सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन
भूकत, उछरत, घूमत हावै, गाँव के मतवार मन,
लाँघन, भूखन बइठे हावै, कमिया अउ भुतियार मन।
राज बनिस नवा-नवा, खुलिस कतको रोजगार इहाँ,
मुसवा कस मोटागे उनकर, सगा अउ गोतियार मन।
साहब, बाबू, अगुवा मन ह, छत्तीसगढ़ ल चरत हावै,
चुचवावत सब बइठे हे, इहाँ के डेढ़ हुसियार मन।
पर गाँव ले आये हे, उही चिरई मन हर उड़त हे,
पाछू-पाछू म उड़त हावै, इहाँ के जमीदार मन।
सोंचत-सोंचत रहिगेन हमन, कते बुता ल करन हम।
धर ले हें जम्मो धंधा ल, अनगइहाँ बटमार मन।
–बलदाऊ राम साहू