव, नहावव अउ उवत सूरुज के राउनिया तापव।
तापय उठके रउनिया, पहट बिहनिया रोज।
अक्षय उर्जा पात हे, काया बनय निरोग।।
हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा, जिला- गरियाबंद