लघुकथा – आटोवाला

बड़ दिन बाद अपन पेंशन मामला के सेती मोहनलाल बबा के रयपुर आना होइस। घड़ी चौक म बस ले उतरिस ताहने अपन आफिस जाय बर आटो के अगोरा म खड़े होगे। थोरकुन बाद एक ठ आटो ओकर कना आके रूकिस अउ ओला पूछिस -कहाँ जाओगे दादा!!
डोकरा अपन जमाना के नौकरिहा रहय त वहू हिंदी झाडिस -तेलीबांधा मे फलाना आफिस जाना है। कितना लोगे?
आटोवाला बताइस -150रु. लगेगा।
बबा के दिमाग ओकर भाव ल सुनके भन्नागे। वोहा तुरते वोला पूछिस -कहां रहते हो रयपुर मे।
आटोवाला ओला अपन पता ठिकाना बताइस ताहने ओला डोकरा कथे -जब तोर जनम नी होय रिहिस होही न बेटा! तबके मे ह रयपुर के कोंटा-कोंटा ल सइकिल चलावत नाप डरे हंव। मोर जिनगी के आधा समे ह इंहे नौकरी बजावत गुजरे हे। अब जांगर ह थक गेहे त तुंहर आटो के सहारा लेवत हंव।
तोर भाव महंगा हे बेटा। जा! मे ह कोनो दूसर संग चल देहूं। फेर मोर एक ठ बात ल सुरता रखबे बेटा! ए रयपुर साहर म गांव ले जतेक मनखे अथे तुंहर भरोसा म अथे। इंहा अवइया कतको मनखे के इंहा कोनो चिन-पहिचान नी रहय। ओमन अतका बस जानथे कि रयपुर के आटोवाला मन पैसा देबे ताहन मन मुताबिक ठीहा मे पहुंचा देथे। तोर परवार ह जिकर मन से चलथे उंकर संग बइमानी मत कर! तोर जतका वाजिब बनथे वतकी लेयकर। मोर सलाह ल रिस झन करबे बेटा! ले जा तोला देरी होवत होही।
बबा के गोठ ल सुनके आटोवाला चुप होगे। वोहा तुरते बबा के बेग ल आटो म डारिस अउ किहिस -ले बबा!50रू. देबे।
ताहने दुनों आटो म बइठके चल दिन।

रीझे यादव
टेंगनाबासा (छुरा)

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