मनखे गंवागे गांव के शहर के देखाईं म
गांव भुलागे स्वारथ के अंधियारी खाईं म।।
इरिषा अनदेखना बाढ़ गे
डाह धरिस हितवाही म।
पिरीत परेम के दिया बुतागे,
आग लगिस रुख राई म।
खेत खार ह परिया होगे
यूरिया के छिचाई म
मनखे गंवागे शहर म जाके
अंधाधुंध कमाई म।
पहुना के सम्मान गंवागे
नारी के अधिकार लुटागे।
नदिया तरिया के गुरतुर पानी
भाखा के मिठास गंवागे।
पुरखा के संस्कार गंवागे
अंगना के बंटवाई म
संगी मितान के विश्वाश गंवागे
भेद के दहरा खाइ म
मेला मड़ई के झुला गवांगे
शहर के डिस्को नचाइ म
मनखे गंवागे गांव के शहर के
देखाईं म,
बिक़त हवय ईमान जहां
झूठ के अंधियारी खाई म।
अवि अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा 495668
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