समारू बबा ल लोकवा मारे तीन बछर होगे रिहिस, तीन बछर बाद जब समारू बबा ल हस्पताल ले गांव लानीस त बस्ती भीतर चउक में ठाड़े पीपर रुख के ठुड़गा ल कटवत देख के, सत्तर बछर के समारू के आँखी कोती ले आँसू ढरक गे। बबा के आँखी में आँसू देख के पूछेंव कइसे बबा का बात आय जी, त बबा ह भरे टोंटा ले बताइस, कथे सुन रे धरमेंद तैं जेन ये पीपर रूख ल देखत हस जेन ल सुखाय के बाद काटत हवे तेन ल हमर बबा के बबा ह लगाय रिहिस, नानपन ले हमन एकर छइंहा में खेल कूद के बाड़े हन, ये रूख ह अपन हरियरपन में आठ कोरी सावन देखे हवे। ये रुख ल आज कटावत देख के नानपन के जम्मो सुरता ह हरिया गे, कहिथे न कि सियानापन के नानपन के लहुटती होथे। बबा ह आगू बतावत किहिस की मैं नानपन में खेल कूद में अब्बड़ माहिर रहे हंव, नानपन के जम्मो खेल गिल्ली डंडा, भौरा बाँटी के, अटकन भटकन, खोखो कबड्डी के तो बाते अलग रिहिस, अउ इही पीपर के डारा ले तो मंगलू के टूरा बिसेसर ह डंडा पिचरंगा खेलत खानी गिरे रिहिस। अब ये जम्मो खेल ह खेले के तो बहुत दुरिहा के बात आय अब तो येकर नाम सुने बर घलो नइ मिले। पहिली पारा भर के जम्मो लइका मन इही पीपर तरी एक जघा सकलाक़े किसम किसम के खेल खेलत रेहेंन। अउ एक जघा सकलाक़े खेले ले तो एक दूसर से मया पिरीत अउ चीन पहिचान बड़थे। फेर अबके लइका मन ह तो खेले के नाम में घर ले बाहिर निकलबे नइ करय। अउ बिचारा मन ल तो खेले कूदे के बेरा बखत कहाँ मिलथे, बिहनिया ले तो अपन बजन ले जादा गरु बेग ल खांद में लाद के इसकुल गे रहिथे तेन ह संझउती कण लहुटथे।
एकात कन सुरताय के बेरा मिलथे तेन ल मोबाइल में बीडीओ गेम खेल के पहा देथे। हमर जमाना में कहां इसकुल राहय, फेर हमन ल डाई ददा अउ छोटे बड़े के मान गउन आदर सत्कार सीखोवय जेन आज कतको किताब रटे रटे मन में चीटिको देखे बर नइ मिलय। दिन भर कमावन, डपट के खावन अउ संझा कन कुदरावन। खेले खुदे ले हाँथ गोड़ के बियाम घलो हो जाय। अब तो लइका मन ह मोबाइल में भुलाय रहिथे, जेकर फायदा कतको झन अतलंगहा मन ह उठाथे अउ ब्लू वेल जइसन जानलेवा खेल ह। आगू आथे, अउ दिन भर मोबाइल में गड़े रहे ले आँखी घलो पतरा जाथे। बतावत बतावत बबा हाँस डरिस, मैं पूछेंव का होगे बबा, त बबा ह बताइस की ओमन नानपन में इही पीपर तरी फुगड़ी खेलत टुरी मन संग अब्बड़ इतरावय, बबा कहिथे की तोर डोकरी दाई ह ओकरे तो नतीजा आय। अब तो न फुगड़ी बाँचीस न तो ज्यादा पेड़, सब पेड़ मन कटावत जात हवे, जेकर ले अंकाल दुकाल परत हवे। फुगड़ी ह तो कब के फू होगेहे, धीरे धीरे पेड़ मन घलो फू होवत जावत हवे। अतका कहिके बबा ह घरघराय टोंटा ले किहिस चल रे बेटा मोला मोर घर अमरा दे, अउ मैं बबा संग ओकर घर कोती चल देंव।
धर्मेन्द्र डहरवाल “हरहा”
सोहागपुर, जिला बेमेतरा