गरमी के दिन आगे संगी , मचगे हाहाकार ।
तरिया नदियाँ सबो सुखागे , टुटगे पानी धार ।।
चिरई चिरगुन भटकत अब्बड़ , खोजत हावय छाँव ।
डारा पाना जम्मो झरगे , काँहा पावँव ठाँव ।।
तीपत अब्बड़ धरती दाई , जरथे चटचट पाँव ।
बिन पनही के कइसे रेंगव , जावँव कइसे गाँव ।।
बूँद बूँद पानी बर तरसे , कइसे बुझही प्यास ।
जगा जगा मा बोर खना के , करदिस सत्यानास ।।
बोर कुवाँ जम्मो सुख गेहे , धर के बइठे माथ ।
तँही बचाबे प्राण सबो के, जय जय भोलेनाथ ।।
कु. प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
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