छत्तीसगढ़ म हर तिहार ल हमन सुघ्घर रूप ले मनाथन। तिहार ह हमर घर, परिवार, समाज अउ संसकिरिती म रचे-बसे हावय जेखर कारन येखर हमर जीनगी म अब्बडेच़ महत्तम हे। तिहार ह हमर खुसी उत्साह के परतीक हावय जेला हमन सबो झन जुर-मिर के मनाथन। तिहार से हमन ल एक नवा उरजा मिलथे जेखर ले हमन अपन जीनगी म आने वाला कई परकार के बिघन-बाधा ल पार करके आघु बढ़े के सक्ती पाथन। पर आज के आघुनिकता के अंधा दउड़ म हमन अपन तीज-तिहार परिवारदार संगी-जवरिहां के संग मिल के मनाये के बजायय अकेल्ला मनानथ या मनाये ल छोड़ देहन। हमन के मानसिक दुख अउ अवसाद के एक परमुख कारन ये घलो हावय के हमन अपन तिहार ल मिर-जुर के मनाये ल भुलागेहन।
हमर हिंदू धरम म हर तिहार ह पंचाग के अनुसार एक निश्चित तिथि म ही मनाये जाथे। एक अईसने महत्तम के तिहार हावय अक्ती। अक्ती तिहार ह हमर पंचांग के अनुसार बइसाख अंजोरी पाख के तीज के दिन पड़थे। जेला अछय तृतिया के नाव ले जाने जाथे। जेला हमन अक्ती तिहार के नाव ले जानथन। ये तिहार के परंपरा ह पाछू सैकड़ो बछर ले चलत आवथे।
जईसे नाव ले ही समझ म आ जावत हे अछय माने जेखर कभू नास नइ हो सकय वोला अछय कहे जाथे। ये तिहार ये अक्षय तृतिया याने अक्ती। अक्ती तिहार ह परकिरीति के बदलाव के संकेत घलो देथे। बसंत रितु के जाती अउ गरमी के आती के।
सास्त्रीय मानियता- सास्त्रीय मानियता के अनुसार ये दिन जे सुभ काम करे जाथे ओहा अवस्य अछय फलदायी होथे। ये हू मानियता हावय के ये दिन पितर मन के तरपन अउ पिंडदान अउ कोनो परकार के दान घलो अछय फल परदान करथे। ये दिन घर म भगवान बिसनु अउ माता लछमी के पूजा अरचना करे जाथे। जेखर से अछय फल लिलथे।
हमर हिंदू संसकिरीति म चार ठन स्वयंसिद्ध लगन होथे, जेमा नामकरन संस्कार, मुंडन संस्कार, लईकामन के मुॅंह जुठारना, बर-बिहाव, घर के उद्घाटन, गहना के खरीददारी बर कोई मुहूरत देखे के जरूर नइ पड़य।जेमा ये स्वयंसिद्व तिथि म अक्ती के दिन घलो हावय। ये दिन नामकरन संस्कार, मुंडन संस्कार, लईकामन के मुॅंह जुठारना, बर-बिहाव, घर के उद्घाटन, गहना के खरीददारी बर कोई मुहूरत लगन नइ देखे जावय।
सूर्यवंसी राजा दिलीप के बेटा भगीरथ हिमालय म तपस्या करिस ओकर पूरखा मन कपिल मुनि के सराप ले भसम हो गे रहिस माता गंगा ही ओमन के उ़द्वार कर सकत रहिस। त भगीरथ अन्न जल तियाग के तपस्या करे लगिस। कहे जाथे के आज के दिन भगीरथ के तपस्या ले परसन हो के गंगा मैया ह धरती म अवतरे रहिस।
धारमिक महत्तम- हमर चार धाम ले एक धाम बदरीनारायन के कपाट घलो अक्ती के दिन ले ही भक्तमन के दरसन बर खुलथे। बिंदाबन म बांके बिहारी मंदिर अइच दिन सिरी विग्रह के चरन दरसन होथे नइ त पूरा बछर भर ओकर ओनहा ले ढंकाय रइथे।
पउरानिक मानियता- हमन के अट्ठारह पुरान म ले एक भबिस्य पुरान के अनुसार- अक्ती के तिथि के दिन युगादि तिथि म गिनती होथे। चार युग म ले सतयुग अउ त्रेतायुग के सुरूवात घलो अक्ती के दिन ले ही होय रहिस। भगवान बिस्नु के नर-नारायन के अवतार, हयगरिव भगवान के अवतार अउ परसुराम भगवान के अवतार घलो होय रहिस। बरम्हा जी के बेटा अछय कुमार के जनम घलो अक्ती के दिन ही होय रहिस।
कौरव-पांडव के मध्य महाभारत के युद्ध घलो ये दि नही खतम हो रहिस अउ दुआपर युग के अंत हो रहिस। अइसनहा मानियता हावय के ये दिन सुरू करे गे काम अउ करे गे दान-दछिना कभू छय नइ होवय।
काबर के अक्ती तिथि ले बसंत रितु खतम होथे अउ गरमी चालू हो जाथे जेखर कारन हमर छत्तीसगढ़ देस राज म अक्ती के दिन करसी म पानी भरके करसी सहित दान करे के बाद करसी म ले पानी पिये के परंपरा चले आवत हावय जे ह अब नंदात जावत हे।
सामाजिम महत्तम-ये दिन ले सादी, बर-बिहाव होय के चालू हो जाथे। हमर देस राज म ये दिन लईकन मन पुतरा-पुतरी के बिहाव के खेल घलो खेलथे। ये परकार ले लईकन मन सामाजिक काम-बेवहार खुद सिखथे अउ आत्मसात करथे। कई जगह त लईकन मन के संगे-संग पूरा पारा मोहल्ला अउ गांव के मनखे मन लईकन मन के पुतरा-पुतरी के बिहाव के न्यौता म सामिल होथे अउ बिहाव के सबो नेंग जइसे के मड़वा, हरदी-तेल, बरात अउ आखिरी म खाना-पीना करे जाथे। येखर कारन से कहे जा सकत हे के हमर हिंदू के तिहाार अक्ती ह सामाजिक अउ सांसकिरीतिक सिछा के सुघ्घर तिहार हावय।
पारंपरिक महत्तम – ये दिन गांवभर के किसान मन ठाकुर देवता के दुआरी म जुरथे अउ अपन अपन घर ले लाये धान ल रखथे । अउ बने बिधी-बिधान से पूजा-पाठ करके अवईया बछर म धान के अच्छा फसल बर मनोकामना करथे।
ये सब परकार ले देखा जाये त अक्ती तिहार हमर हिंदू धरम एक बड़ महत्तम के तिहार ये तिहार जेमा हमनके पूरखा, सियान मन चाहे खुसी के काम हो या दुख के काम पहिली अपन भगवान के पूजा-पाठ करे के संगे-संग अपन सामाजिक रिती-रिवाज अउ सांसकिरीतिक परंपरा ल बनाये रखे बर ये तिहार ल मनाये के सुरूवात करे रहिस।
ये दारी हमर अक्ती तिहार ह अंगरेजी कलेंडर म मई के महिना म 7 तारीख दिन मंगलवार के पडत हावय। हमन ल अपन तीज-तिहार ल बड़ सुघ्घर रूप से खुसी के साथ मनाना चाही।
प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा
(छत्तीसगढ़)